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________________ ४२ आवश्यक नियुक्ति में नहीं जोड़ा । जैसे ५४७/१ गाथा स्पष्टतया भाष्यकार अथवा अन्य आचार्यों द्वारा जोड़ी गयी प्रतीत होती है क्योंकि गा. ५४६, ५४७ में नियुक्तिकार ने सामायिक-प्राप्ति के ११ हेतु एवं उससे सम्बन्धित कथाओं का संकेत किया है। ५४७/१ में प्रथम 'वैद्य' कथा का उल्लेख है। नियुक्तिकार अन्य कथाओं का विस्तार न करके केवल एक कथा का ही उल्लेख करें यह बात तर्कसंगत प्रतीत नहीं होती। - इसी प्रकार ५६५/१-१४-ये चौदह गाथाएं भी कथाओं के विस्तार रूप हैं अतः नियुक्ति की नहीं होनी चाहिए। २७. प्रायः नियुक्तिकार किसी एक गाथा की अधिक विस्तृत व्याख्या नहीं करते।५८८ वीं गाथा की व्याख्या पच्चीस गाथाओं में हुई है।५८८/१-२५ इन पच्चीस गाथाओं में औत्पत्तिकी आदि बुद्धि संबंधी कुछ गाथाएं नंदीसूत्र से ली गयी हैं तथा कुछ भाष्य गाथाएं भी हो सकती हैं। २८. कुछ सम्बन्ध गाथाएं भी आवश्यक नियुक्ति के साथ जुड़ गयी हैं। ६४५/१, २ इन दोनों गाथाओं में मंगलाचरण की बात कही है, जबकि आवश्यक नियुक्ति के प्रारंभ में भी निर्यक्तिकार ने मंगलाचरण नहीं किया है। महे. और स्वोविभा. में इन गाथाओं का उल्लेख नहीं है। ये दोनों सम्बन्ध गाथाएं हैं और बाद के किसी आचार्य द्वारा जोड़ी गयी प्रतीत होती हैं। २९. कुछ गाथाएं किसी व्याख्या ग्रंथ में नहीं मिलती, मात्र हस्त आदर्शों में ही मिलती हैं। वहां हमने विषय के पौर्वापर्य एवं संबद्धता के आधार पर गाथा का निर्णय किया है। कुछ गाथाओं पर पुनः विमर्श प्रकाशित होने के कारण कुछ गाथाओं के बारे में हम पादटिप्पण में विमर्श प्रस्तुत नहीं कर सके। यहां उनके बारे में कुछ चिंतनीय बिंदु प्रस्तुत हैं• नियुक्तिकार ने ग्यारह गणधरों के प्रसंग में महावीर के मुख से केवल संशय प्रस्तुत करवाए हैं, उनका समाधान प्रस्तुत नहीं किया। इस संदर्भ में हमारा चिंतन है कि समाधान प्रस्तुत करने वाली एक मुख्य गाथा नियुक्ति की थी लेकिन कालान्तर में वह भाष्य के साथ जुड़ गयी क्योंकि भाष्यकार ने गणधरवाद पर विस्तार से विमर्श प्रस्तुत किया है। • गा. ३२०, ३२१-ये दोनों गाथाएं नियुक्ति की नहीं होनी चाहिए। संगमदेव के उपसर्ग के बीच ये दोनों गाथाएं विषय के प्रसंग की दृष्टि से अतिरिक्त और अप्रासंगिक प्रतीत होती हैं। सभी व्याख्या ग्रंथों में नियुक्ति गाथा के क्रम में होने के कारण हमने इनको नियुक्ति गाथा के क्रमांक में रखा है। • ५३६ वीं गाथा भी नियुक्ति की नहीं होनी चाहिए क्योंकि दश दृष्टान्तों में नियुक्तिकार ने 'जुग' दृष्टान्त की ही व्याख्या क्यों की? यदि वे व्याख्या करते तो सभी दृष्टान्तों की करते, केवल एक की नहीं। यद्यपि गाथा-निर्धारण में हमने प्राचीन ग्रंथों को अधिक महत्त्व दिया है लेकिन एकान्त रूप से न हमने चूर्णि को प्रमाण माना है और न ही भाष्य अथवा टीका को। कहीं-कहीं स्वतंत्र चिंतन का उपयोग भी किया है। गाथा-निर्धारण का यह प्राथमिक प्रयास है, दावा नहीं किया जा सकता कि यह निर्धारण सही ही हुआ है। इस क्षेत्र में अभी गहन चिंतन की पर्याप्त संभावनाएं हैं। व्याख्या-ग्रंथ नियुक्तियां संक्षिप्त शैली में पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या प्रस्तुत करती हैं। बिना व्याख्या ग्रंथों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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