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भूमिका
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नियुक्ति गाथाओं के हार्द को समझना सरल काम नहीं है । प्रायः निर्युक्ति - साहित्य पर भाष्य चूर्णि एवं
टीका आदि व्याख्या ग्रंथ मिलते हैं।
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सामायिक निर्युक्ति की प्रसिद्धि, लोकप्रियता एवं वैशिष्ट्य का स्वयंभू प्रमाण है इस पर सर्वाधिक व्याख्या - साहित्य का लिखा जाना । इस पर मुख्यतः निम्न व्याख्या ग्रंथ मिलते हैं - १. भाष्य, २. आचार्य जिनदास कृत चूर्णि, ३. हारिभद्रीया टीका, ४. मलयगिरी कृत टीका, ५. आवश्यकनिर्युक्ति दीपिका ६. आवश्यक निर्युक्ति अवचूर्णि ७. आवश्यक टिप्पणकम् ।
भाष्य
नियुक्ति के बाद दूसरी व्याख्या भाष्य है। आवश्यक पर दो भाष्य मिलते हैं - आवश्यक मूलभाष्य एवं विशेषावश्यक भाष्य । डॉ. मोहन लाल मेहता के अनुसार आवश्यक सूत्र पर तीन भाष्य लिखे गए हैं - १. मूलभाष्य २. भाष्य ३. विशेषावश्यक भाष्य । वर्तमान में भाष्य नाम से अलग न गाथाएं मिलती हैं और न ही कोई स्वतंत्र कृति अतः दो भाष्यों का ही अस्तित्व स्वीकार करना चाहिए। मूलभाष्य की अनेक गाथाएं विशेषावश्यक भाष्य की अंग बन चुकी हैं फिर भी हारिभद्रीय एवं मलयगिरिकृत टीका में मूलभाष्य 'के उल्लेख से अलग गाथाएं मिलती हैं। इसका नाम मूलभाष्य क्यों पड़ा ? इसके दो हेतु हो सकते हैं
• यह विशेषावश्यक भाष्य से पहले लिखा गया इसलिए इसको अलग करने के लिए इसका नाम मूलभाष्य रख दिया गया।
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यह नियुक्ति की कुछ मुख्य एवं महत्त्वपूर्ण गाथाओं की व्याख्या करता है अतः इसका नाम मूलभाष्य प्रसिद्ध हो गया ।
आवश्यक निर्युक्ति की हस्तप्रतियों में मूलभाष्य की गाथाओं के आगे मूलभाऽव्या अथवा मूलभाव्या का उल्लेख है। लेकिन विशेषावश्यक भाष्य की गाथाओं के आगे अन्या व्या अथवा अन्याऽव्या का उल्लेख है अर्थात् वहां विशेषावश्यक भाष्य की गाथाओं के लिए अन्यकर्तृकी गाथा का उल्लेख मिलता है। चूर्णि में दोनों भाष्यों की गाथाओं की व्याख्या है पर वहां भाष्य या मूलभाष्य जैसा कोई संकेत नहीं है । मूलभाष्य और विशेषावश्यक भाष्य के कर्त्ता एक हैं या दो इस बारे में गहन चिंतन की आवश्यकता है। विशेषावश्यक भाष्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण द्वारा लिखा गया लेकिन आवश्यक निर्युक्ति की गाथाओं को स्पष्ट करने के लिए द्वितीय भद्रबाहु द्वारा मूलभाष्य लिखा गया, ऐसा संभव लगता है । इसकी पुष्टि निशीथ चूर्णि से होती है । इमा भद्दबाहुसामिकता प्रायश्चित्तव्याख्यान गाथा' इस उल्लेख से स्पष्ट है कि आचार्य भद्रबाहु ने निर्युक्ति की व्याख्या रूप गाथाएं भी लिखीं थीं।
मूलभाष्य एवं विशेषावश्यक भाष्य की कुछ गाथाएं निर्युक्ति की थीं लेकिन कालान्तर में भाष्य के साथ जुड़ गयीं। इसी प्रकार दोनों भाष्यों की कुछ गाथाएं भी आवश्यक निर्युक्ति के साथ जुड़ गयीं । हमने पादटिप्पण में सहेतुक इसका निर्देश किया है। मूलभाष्य आकार में लघु है । उसमें प्रसंगवश कुछ मुख्य विषय संबंधी गाथाओं की व्याख्या है लेकिन विशेषावश्यक भाष्य का स्वतंत्र अस्तित्व है।
१. निपीचू पृ. ७६ ।
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