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________________ आवश्यक नियुक्ति चिन्ता के कारण से वह दुर्बल हो गया। एक दिन उसने वैद्य को बुलाकर सारी बात बताई और स्वस्थ होने का उपाय पूछा। वैद्य को रोग समझ में नहीं आया पर उसने बुद्धि-कौशल का प्रयोग किया। वह बोला- 'यदि मुझे सौ रुपए दोगे तो मैं चिकित्सा कर दूंगा क्योंकि मूल्यवान् औषधि देनी होगी।' उसने स्वीकार कर लिया। वैद्य ने एक जीवित गिरगिट को लाख के रस से लिप्त कर उसे घड़े में डाल दिया। उस व्यक्ति को विरेचक औषधि देकर उसी घड़े में शौच करने को कहा । व्यक्ति जब शौच से निवृत्त हुआ तो वैद्य ने तड़फड़ाता हुआ लाक्षा रस से लिप्त गिरगिट उसे दिखाया । व्यक्ति चिंता मुक्त होकर पहले की भांति स्वस्थ हो गया । (ब) गिरगिट एक भिक्षु ने शैक्ष से पूछा - 'यह गिरगिट सिर क्यों हिला रहा है ?' शैक्ष बोला- 'यह सोच रहा है कि यह भिक्षु है अथवा भिक्षुणी ? २ १६०. काक ( अ ) वेन्नातट पर एक बौद्ध भिक्षु ने शैक्ष साधु से पूछा- 'तुम्हारे अर्हत् सर्वज्ञ हैं अत: सब कुछ जानते हैं।' साधु ने स्वीकृति दी तब उसने पूछा -- ' बताओ, इस शहर में कितने कौए हैं? शैक्ष बोला- 'इस वेन्नाट पर ६० हजार कौए हैं। इस प्रश्न का उत्तर उसने बुद्धिबल से दिया। बौद्ध भिक्षु ने पूछा - 'यदि कम या अधिक होंगे तो ?' शैक्ष ने उत्तर दिया- 'यदि कम हों तो जान लेना यात्रा पर गए हैं और यदि अधिक हों तो समझ लेना कि बाहर से कुछ कौए अतिथि रूप में आ गए हैं। यह सुनकर बौद्ध भिक्षु निरुत्तर हो गया। (ब) काक में एक एक वणिक् था। बाहर जंगल जाते हुए उसने निधि देखी। उसने सोचा कि मेरी पत्नी इस रहस्य गुप्त रख सकती है या नहीं, इसकी परीक्षा करनी चाहिए। उसने अपनी पत्नी से कहा- 'मेरे अधिष्ठान 'सफेद कौआ घुस गया है।' उसने अपनी सहेलियों को बात बता दी। सहेलियों ने अपने-अपने पति यह बात बता दी। घूमते-घूमते बात राजा तक पहुंची। राजा ने वणिक् को बुलाकर पूछा तो उसने सारा वृत्तान्त बता दिया। राजा उसकी सत्यवादिता और बुद्धिकौशल से बहुत संतुष्ट हुआ। वह सारी निधि उसे दे दी और मंत्री पद पर नियुक्त कर दिया। (स) काक एक कौआ विष्ठा को पैरों से बिखेर रहा था। भागवत के एक अनुयायी ने जैन श्रावक से पूछा'अरे! यह कौआ विष्ठा को क्यों बिखेर रहा है ? प्रत्युत्तर देते हुए उसने कहा- कौआ सोच रहा है कि यहां विष्णु हैं या नहीं ?' १, २. आवनि. ५८८ / १४, आवचू. १ पृ. ५४७, हाटी. १ पृ. २७९, मटी. प. ५२० । ३. आवनि. ५८८ / १४, आवचू. १ पृ. ५४७, हाटी. १ पृ. २७९, मटी. प. ५२० । ४. आवनि. ५८८ / १४, आवचू. १ पृ. ५४७, ५४८, हाटी. १ पृ. २७९, मटी. प. ५२० । ५. आवनि. ५८८ / १४, आवचू. १ पृ. ५४८, हाटी. १ पृ. २७९, मटी. प. ५२० । Jain Education International ४८७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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