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________________ ४४२ परि. ३ : कथाएं वह उसे भीतर ले गई और स्नान-अभ्यंगन आदि करवाया। जब वह घर से निकला था, तब भार्या गर्भवती थी। अब उसका पुत्र ग्यारह वर्ष का हो गया था। वह पाठशाला से आकर रोने लगा। उसने कहा- 'मां! मुझे जल्दी खाना दो अन्यथा उपाध्याय मुझे पीटेंगे।' मां ने तब लड्डुओं की थैली में से एक मोदक निकालकर दिया। वह उसे खाता हुआ बाहर निकला। उसने उसमें रत्न देखा। साथियों ने भी रत्न देखा। उन्होंने उसे पूपिका बनाने वाले एक व्यक्ति को देते हुए कहा–'प्रतिदिन हमें पूपिका देते रहना।' उसने भी भोजन करते समय मोदक को तोड़ा। उसने रत्न देखकर सोचा, शुल्क देने के भय से रत्नों को मोदकों में छुपाया है। उसने रत्नों को पूर्ववत् रख दिया। एक बार महाराज श्रेणिक के गंधहस्ती सेचनक को नदी में तेंदुक (जलजीव) ने पकड़ लिया। राजा खिन्न हो गया। अभय ने कहा- 'यदि कहीं जलकांत मणि मिल जाए तो तेंदुक इसे छोड़ सकता है। राजा के खजाने में रत्नों की बहुलता थी। उनमें से जलकांत मणि को खोजने में समय लगेगा, यह सोचकर नगर में पटह बजवाया कि जो कोई जलकांत मणि देगा, राजा उसको आधा राज्य और पुत्री देगा।' तब आपूपिक ने जलकांत मणि राजा को ले जाकर दी। जलकांत मणि को वहां पानी में डाला, जहां हाथी फंसा हुआ था। मणि के प्रभाव से जल के भीतर प्रकाश हो गया। तेंदुक ने जाना कि मैं स्थल पर ले जाया गया हूं। उसने हाथी को छोड़ दिया और पानी में पलायन कर गया। राजा ने सोचा-- 'इस आपूपिक के पास यह मणि कहां से आयी?' उसने आपूपिक को बुलाकर पूछा- 'यह मणि तुम्हें कहां से प्राप्त हुई।' उसने कहा- 'कृतपुण्य के पुत्र ने मुझे दी है।' राजा संतुष्ट हुआ और कहा- 'यह और किसकी हो सकती है?' उसने कृतपुण्य को बुलाया और अपनी पुत्री का विवाह उसके साथ कर दिया। साथ ही कुछ देश भी उसको दे दिए। वह भोग भोगता रहा। गणिका ने जब सना कि कतपण्य राजा बन गया है, तो वह भी वहां आकर बोली-'इतने समय तक तुम्हारे विरह में मैंने वेणी भी नहीं बांधी। सभी स्थानों पर तुम्हारी खोज की, वैतालिक भेजे। अब तुम यहां मिले हो।' कृतपुण्य ने अभयकुमार से कहा-'मेरी चार पत्नियां हैं पर मैं उनका घर नहीं जानता।' तब अभय ने एक मंदिर बनवाया और कृतपुण्य सदृश एक लेप्ययक्ष बनाया। नगर में उस मंदिर के यक्ष की पूजा की घोषणा करवाई। दो द्वार बनवाये। एक से प्रवेश और दूसरे से निर्गम। वहां द्वार के पास कृतपुण्य और अभय-दोनों आसन बिछाकर बैठ गए। कौमुदी उत्सव की घोषणा करते हुए कहा गया- 'मंदिर में प्रवेश और प्रतिमा की अर्चना सभी महिलाओं को करनी है।' लोग भी आए और महिलाएं भी आईं। वे चारों महिलाएं अपने बच्चों के साथ वहां आईं। बच्चों ने कृतपुण्य को पहचान लिया और बापू, बापू कहते हुए उसकी गोद में बैठ गए। उसने भी पत्नियों को पहचान लिया। उसने स्थविरा की प्रताड़ना की और पत्नियों को बुला लिया। अब वह सातों के साथ भोग भोगते हुए रहने लगा। एक बार भगवान् वर्द्धमान वहां समवसृत हुए। कृतपुण्य ने भगवान् को वंदना कर पूछा-'मेरी संपत्ति और विपत्ति का कारण क्या है ?' भगवान् बोले-'संपत्ति का कारण है-मुनि को पायसदान।' वह वैराग्य से प्रव्रजित हो गया। यह दान से प्राप्त बोधि है। १०५. विनय से सामायिक की प्राप्ति (पुष्पशालसुत) मगध जनपद के गोब्बरग्राम में पुष्पशाल नाम का गाथापति था। उसकी पत्नी का नाम भद्रा और १. आवनि. पृ. ५४७, आवचू. १ पृ. ४६६-४६९, हाटी. १ पृ. २३५-२३७, मटी. प. ४६४, ४६५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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