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आवश्यक नियुक्ति
४२७ गए हैं। मैं ही भिक्षा के लिए जाऊं।' स्थविर स्वयं भिक्षा लेने गया। चिरकाल तक गृहवास में रहने के कारण वह लोगों के लिए परिचित था। वह घूम रहा था। उसे ज्ञात नहीं था कि द्वार कौनसा है और अपद्वार कौनसा? घूमते-घूमते वह एक घर में अपद्वार से प्रविष्ट हुआ। उस घर में उस दिन लड्ड (मिठाई) बने थे। गृहस्वामी बोला- 'तुम मुनि हो, अपद्वार से कैसे आए?' स्थविर बोला-'आती हुई लक्ष्मी के लिए क्या द्वार और क्या अपद्वार, जिस रास्ते से वह आए, वही सुंदर है।' गृहस्वामी ने अपने व्यक्तियों से कहा'इसको भिक्षा दो।' वहां उसे बत्तीस मोदक मिले। वह उन्हें लेकर स्थान पर आया। उसने भिक्षाचरी की आलोचना की। आचार्य बोले- 'परंपर से शिष्य-परंपरा चलाने वाले तुम्हारे बत्तीस शिष्य होंगे।' आचार्य ने स्थविर से पूछा- 'गृहस्थावस्था में यदि किसी राजकुल से विशेष द्रव्य प्राप्त होता तो किसको देते?' स्थविर बोला- 'ब्राह्मणों को।' आचार्य बोले- 'इसी प्रकार ये मुनि भी पूजनीय हैं। तुम्हारा यह प्रथम लाभ इनको दो।' स्थविर ने सभी साधुओं में बत्तीस मोदक बांट दिए। स्थविर स्वयं के लिए भक्तपान लाने पुन: प्रस्थित हुआ। उसे घृतमधु संयुक्त परमान्न मिला। उसने उसे स्वयं खाया। इस प्रकार वह स्थविर मुनि स्वयं की भिक्षा के लिए घूमता परन्तु अनेक बाल, दुर्बल मुनियों के लिए आधारभूत बन गया।
उस गच्छ में तीन पुष्यमित्र थे-दुर्बलिका पुष्यमित्र, घृतपुष्यमित्र और वस्त्रपुष्यमित्र । दुर्बलिका पुष्यमित्र स्मारक था, प्रत्यावर्तन करने वाला था। घृतपुष्यमित्र घी प्राप्त करने में कुशल था। उसकी यह लब्धि थी कि द्रव्यतः वह घृत का उत्पादन कर लेता था। क्षेत्रतः उज्जयिनी में। कालत:जेठ, आसाढ के महीनों में। भावतः एक गर्भवती ब्राह्मणी, जिसके पति ने यह सोचकर थोड़ा-थोड़ा घी इकट्ठा कर छह महीनों में एक घड़ा घी एकत्रित किया कि गर्भवती पत्नी के प्रसव के बाद काम आयेगा। घृतपुष्यमित्र उसके घर जाए और घी की याचना करे तो उसके पास अन्य घृत न होने पर भी ब्राह्मणी घी का पूरा घट उसे प्रसन्नता से दे देगी। इस प्रकार गच्छ के लिए जितने घृत की आवश्यकता होती, वह प्राप्त हो जाता। वह जाते समय मुनियों से पूछता-'किसको कितना घी चाहिए?' जितनी मांग होती, उतनी वह पूरी कर देता था।
वस्त्र पुष्यमित्र की वस्त्र के उत्पादन में ऐसी ही लब्धि थी। द्रव्यत: वस्त्र। क्षेत्रतः विदेश में अथवा मथुरा में। कालत: वर्षाकाल अथवा शीतकाल में। भावतः एक विधवा स्त्री, जिसने अत्यंत दुःखद स्थिति में भूख-प्यास और शीत से क्लान्त होते हुए सूत से साड़ी बुनी और यह सोचा कि कल इसे पहनूंगी। इतने में ही वस्त्र पुष्यमित्र ने उसकी याचना कर ली तो वह अत्यंत प्रसन्नता से वह वस्त्र दे देगी। गच्छ के लिए जितना वस्त्र आवश्यक होता था, वह उसकी पूर्ति कर देता।
दुर्बलिका पुष्यमित्र ने नौ पूर्वो का अध्ययन कर लिया था। वह रात-दिन उनका प्रत्यावर्तन करता था। इस प्रकार निरंतर प्रत्यावर्तन में लगे रहने से वह दुर्बल हो गया। यदि वह उनका पुनः स्मरण नहीं करता 'तो भूल जाने का भय रहता। दशपुर में उसके कुछेक बंधु रक्तपट के उपासक थे। वे आचार्य के पास आकर बोले-'हमारे साधु ध्यान करते हैं। आपके यहां ध्यान की परम्परा नहीं है।'
____ आचार्य बोले- 'हमारे यहां ध्यान की परंपरा है। आपका यह जो निजी दुर्बलिका पुष्यमित्र है, यह ध्यान के कारण इतना दुर्बल हुआ है। उन्होंने कहा- 'जब यह गृहस्थ अवस्था में था, तब स्निग्ध और पौष्टिक आहार करने के कारण बलिष्ठ था। अब यहां वैसा आहार प्राप्त नहीं होता अत: यह दुर्बल हो गया
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