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________________ आवश्यक नियुक्ति ४३७ सोचा, किस उपाय से मेरा इस तरुणी के साथ मिलाप हो? उसने एक तापसी को दान-मान देकर उस तरुणी के पास भेजा। वह तापसी तरुणी के पास जाकर बोली-'अमुक तरुण तुमको पूछ रहा था। उस समय वह बर्तनों को राख से मांज रही थी। तापसी की बात सुनकर वह रुष्ट हो गई और राख से लिप्त हाथ से उस तापसी की पीठ आहत की। उसकी पीठ पर पांचों अंगुलियों के निशान अंकित हो गए। तरुणी ने उस तापसी को पिछवाड़े से निकाल दिया।' तापसी उस तरुण के पास जाकर बोली- 'वह तो तुम्हारी बात भी सुनना नहीं चाहती।' तापसी से सारी बात सुनकर तथा उसकी पीठ पर अंकित अंगुलियों के चिह्न देखकर तरुण जान गया कि कृष्णपक्ष की पंचमी को बुलाया है। तरुण ने पुन: तापसी को यह जानने के लिए भेजा कि कहां मिलना है? तापसी गई तब तरुणी कुछ शरमाती हुई-सी उसे आहत करने लगी तथा अशोकवाटिका की बाड़ से उसे बाहर निकाल दिया। वह तरुण के पास जाकर बोली-'भद्र! वह तो तेरा नाम भी सुनना नहीं चाहती। तरुण ने पूरी बात तापसी से पूछी और यह जान लिया कि उसे कहां मिलना है?' वह पिछवाड़े के द्वार से वहां गया और तरुणी को साथ ले अशोकवाटिका में विश्राम करने लगा। दोनों सो गए । श्वसुर ने यह देख लिया। वह वहां आया, जहां दोनों सो रहे थे। उसने जान लिया कि वधू के साथ सोने वाला उसका पुत्र नहीं है। फिर वह धीरे से वधू के एक पांव से एक नुपूर निकालकर ले गया। वह तरुणी जाग गई। उसने उस तरुण को उठा कर कहा-'जल्दी भागो यहां से। अवसर आने पर मेरी सहायता करना।' वह तरुण वहां से चला गया। तरुणी अपने घर गई और पति से बोली- 'यहां गर्मी बहुत है। हम अशोकवाटिका में चलें और वहीं सो जाएं।' दोनों अशोकवाटिका में जाकर सो गए। कुछ ही समय पश्चात् उस तरुणी ने अपने पति को जगाकर कहा-'क्या यह तुम्हारे कुल के अनुरूप है? श्वसुर अभी मेरे पांव से नुपूर निकालकर ले गए।' पति बोला-'अभा सो जाओ, प्रातः वह मिल जाएगा।' पुत्र ने स्थविर पिता से रुष्ट होकर कहा-'विपरीत आचरण करने लगे हो?' स्थविर पिता बोला- 'मैंने वधू को किसी दूसरे पुरुष के साथ सोते हुए देखा था।' विवाद होने पर वधू बोली- 'मैं आत्मा की शुद्धि करूंगी-धीज करूंगी।' पुत्र और पिता ने कहा- 'अच्छा है करो।' वह स्नान कर यक्षगृह की ओर गई। वहां यह बात प्रसिद्ध थी कि जो अपराधी होगा वह यक्षमूर्ति की दोनों जंघाओं के बीच से निकलता हुआ वहीं फंस जाएगा और जो अपराधी नहीं होगा, वह उस अन्तराल से निकल जाएगा. फंसेगा नहीं। तरुणी के कथनानुसार वह तरुण पिशाच का रूप बनाकर उसी यक्ष मंदिर में रह रहा था। उसने उस युवती को पकड़कर आलिंगन कर लिया। तरुणी यक्ष की मूर्ति के समक्ष जाकर लोगों को सुनाई दे, ऐसे स्वरों में बोली- 'मैंने अपने जीवन में पिता के द्वारा प्रदत्त पति तथा पिशाच को छोड़कर यदि किसी पर पुरुष से नाता जोड़ा हो तो हे यक्ष! तुम मुझे फंसा देना।' वह छूट गई। यक्ष ने सोचा-'देखो, इसने मुझे भी ठग लिया। इसमें कोई सतीत्व नहीं है।' यक्ष ने सोचा इतनी देर में वह यक्ष के पंजे से छूटकर चली गई। सभी लोगों ने स्थविर श्वसुर को बुरा-भला कहा। अधृति के कारण उसकी नींद उचट गई। राजा ने यह सुना तो उसे अन्तःपुर पालक के रूप में नियुक्त कर लिया। ____ आभिषेक हस्तिरत्न राजा के वासगृह के नीचे ही बंधा रहता था। एक रानी महावत में आसक्त थी। रात्रि में हाथी अपनी सूंड ऊपर उठाता और रानी उस पर पैर रखकर नीचे उतर जाती। वह रात महावत के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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