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________________ आवश्यक नियुक्ति ३३९ से कहा- 'जा, वह बाण ले आ।' पुत्र बाण लाने दौड़ा। पिता ने पीछे से दूसरा बाण फेंका। बाण लगने पर पुत्र ने पूछा-'पिताजी क्या आपने बाण फेंका? मुझे वह लगा।' पिता ने पुन: बाण फेंका। पिता को बाण फेंकते देख पुत्र रोने लगा। पिता ने बाणों द्वारा उसको मार डाला।' १७. नेवला एक चारक की पत्नी गर्भवती हुई। उसने एक पुत्र का प्रसव किया। उसी दिन एक मादा नेवला ने भी प्रसव किया। चारक की पत्नी ने सोचा कि मेरे पुत्र के लिए यह नेवला शिशु एक खिलौना बना रहेगा। यह सोचकर वह उसको यथेष्ट मात्रा में दूध आदि पिलाने लगी। एक बार चारक पत्नी ने धान कूटने के लिए जाते समय अपने पुत्र को मंचिका पर सुला दिया। वह चली गई। इतने में ही एक सर्प मंचिका पर चढ़ा और बालक को डस दिया। बालक मर गया। मंचिका से उतरते समय सर्प को नेवले ने देख लिया। वह उस पर झपटा और उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले और रक्त से सने मुंह से चारक-पत्नी के पास जाकर चरणों में लुठने लगा। चारक पत्नी ने सोचा- 'इसने मेरे पुत्र को मार डाला है।' तब उसने आवेश में मूसल से उसको आहत कर मार डाला। वह दौड़ती हुई पुत्र के पास गई और खंड-खंड हुए सर्प को देखा। अब उसका दुःख दुगुना हो गया। १८. कमलामेला द्वारिका नगरी में बलदेव का पुत्र निषध रहता था। उसके प्रभावती रानी से सागरचन्द्र नामक पुत्र हुआ, जो अत्यन्त रूपवान् था। शांब आदि सभी के लिए वह प्रीतिपात्र था। उसी नगरी के वास्तव्य एक राजा की कन्या कमलामेला बहुत सुन्दर थी। उसका वाग्दान (सगाई) महाराज उग्रसेन के पोते धनदेव के साथ हुआ था। एक दिन नारद सागरचन्द्र के पास आए। सागरचन्द्र ने उनका स्वागत किया और आसन-प्रदान कर पूछा-'भगवन् ! कहीं आपने कुछ आश्चर्य देखा है ?' नारद बोले- 'हां, देखा है।' 'कहां और कैसा आश्चर्य देखा?' सागरचन्द्र ने पूछा। नारद बोले-'यहीं द्वारिका नगरी में कमलामेला कन्या एक आश्चर्य है।' सागरचन्द्र ने पूछा--- 'क्या उसका वाग्दान हो चुका है ?' 'हां'-नारद ने कहा। सागरचन्द्र ने कहा'प्रभो! उसका मेरे साथ सम्बन्ध कैसे हो सकता है ?' 'मैं नहीं जानता' ऐसा कहकर नारद ऋषि वहां से चले गए। सागरचन्द्र नारद का कथन सुनकर खिन्न हो गया। वह न शांति से बैठ सकता था और न सो सकता था। अब वह एक फलक पर कमलामेला का चित्र बनाता हुआ उसके नाम की रटन लगाने लगा। कलह का कारण खोजते हुए नारद कमलामेला के पास पहुंच गए। उसने भी पूछा-'भंते ! क्या आपने कोई नया आश्चर्य देखा है ?' नारद बोले- 'दो आश्चर्य देखे हैं। रूप में बलदेव का पुत्र सागरचन्द्र और विरूपता में उग्रसेन का पौत्र धनदेव।' इतना कहकर नारद वहां से भी चले गए। यह सुनकर १. आवनि ११९, आवचू. १ पृ. ११२, हाटी. १ पृ. ६२, मटी. प. १३६, बृभाटी. पृ. ५५ । २. आवनि ११९, आवचू. १ पृ. ११२, हाटी. १ पृ. ६२, मटी. प. १३६, बृभाटी. पृ. ५६ । ३. हारिभद्रीय टीका में उग्रसेन के पुत्र नभसेन के साथ कमलामेला की सगाई हुई थी। ४. चूर्णि में नारदऋषि पहले कमलामेला से मिलते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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