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परि. ३ : कथाएं राजा के पांच सौ मंत्रियों की परिषद् में एक मंत्री की कमी थी। वह एक मंत्री की गवेषणा करना चाहता था। रोहक की परीक्षा के निमित्त राजा ने नट-गांव के प्रधानों को कहलवाया- 'तुम्हारे गांव के बाहर एक बड़ी शिला है। उसको हटाए बिना ऐसा मंडप बनाओ, जिसमें राजा बैठ सके। गांव वालों ने जब राजा का यह आदेश सुना तो बहुत चिंतित हो गए।
समस्या को सुलझाने के लिए सभा बुलाई गयी। भरत नट भी उसमें सम्मिलित हुआ। सायंकाल होने पर बालक रोहक भूख से पीड़ित हो रहा था अतः वह अपने पिता को बुलाने वहां गया। सबको चिंतातुर देखकर उसने पूछा-'आप सब लोग चिंतित क्यों हैं? पिता ने शिला-मंडप की बात कही।' रोहक बोला- 'इसमें चिंता की क्या बात है? आप सब विश्वस्त रहें।' आप लोग शिला के नीचे से जमीन खोदकर चारों ओर खंभों का आधार देकर फिर धीर-धीरे जमीन खोदें। इसके बाद दीवार बनाकर लिपाई आदि कार्य करवा दें, मंडप तैयार हो जाएगा। गांव वालों ने वैसा ही किया। मंडप तैयार होने पर राजा को सूचित किया गया। राजा ने पूछा- 'यह किसकी सूझबूझ से हुआ?' उन्होंने रोहक का नाम बताया। राजा अत्यंत प्रसन्न हुआ। १४२. मेंढा
रोहक की बुद्धि-परीक्षा हेतु राजा ने गांव में एक मेंढा भेजा और कहा–'पन्द्रह दिन बाद इसे लौटाना है पर इतने समय में न यह दुर्बल हो और न बलिष्ठ अर्थात् इसका वजन न घटना चाहिए और न ही बढ़ना चाहिए।' ग्रामवासी चिंतातुर हो गए। उन्होंने रोहक को बुलाकर सारी बात बताई। रोहक ने कहा- 'इस मेंढे को खाने के लिए जौ आदि चारा यथासमय दो पर इसके पास भेड़िए का पिंजरा रख दो।' यह जब भेड़िए को देखेगा तो इसका वजन नहीं बढ़ेगा तथा चारा खाने से वजन क्षीण नहीं होगा। पन्द्रह दिन बाद राजा ने वजन किया लेकिन उसमें कोई अंतर नहीं आया। राजा रोहक की सूझबूझ से अत्यंत प्रसन्न हुआ। १४३. कुक्कुट
राजा ने एक मुर्गे को गांव वालों के पास भेजकर कहा- 'इसे किसी दूसरे मुर्गे के बिना ही लड़ाकू बनाना है।' रोहक ने एक दर्पण मंगाकर मुर्गे को उसके सामने रखा। उस प्रतिबिम्ब को अपना शत्रु मुर्गा समझकर वह प्रतिदिन उससे लड़ने लगा और कुछ ही दिनों में वह लड़ाकू हो गया। राजा रोहक की सूझबूझ से अत्यंत प्रभावित हुआ। १४४. तिल
एक बार राजा ने तिलों की कुछ गाड़ियां नटों के गांव में भेजी और तिलों की संख्या बताने का आदेश दिया। गावं वालों के समक्ष समस्या हो गई कि इतने तिलों की गिनती कैसे की जाए? उन्होंने रोहक को बुलाया। उससे समाधान प्राप्त कर वे राजा के पास गए और बोले- 'स्वामिन् ! हम ग्रामीण लोग गणित
१. आवनि. ५८८/१३, आवचू. १ पृ. ५४४, हाटी. १ पृ. २७७, मटी. प. ५१७ । २. आवनि. ५८८/१३, आवचू. १ पृ. ५४५, हाटी. १ पृ. २७७, २७८, मटी. प. ५१७ । ३. आवनि. ५८८/१३, आवचू. १ पृ. ५४५, हाटी. १ पृ. २७८, मटी. प. ५१७।
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