SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 454
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३९३ आवश्यक नियुक्ति ने एक बकरे को मारकर, उसके खून की गंध फैलाकर, प्रसूति के योग्य कपड़े पहनाकर पत्नी को नेपथ्य के पीछे सुला दिया। प्रसूत महिला के लिए जो करणीय था, वह उसने किया जिससे लोगों को कोई भ्रम न हो। वह बालक वहां बढ़ने लगा। उसकी मूल माता को चोरों ने चंपा में बेच दिया। स्थविरा वेश्या ने उसे अपनी बेटी के रूप में रख लिया। स्थविरा ने उसे वेश्या के सारे उपचार सिखा दिए। वह प्रसिद्ध गणिका हो गयी। वह गोशंखी पुत्र तरुण हो गया। एक बार वह मित्रों के साथ घी की गाड़ियां को लेकर चंपा नगरी गया। वहां उसने अपने मित्रों और नागरिकों को यथेच्छ क्रीड़ा करते हुए देखा। उसकी भी काम-क्रीड़ा करने की इच्छा हो गयी। वह वेश्या के बाड़े में गया। उसे वेश्या बनी हुई अपनी माता पसंद आई। उसने उसका मूल्य दिया। स्नान और विलेपन से निवृत्त होकर वह वहां जाने के लिए प्रस्थित हआ। रास्ते में उसका पैर गंदगी से लिप्त हो गया। उसे ज्ञात नहीं हुआ कि पैर पर क्या लगा है ? इसी बीच उसके कुलदेवता ने सोचा कि कहीं यह अकृत्य का आचरण न कर ले अत: इसे प्रतिबोध देना चाहिए। रास्ते में देव ने गोबाड़े में गाय सहित बछड़े की विकुर्वणा की। गोशंखी पुत्र उधर से गुजरा । उसने अपने पैर की गंदगी को बछड़े के शरीर से पोंछा। तब वह बछड़ा गाय से बोला- 'अम्मा! यह व्यक्ति अमेध्यलिप्त पैर को मेरे शरीर से साफ क्यों कर रहा है?' तब वह गाय मनुष्य की भाषा में बोली- 'पुत्र! तुम इतने अधीर क्यों हो रहे हो?' यह व्यक्ति आज अपनी माता के साथ अकृत्य का सेवन करेगा। जब यह ऐसा अकृत्य कर सकता है तो और दसरे अकृत्य क्यों नहीं कर सकता? यह बात सुनकर उस गोशंखी पुत्र को आशंका हो गयी। उसने निश्चय किया कि मैं उस वेश्या से पूछूगा। वह वेश्या के पास गया और पूछा- 'तुम कौन हो और तुम्हारी उत्पत्ति कैसे हुई ?' उसने स्त्रियोचित हाव-भाव प्रदर्शित किए लेकिन वह उससे प्रभावित नहीं हुआ। गोशंखी पुत्र बोला- 'मैं तुम्हें इतना ही मूल्य और दूंगा, तुम मुझे यथार्थ बात बताओ।' उसने शपथ दिलाकर सारी बात बता दी। गोशंखी पुत्र तत्काल अपने गांव गया और अपने माता-पिता से यथार्थ बात पूछी। जब उन्होंने कुछ बताना नहीं चाहा तब वह अनशन लेकर बैठ गया। उसको अनशन में देखकर माता-पिता ने यथार्थ स्थिति बता दी। उसने वेश्या बनी हई अपनी माता को छडाया और विरक्त हो गया। कामभोगों की यह स्थिति है यह सोचकर वह पाणामा प्रव्रज्या से दीक्षित हो गया और वैश्यायन के नाम से प्रसिद्ध हो गया। ७४. गोशालक और वैश्यायन भगवान् कूर्मग्राम पहुंचे। उस ग्राम के बाहर बालतपस्वी वैश्यायन आतापना ले रहा था। सूर्य के आतप से उसकी जटा से जूएं नीचे गिर रही थीं। वह तपस्वी जीवदया से प्रेरित होकर उन जूओं को पुनः जटा में स्थापित कर रहा था। यह देखकर गोशालक तपस्वी के निकट जाकर बोला-'तुम ज्ञानी मुनि हो अथवा जूओं के शय्यातर?' स्त्री हो अथवा पुरुष? यह सुनकर तपस्वी मौन रहा। उसने दो-तीन बार ऐसे १. आवनि. ३०८, आवचू. १ पृ. २९८, हाटी. १ पृ. १४२, मटी. प. २८६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy