________________
४२२
परि. ३ : कथाएं 'राजा प्रद्योत यहां क्यों आया?' खोज की गयी। दासी देवदत्ता को न देखकर राजा बोला- 'वह दासी को ले गया।' राजा ने प्रतिमा को देखने के लिए कहा। राजपुरुषों ने निवेदन किया कि प्रतिमा यथास्थान पर स्थित है। राजा प्रतिमा की पूजाबेला में वहां गया। उसने देखा कि प्रतिमा के पुष्प म्लान हो गए हैं। प्रतिमा का निरीक्षण करने पर ज्ञात हुआ कि मूल प्रतिमा नहीं, अपितु प्रतिरूपक है। आगंतुक ने प्रतिमा का भी हरण कर लिया है।
तब राजा ने प्रद्योत के वहां दूत भेजकर कहलवाया- "मुझे दासी से कोई प्रयोजन नहीं है लेकिन प्रतिमा को लौटा दो।' प्रद्योत इसके लिए तैयार नहीं हुआ। तब महाराज उदयन ने ज्येष्ठ मास में, दस राजाओं के साथ प्रद्योत पर आक्रमण कर दिया। मरुप्रदेश में जाते हुए स्कंधावार तृषा से मरने लगा। यह बात राजा तक पहुंची। राजा ने देवी प्रभावती का स्मरण किया। वह प्रगट हुई। उसने तीन पुष्करिणियां बनाईं–“एक आगे वाले स्कंधावार के लिए, एक मध्यवर्ती स्कंधावार के लिए तथा एक पृष्ठगामी स्कंधावार के लिए। सभी आश्वस्त हो गए।' राजा स्कंधावार के साथ उज्जयिनी पहुंचा और प्रद्योत से कहा-'निरपराध लोगों को मारने से क्या? हम दोनों के बीच युद्ध हो जाए। अश्व, रथ, हाथी अथवा पैदल जैसी तुम्हारी रुचि हो।' तब प्रद्योत ने कहा- 'हम रथ पर आरूढ़ होकर युद्ध करें परन्तु प्रद्योत अनलगिरि हाथी पर चढ़कर आया
और उदयन रथ पर।' उदयन ने प्रद्योत से कहा-'अहो! तुम सत्यप्रतिज्ञ नहीं हो। फिर भी तुम छूट नहीं सकोगे।' तब उदयन अपने रथ को चक्राकार घमाने लगा। हाथी उसके पीछे लग गया। उदयन जीत गया। हाथी जहां-जहां पांव रखता, उदयन वहां बाण फेंक देता। हाथी के पैर बिंध गए, वह भूमि पर गिर पड़ा। प्रद्योत जब उससे उतरने लगा तब उदयन के सैनिकों ने उसे बंदी बना लिया। सैनिकों ने उसके ललाट पर एक पट्ट बांध दिया, जिस पर अंकित था-'महाराज उदयन की दासी का पति।' उदयन अपने नगर की ओर प्रस्थित हुआ। प्रतिमा को वह नहीं ले जा सका। रास्ते में वर्षा आ जाने के कारण उसे बीच में ही रुकना पड़ा। दसों राजा साथ थे। आक्रमण के भय से उन्होंने वहां मिट्टी का एक प्राकार बनाया। बंदी के रूप में प्रद्योत भी साथ ही था। महाराज उदयन जो भोजन करता, वही भोजन प्रद्योत को भी दिया जाता। पर्युषणा का पर्व आ गया। तब सूपकार ने प्रद्योत से पूछा- क्या आज आप भोजन करेंगे?' प्रद्योत ने सोचा-'आज मैं मारा जाऊंगा।' उसने सूपकार से पूछा-'आज भोजन के लिए क्यों पूछ रहे हो?' सूपकार बोला'आज पर्युषणा है। महाराज उदयन आज उपवास करेंगे।' प्रद्योत ने कहा- 'मैं भी आज उपवास रखूगा।' मेरे भी माता-पिता प्रव्रजित हैं। मुझे ज्ञात नहीं था कि आज पर्युषणा है। राजा प्रद्योत बोला- 'जानता हूं, वह धूर्त है। मुझे इस प्रकार बंदी बनाकर रखने से उसकी पर्युषणा शुद्ध नहीं होगी।' यह सुनकर महाराज उदयन ने प्रद्योत को बंदीगृह से मुक्त कर दिया और उसके साथ क्षमायाचना की। ललाट पर लिखे पूर्व पट्ट के अक्षरों को आच्छादित करने के लिए स्वर्णपट्ट बंधवा दिया। उसे उसका राज्य लौटा दिया। उस दिन से पट्टबद्ध राजा होने लगे। इससे पूर्व 'मुकुटबद्ध' राजा होते थे। वर्षावास बीत जाने पर राजा अपने राज्य में चला गया। जो वणिग्वर्ग आया था, वह वहीं रुका रहा। दस राजा साथ रहने से वह नगर दशपुर कहलाने लगा।
१. आवचू. १ पृ. ३९७-४०१, हाटी. १ पृ. १९८-२००, मटी. प. ३९१-३९४।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org