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भूमिका
४१ लगा, वहां उस गाथा को मूल नियुक्तिगाथा के क्रमांक में जोड़ा है। दूसरे स्थान पर उनको गाथा के क्रम में रखा है पर मूल नियुक्ति गाथा के क्रमांक में नहीं जोड़ा, जैसे-२४५ वाली गाथा २४८/१ क्रमांक में पुनरुक्त हुई है पर उसे मूल क्रमांक में नहीं जोड़ा है। इसी प्रकार २११/३ गा. २१४ में पुनरुक्त हुई
है, वहां उसे मूल क्रमांक में जोड़ा है। ऐसी पुनरावृत्ति और भी गाथाओं की हुई है। २०. संवादी गाथाएं एक ही ग्रंथकार की रचना नहीं हो सकती। जहां कहीं एक ही भाव वाली पाठभेदयुक्त
संवादी गाथाएं हैं, वहां हमने चूर्णि एवं भाष्य के आधार पर मूल नियुक्ति का निर्णय किया है। जैसे ३३० वी गाथा स्वोविभा और चूर्णि में है। लेकिन उन्हीं भावों वाली ३३०/१, २ ये दो गाथाएं टीकाओं में निगा के क्रम में मिलती हैं। कोविभा में ३३०/१ भाष्यगाथा (१९६७) के क्रम में तथा ३३०/२ नियुक्ति गाथा (को ३९८/१९६८) के क्रम में है। यहां चूर्णि का क्रम संगत प्रतीत हुआ क्योंकि
३३०/१, २ ये दोनों गाथाएं ३३० वीं गाथा की संवादी एवं व्याख्यात्मक हैं। २१. कहीं-कहीं अन्य ग्रंथ की गाथाएं भी आवश्यक नियुक्ति का अंग बन गयी हैं। समवसरण वक्तव्यता
के प्रसंग में नियुक्तिकार ने ३५७-६२ इन छह गाथाओं में समवसरण का संक्षिप्त वर्णन कर दिया है। ३५६/१, २, ३६०/१, २ तथा ३६२/१-३८-ये ४२ गाथाएं समवसरण से सम्बन्धित होने के कारण बृहत्कल्पभाष्य से लेकर यहां जोड़ दी गयी हैं। ये व्याख्यात्मक सी प्रतीत होती हैं अत: हमने इनको मूल नियुक्तिगाथा के क्रमांक में नहीं जोड़ा है।
विषय की स्पष्टता के लिए भी अन्य ग्रंथों की गाथाएं प्रसंगवश बाद के आचार्यों या लिपिकारों द्वारा जोड़ दी गयी हैं। जैसे ४३६/१-५७-ये ५७ गाथाएं सामाचारी को स्पष्ट करने के लिए अन्य ग्रंथ से यहां जोड़ी गयी हैं। भाष्य में ये गाथाएं अव्याख्यात हैं। टीकाओं में ये निगा के क्रम में हैं। इनको निगा के क्रम में रखने से चालू व्याख्या-क्रम में व्यवधान आता है। दूसरी बात जब ४३२ वी द्वारगाथा के द्वारों की नियुक्तिकार एक या दो गाथाओं में व्याख्या कर रहे हैं तो फिर 'उवक्कम द्वार' की व्याख्या
५७ गाथाओं में क्यों करेंगे? ये गाथाएं स्पष्टतया बाद में प्रक्षिप्त लगती हैं। २२. कुछ संग्रह गाथाएं भी प्रसंगवश नियुक्ति गाथाओं के साथ जुड़ गई हैं। जैसे-४३३/१ गाथा असम्बद्ध
सी प्रतीत होती है। २३. कहीं-कहीं मूलभाष्य की गाथा को भी विषय की क्रमबद्धता की दृष्टि से नियुक्ति के क्रमांक में रखा
है। गाथा ५०० हाटी, मटी और दीपिका में 'मूलभाष्यकृद्' उल्लेख के साथ मूलभाष्य के क्रमांक में है। अ, ब और ला प्रति में भी इसके लिए मूलभाष्य गाथा का संकेत है लेकिन हमने विषय की क्रमबद्धता के आधार पर इसे नियुक्ति गाथा के क्रम में रखा है। विशेषावश्यक भाष्य में भी यह निगा
के क्रम में है। २४. भाष्य में नियुक्ति गाथा के क्रम में होने पर भी हमने कहीं-कहीं गाथा को नियुक्ति गाथा के क्रम में नहीं रखा है। जैसे ३६३/१, २ ये दोनों गाथाएं भाष्य में नियुक्तिगाथा के क्रम में हैं। लेकिन ये अतिरिक्त
एवं प्रक्षिप्त सी लगती हैं। इन दोनों गाथाओं से विषय की क्रमबद्धता में भी अवरोध सा आता है। २५. आर्य वज्र के जीवन से सम्बन्धित ४७६/१-९-ये नौ गाथाएं स्पष्ट रूप से प्रसंगवश बाद में जोड़ी गयी
प्रतीत होती हैं। ४७६ वीं गाथा से ४७७ वीं गाथा का सीधा सम्बन्ध जुड़ता है। २६. कहीं-कहीं सभी व्याख्याग्रंथों में नियुक्ति के क्रम में होने पर भी हमने उसको नियुक्ति गाथा के क्रमांक
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