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________________ ४८६ परि. ३ : कथाएं सेठ धनराशि लेकर राजा के पास गया और अपनी पुत्री के दोहद की बात कही। राजा ने भेंट स्वीकार की और उसका दोहद पूर्ण कराने की आज्ञा प्रदान कर दी। दोहद पूर्ण होने पर कालान्तर में नंदा ने पुत्र-रत्न का प्रसव किया, उसका नाम अभय रखा। कुछ वयस्क होने पर अभय ने मां से पूछा- 'मेरे पिता का क्या नाम है और वे कहां रहते हैं?' मां ने राजगृह के पांडुरकुड्य की बात बताई। अभय बोला'हम वहां चलें।' वे सार्थ के साथ राजगृह की ओर चले और राजगृह के बाह्य भाग में ठहरे। अभय गवेषणा करने गया। उसने एक स्थान पर लोगों को देखकर वहां एकत्रित होने का कारण पूछा। तब उसे लोगों से ज्ञात हुआ कि राजा एक मंत्री की खोज कर रहा है। परीक्षा के निमित्त राजा ने अपनी मुद्रिका कुंए में डाल घोषणा करवाई कि जो कोई व्यक्ति कंए की मेंढ पर बैठकर अपने हाथ से मद्रिका निकालेगा. राजा उसको जीविका के साधन देगा। अभयकुमार ने यह सुना। उसने मुद्रिका पर गोबर डाल दिया और जब वह सूखकर उपल हो गया तब कुंए में पानी भरा। वह उपल तैरता हुआ ऊपर आ गया। कुंए की मेंढ पर बैठे अभय ने अपने हाथ से उसे उठा लिया। मुद्रिका लेकर वह राजा के समीप गया। राजा ने पूछा'तुम कौन हो?' वह बोला-'मेरा नाम अभयकुमार है, मैं आपका पुत्र हूं।' राजा बोला- 'कैसे?' उसने सारी बात बता दी। राजा ने प्रसन्न होकर अभय को गोद में बिठा लिया। अभयकुमार ने माता को सारी बात बताई। वह राजा से मिलने के लिए श्रृंगार करने लगी लेकिन स्वाभिमान के कारण अभय ने उसे ऐसा करने से रोक दिया। राजा ने अभय को मंत्री बना दिया और नंदा को वस्त्र-आभूषण आदि देकर ससम्मान अपने महल में लेकर आ गया। १५८. वस्त्र दो व्यक्ति तालाब पर स्नान करने गए। एक व्यक्ति का कपड़ा मजबूत और ऊनी था तथा दूसरे का कपड़ा जीर्ण-शीर्ण था। दोनों कपड़े उतारकर स्नान करने लगे। जीर्ण वस्त्र वाला व्यक्ति स्नान करके पहले बाहर निकला और मजबूत तथा कीमती वस्त्र को लेकर चला गया। मूल स्वामी ने उससे अपना वस्त्र मांगा पर उसने देने से इंकार कर दिया। राजकुल में शिकायत पहुंची। न्यायाधिकारियों ने पूछा- 'ये वस्त्र तुम लोगों ने खरीदे हैं या अपने घर में बुने हैं?' दोनों ने कहा- 'घर में बुने हैं।' न्यायाधीशों ने दोनों की पत्नियों को बुलाकर सूत कतवाया। फिर सूत के आधार पर जो जिसका कपड़ा था, वह उसे दे दिया। कुछ आचार्यों के अनुसार न्यायाधीशों ने दोनों के सिर पर कंघी करवाई। जिसका ऊनी कपड़ा था उसके सिर से ऊनी तंतु निकले तथा जिसका सूती कपड़ा था उसके सूती तंतु निकले। इस आधार पर जो जिसका कपड़ा था, वह उसे समर्पित कर दिया। यह न्यायाधीशों की औत्पत्तिकी बुद्धि थी। १५९. (अ) गिरगिट एक व्यक्ति शौच के लिए गया। जहां वह बैठा था ठीक उसके नीचे गिरगिट का बिल था। दो गिरगिट लड़ते-लड़ते आए। एक गिरगिट अपने बिल में घुस गया। उस समय उसकी पूंछ से व्यक्ति के गुदा भाग का स्पर्श हो गया। उसने सोचा-'गिरगिट गुदा-मार्ग से भीतर चला गया है।' वह घर गया। पर १. आवनि. ५८८/१४, आवचू. १ पृ. ५४६, ५४७, हाटी. १ पृ. २७८, २७९, मटी. प. ५१९ । २. आवनि. ५८८/१४, आवचू. १ पृ. ५४७, हाटी. १ पृ. २७९, मटी. प. ५१९, ५२०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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