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________________ ४८८ परि. ३ : कथाएं १६१. उत्सर्ग एक ब्राह्मण अपनी युवा सुंदर पत्नी के साथ ग्रामान्तर जा रहा था। मार्ग में वह युवती एक धूर्त व्यक्ति के पास जाने के लिए तैयार हो गई। ब्राह्मण और धूर्त के बीच विवाद छिड़ गया। युवती को पूछने पर उसने धूर्त को अपना पति बताया। ग्राम-प्रधान के पास विवाद पहुंचा। ग्रामप्रधान ने दोनों को अलगअलग बुलाकर पूछा- 'इस युवती ने कल क्या भोजन किया था?' ब्राह्मण ने कहा-'तिल के मोदक खाए थे।' धूर्त को पूछने पर उसने कुछ और ही बताया। उस स्त्री को विरेचन दिया और मल का परीक्षण किया। मल में तिल निकले। न्यायाधीश ने धूर्त की अत्यंत भर्त्सना की और तरुणी को ब्राह्मण के साथ कर दिया। १६२. गज बसन्तपुर का राजा योग्य मंत्री की खोज में था। उसने घोषणा करवाई कि जो कोई इस अति विशाल हाथी को तोलकर इसका वजन बतायेगा, उसे लाख मुद्राएं दी जायेगी। एक बुद्धिमान् व्यक्ति ने यह घोषणा सुनकर हाथी को तोलने की बात स्वीकार कर ली। वह हाथी को बड़े तालाब पर ले गया। उसे एक मजबूत नौका पर चढ़ाकर नौका को गहरे पानी में उतारा। हाथी के भार से नौका जितने पानी में डूबी, वहां एक चिह्न कर दिया। तट पर आकर हाथी को नौका से उतार कर उसमें काठ, पाषाण आदि भर दिए। जितने भार से नौका तालाब में चिह्नित रेखा तक बी. उतने पत्थरों के भार को तोल कर बता दिया कि हाथी का भार इतना है। उसने एक लाख मुद्राएं प्राप्त कर ली। १६३. भांड एक भांड अत्यंत गुप्त बातों को जानने वाला था। राजा उसको बहुत मानता था। राजा अनेक बार उसके सामने रानी के गुणों की प्रशंसा करता था। राजा कहता कि रानी अत्यंत निरामय है, कभी अधोवात भी नहीं निकलती। भांड बोला- 'ऐसा नहीं हो सकता।' राजा ने पूछा- 'क्यों?' कारण बताते हुए भांड १. आवनि. ५८८/१४, आवचू. १ पृ. ५४८, हाटी. १ पृ. २७९, २८०, मटी. प. ५२०॥ २. आवनि. ५८८/१४, आवचू. १ पृ. ५४८, हाटी. १ पृ. २८०, मटी. प. ५२० । ३. आवश्यक चूर्णि, हारिभद्रीया टीका, मलयगिरि टीका तथा नंदी हारिभद्रीया टीका में उपर्युक्त कथा मिलती है। लेकिन नंदी (पृ.२०४, २०५) में भांड के अन्तर्गत एक दूसरी कथा का उल्लेख है। वह कथा इस प्रकार है-एक भांड राजा के बहुत मुंहलगा था। राजा उसके सामने रानी की प्रशंसा करता था। भांड ने कहा- 'महाराज ! रानी बहुत अच्छी है, पर तब तक ही है जब तक उसका स्वार्थ सधता है।' राजा ने इसका खंडन किया। भांड बोला-'आप रानी की परीक्षा ले सकते हैं।' परीक्षा का उपाय बताते हुए उसने कहा- 'आप रानी से कहिए कि मैं दूसरा विवाह करना चाहता हूं और नई रानी को पटरानी बनाने की सोच रहा हूं, फिर देखिए क्या होता है?' राजा ने ऐसा ही किया। रानी बोली- 'नाथ! आप चाहें तो दूसरा विवाह कर सकते हैं पर राज्य का उत्तराधिकारी परम्परा के अनुसार मेरा पुत्र ही होगा।' यह सुनकर राजा को हंसी आ गई। रानी ने कारण पूछा। राजा ने टालना चाहा पर रानी के अति आग्रह पर उसे सही बात बतानी पड़ी। रानी ने कुपित होकर भांड को निर्वासित होने का आदेश दे दिया। रानी का आदेश सुनकर भांड बहुत घबराया। आखिर उसे एक उपाय सूझा। वह जूतों की एक गठरी बांधकर रानी के महल के सामने से गुजरा। सिर पर गठरी देखकर रानी ने पूछा- 'यह क्या ले जा रहे हो?' भांड ने उत्तर दिया'यह जूतों की गठरी है। इन्हें पहनकर मैं जहां तक जा सकूँगा, आपका यश फैलाता रहूंगा।' रानी भांड का अभिप्राय समझ गई। बदनामी के भय से उसने निर्वासन का आदेश वापिस ले लिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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