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________________ आवश्यक नियुक्ति ४७९ में ही प्राप्त होगा।' उसकी अवस्था देखकर परिवार के लोग उसे कुछ सहयोग देना चाहते थे परंतु वह इन्कार कर देता। वह बार-बार सामान लेकर व्यापारार्थ समुद्रयात्रा के लिए निकल पड़ता। उसके इस दृढ़ निश्चय पर समुद्र का देवता प्रसन्न हुआ और उसे प्रचुर धन देकर बोला- 'तुम्हारे लिए मैं और क्या कर सकता हूं?' वह तुंडिक वणिक् बोला- 'जो मेरा नाम लेकर समुद्र का अवगाहन करे, वह अविघ्नरूप से घर लौट आए।' देवता ने स्वीकार कर लिया। तुंडिक यात्रासिद्ध वणिक् था। जो बारह बार समुद्र का अवगाहन कर कार्य पूरा करके वापिस आ जाता है, वह यात्रासिद्ध है। औत्पत्तिकी बुद्धि के दृष्टान्त १४१. भरतपुत्र उज्जयिनी नगरी के पास एक नटों का गांव था। वहां भरत नामक नट रहता था। उसकी भार्या का देहान्त हो गया। उसका पुत्र रोहक अभी छोटा था। नट दूसरी पत्नी ले आया। वह सौतेली मां उस लड़के के साथ उचित बर्ताव नहीं करती थी। उस लड़के ने सोचा कि सौतेली मां मेरे प्रति अच्छा व्यवहार नहीं करती। मैं उसके साथ ऐसा बर्ताव करूंगा कि वह मेरे पैरों में गिरेगी। रात में रोहक पिता के साथ सो रहा था। सहसा आधी रात में उसने चिल्लाकर कहा-'पिताजी ! देखिए वह पुरुष भागा जा रहा है।' नट ने सोचा- 'मेरी पत्नी भ्रष्ट एवं कुलटा हो गई है।' उसके प्रति नट का रागभाव शिथिल हो गया। पत्नी को यह बुरा लगा। उसने प्रेमपूर्वक अपने पुत्र से कहा- 'तुम ऐसा मत करो।' वह बोला- 'तुम मेरे प्रति उचित व्यवहार नहीं करती।' वह बोली-'अब मैं उचित बर्ताव करूंगी।' वायदे के अनुसार वह पुत्र के प्रति स्नेहमय बर्ताव करने लगी। एक दिन रात को पुत्र चिल्लाया- 'यह पापी पुरुष जा रहा है।' पिता ने पूछा-'वह पुरुष कहां है ?' उसने चांदनी में अपनी छाया दिखाई और कहा उस दिन भी यही पुरुष था। पिता अपने कृत्य पर लज्जित हुआ। उसके बाद वह अपनी पत्नी के प्रति अत्यधिक अनुरक्त रहने लगा। मेरे अप्रिय व्यवहार से रुष्ट होकर सौतेली मां मुझे विष न दे दे, यह सोच भयभीत होकर वह अपने पिता के साथ भोजन करने लगा। एक बार वह पिता के साथ उज्जयिनी नगरी में गया। उसने नगरी की सुंदरता देखी। रोहक के मन पर उसका गहरा प्रभाव पड़ा। दोनों पिता-पुत्र नगरी से बाहर आ गए। 'अमुक वस्तु भूल आया हूं' यह सोचकर पिता पुनः नगरी में गया। रोहक सिप्रा नदी के तट पर बालू में उज्जयिनी का रेखांकन करने लगा। उसने चत्वर, राजप्रासाद सहित उज्जयिनी नगरी का हुबहू रेखांकन कर डाला इतने में ही घोड़े पर सवार राजा उधर से गुजरा। उसने राजा को रोकते हुए कहा-'ए घुड़सवार! तुम राजप्रासाद के मध्य से मत जाओ, यहां बिना आज्ञा प्रवेश निषिद्ध है।' राजा ने कुतूहलवश पूछा'क्यों ? 'उसने चत्वर सहित उज्जयिनी नगरी का रेखांकन दिखाया। राजा बहुत विस्मित हुआ और पूछा'तुम कहां रहते हो?' वह बोला-'गांव में।' इतने में ही उसका पिता भी आ गया। राजा उसकी बुद्धि को देखकर आश्चर्यचकित हो गया क्योंकि रोहक पहली बार ही उज्जयिनी आया था। १.आवनि. ५८८/९, हाटी. १ पृ. २७६, मटी. प. ५१६, चूर्णि में यह कथा नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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