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________________ ४३६ परि. ३ : कथाएं यूथ आएगा। एक साधु के पैर में कांटा लगेगा। कांटा अपरिहार्य होगा। अन्य साधु कहेंगे- 'कांटे की पीड़ा का शमन होने तक हम यहीं रहेंगे।' तब वह साध कहेगा-'आप सभी यहां रहकर मरने के बदले यहां से प्रस्थान कर दें, मैं अकेला अनशन कर लूंगा।' वह जबरन वहां रह जाएगा। कांटा नहीं निकलने से वह एक छायादार भूभाग में जाकर बैठ जाएगा। दूसरे मुनि चले जाएंगे। तब वह वानरयूथाधिपति उस प्रदेश में आएगा, जहां वह साधु बैठा था। वहां पहले से आए हुए वानर 'किलकिल' शब्द करेंगे। उनकी किलकिलाहट सुनकर यूथाधिपति रुष्ट होकर वहां आएगा। साधु को ध्यान से देखकर ईहा-अपोह करते हुए उसे ज्ञात होगा कि मैंने ऐसा रूप कहीं देखा है। जातिस्मृति के द्वारा उसे द्वारिका की स्मृति होगी। तब वह मुनि को वंदना करके उनके पैर में चभे शल्य को देखेगा। उसे चिकित्सा की पूरी विधि का स्मरण होगा। वह तत्काल पर्वत पर जाकर वहां से शल्योद्धारिणी तथा शल्यरोहिणी-दो औषधियां लेकर आएगा। सबसे पहले वह शल्योद्धारिणी औषधि का पैर पर लेप करेगा। एक महर्त्त के पश्चात शल्य स्वयं ही निकलकर बाहर आ जाएगा। फिर शल्यरोहिणी के लेप से घाव ठीक हो जाएगा। फिर वह वानर मुनि के समक्ष भूमि पर ये अक्षर लिखेगा- 'मैं वैतरणी नामक वैद्य पूर्वभव में द्वारिका में था।' मुनि ने भी यह नाम सुन रखा था। वह वानर को धर्म सुनाएगा। वानर भक्तप्रत्याख्यान कर तीन दिन तक जीवित रहेगा। वहां से मरकर सहस्रार देवलोक में देवरूप में उत्पन्न होगा। देवलोक में अवधिज्ञान का प्रयोग कर वह अपने मृत शरीर को देखेगा। वहां आकर देव मुनि को ऋद्धि बताकर कहेगा—'तुम्हारी कृपा से मुझे देवर्द्धि प्राप्त हुई है।' फिर वह वानर मुनि के शरीर को उन साधुओं के पास ले जाएगा। साधुओं के पूछने पर वह सारा वृत्तान्त बताएगा। इस प्रकार अनुकंपा के कारण उस वानर को सम्यक्त्वसामायिक, श्रुतसामायिक तथा चारित्राचारित्रसामायिक की प्राप्ति होगी। अन्यथा वह नरकप्रायोग्य कर्म बांधकर नरकगामी होता। वह देव योनि से च्युत होकर चारित्रसामायिक प्राप्त करेगा, फिर सिद्धि गति को प्राप्त होगा। १०२. अकामनिर्जरा से सामायिक की प्राप्ति बसंतपुर नगर में एक धनिक वधू नदी पर स्नान कर रही थी। एक तरुण ने उसे देखकर कहा'हे मदोन्मत्त हाथी के सूंड सी जंघा वाली सुदंरी! नदी तुझे पूछ रही है कि क्या तूने भलीभांति स्नान कर लिया? नदी के ये वृक्ष और मैं तेरे चरणों में नत हैं।' प्रत्युत्तर में वह बोली- 'नदियां सुभग हों तथा ये नदी के वृक्ष चिरकाल तक जीवित रहें। जो मुझे यह पूछ रहे हैं कि क्या तुमने भलीभांति स्नान कर लिया, हम उसके लिए प्रियता संपादित करने का प्रयत्न करेंगे।' तरुण उसका घर-द्वार नहीं जानता था। उसने सोचा नीतिकार कहते हैं कि- 'अन्नपान के द्वारा बालिकाओं का, विभूषा से यौवनस्थ नारियों का, उपचार के द्वारा वैश्या का तथा कठोर सेवा से वृद्धा का हरण किया जा सकता है, आकृष्ट किया जा सकता है।' उस तरुणी के साथ आने वाली बालिकाएं वृक्षों को देख रही थीं। वह तरुण उनके पास गया। उन्हें फल-फूल देकर पूछा- 'यह तरुणी कौन है ?' उन बालिकाओं ने कहा- 'अमुक सेठ की पुत्रवधू है।' तब उसने १. आवनि. ५४७, आवचू. १ पृ. ४६०, ४६१, हाटी. १ पृ. २३२, मटी. प. ४६१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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