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________________ आवश्यक नियुक्ति ८०. संगम देव के अन्य उपद्रव दूसरे दिन भगवान् बालुका नामक गांव की ओर चले। संगम ने वहां पांच सौ चोरों की विकुर्वणा की। बालुका में पैर धंसते थे । यह पिशाच अथवा पागल है, ऐसा कहकर एक-एक चोर ने भगवान् पर चढ़ कर उस बालुका को पार किया। भगवान् बालुका गांव में भिक्षा के लिए गए। संगम देव भगवान् का रूप बनाकर काणाक्षि से स्त्रियों को बाधित करने लगा । स्त्रियों ने उन्हें पीटा। आगे भगवान् सुभौम नगर में भिक्षा के लिए गए। वहां भी देव स्त्रियों के प्रति अंजलिकर्म करने लगा। स्त्रियों ने पीटा। वहां से भगवान् सुच्छत्रा गांव में गए। देव ने वहां भगवान् के रूप में विट् की विकुर्वणा की और अट्टहास करता हुआ, नाचता-गाता हुआ गांव में चलने लगा, अशिष्ट बोलने लगा। वहां भी भगवान् की पिटाई हुई। वहां से मलय गांव में देव ने भगवान् का उन्मत्त रूप बनाया और स्त्रियों को त्रास देने लगा, पकड़ने लगा । लड़कों ने वहां उन पर कचरा डाला, ढेलों से मारा। वहां से भगवान् हस्तिशीर्ष नगर में गए। देव ने भगवान् को भव्य रूप में प्रस्तुत किया। उनकी जननेन्द्रिय को स्तब्ध कर दिया। जब स्त्री दृष्टिगोचर होती तब वह उत्थापित होती । यह देखकर लोगों ने भगवान् को पीटा। भगवान् ने सोचा कि यह देव अत्यधिक लोकापवाद कर रहा है, साथ ही भोजन भी अनेषणीय बना रहा है अतः अब मैं गांव में प्रवेश न करके बाहर ही रहूंगा। भगवान् गांव के बाहर चले गए। जहां महिलाओं का समूह होता, वहां वह देव जननेन्द्रिय को स्तब्ध कर देता । भगवान् की उस स्थिति में इंद्र ने उनकी पूजा की। तभी से ढोंढ शिव का प्रचलन हुआ। भगवान् ने सोचा कि यह देव अत्यन्त अवहेलना कर रहा है अतः एकान्त में रहना ही श्रेयस्कर है । भगवान् को एकान्त में देखकर देव ने उपहास करते हुए कहा- 'मैं आपको विचलित नहीं कर सकता पर आप गांव में चलें तब आपका पराक्रम देखूंगा।' इंद्र ने वहां आकर भगवान् की संयमयात्रा और अव्याबाध प्रासुक विहार की सुखपृच्छा की और वंदना करके चला गया। ३९७ वहां से भगवान् तोसलि गांव के बाहर ही प्रतिमा में स्थित हो गए। उस अभव्य देव ने सोचा'ये गांव के अंदर नहीं जाएंगे अतः मैं यहीं उपसर्ग पैदा करूं।' वह गांव में गया। वहां क्षुल्लक का रूप बनाकर घरों में सेंध लगाने लगा। उपकरणों सहित गृहस्वामी ने उसे पकड़ा और पीटने लगा। तब वह देव बोला- 'मुझे मत पीटो। इस बारे में मैं कुछ नहीं जानता। मेरे गुरु ने मुझे ऐसा करने के लिए भेजा है । ' लोगों ने पूछा—'तुम्हारा गुरु कहां है ?' देव ने कहा- 'गांव के बाहर उद्यान में मेरे गुरु बैठे हैं। लोग उद्यान में आए। उन्होंने भगवान् को पकड़कर पीटा और वध के लिए ले जाने लगे। इसी बीच भूतिल नामक इंद्रजालिक वहां आया। उसने कुंडग्राम में भगवान् को पहले देखा था। उसने भगवान् को मुक्त कराया और कहा - 'ये सिद्धार्थ राजा के पुत्र हैं ।' लोगों ने भगवान् से क्षमायाचना की और उस क्षुल्लक की खोज की लेकिन वह नहीं मिला तो लोगों ने जान लिया कि यह देवकृत उपसर्ग है । वहां से भगवान् मोसलि गांव गए। वहां गांव के बाहर प्रतिमा में स्थित हो गए। वहां भी वह क्षुल्लक का रूप बनाकर सेंध लगाने का मार्ग देखने लगा। उसने भगवान् के पास उपकरणों की विकुर्वणा कर दी। लोगों ने उस क्षुल्लक को पकड़कर पूछा - 'तुम यहां क्या खोज रहे हो ?' वह बोला- 'मेरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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