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आवश्यक नियुक्ति ५६६. नमस्कार के ये दस द्वार हैं१. उत्पत्ति
६. वस्तु २. निक्षेप
७. आक्षेप ३. पद
८. प्रसिद्धि ४. पदार्थ
९. क्रम ५. प्ररूपणा
१०. प्रयोजनफल। ५६७. नमस्कार उत्पन्न है अथवा अनुत्पन्न-इसका समाधान नयों से होता है। आदिनैगम अर्थात् सर्वग्राही नैगम नय के अनुसार नमस्कार अनुत्पन्न है। शेष नयों के अनुसार वह उत्पन्न है। प्रश्न होता है कि यदि नमस्कार उत्पन्न है तो कहां से उत्पन्न होता है? उत्पत्ति में त्रिविध स्वामित्व है-अर्थात् तीन कारणों से नमस्कार उत्पन्न होता है। ५६८. समुत्थान', वाचना' और लब्धि-ये नमस्कार की उत्पत्ति के त्रिविध कारण हैं। प्रथम तीन नयोंनैगम, संग्रह और व्यवहार में उपर्युक्त समुत्थान आदि तीनों नमस्कार के कारण बनते हैं। ऋजुसूत्र नय पहले अर्थात् समुत्थान के अतिरिक्त शेष दो को कारण मानता है। शेष नय केवल लब्धि को ही नमस्कार की उत्पत्ति का कारण मानते हैं।' ५६९. (नमस्कार शब्द के चार निक्षेप हैं-नाम नमस्कार, स्थापना नमस्कार, द्रव्य नमस्कार, भाव नमस्कार) निह्नव आदि का द्रव्य नमस्कार है । सम्यग्दृष्टि का नमस्कार भाव नमस्कार है। नमः नैपातिक पद है। इसका पदार्थ है१. द्रव्य संकोचन-हाथ, शिर, पैर का संकोच करना। २. भाव संकोचन-विशुद्ध मन का नियोजन।
१. आवचू. १ पृ. ५०२; समुत्थान-देह का सम्यक् उत्थान अथवा खड़े होकर आचार्य आदि की उपस्थापना करना। २. वाचना-वाचनाचार्य की निश्रा में वाचना, जैसे महावीर ने गौतम को दी। ३. लब्धि-तदावरणीय कर्म के क्षयोपशम से बिना उपदेश के भी भव्य जीव को किसी निमित्त से नमस्कार की प्राप्ति होना। ४. गा. ५६७ एवं ५६८-इन दो श्लोकों में नमस्कार की उत्पत्ति और अनुत्पत्ति का विमर्श नयों के आधार पर प्रस्तुत किया
गया है। नैगम नय के मुख्यतः दो भेद हैं-सर्व संग्राही और देश संग्राही। आदि नैगम नय सामान्य मात्र पर अवलम्बित होने के कारण उत्पाद और व्यय से रहित है अत: उसके अनुसार नमस्कार अनुत्पन्न है क्योंकि नमस्कार त्रैकालिक है। इसका कोई उत्पादक नहीं होता। जब भरत और ऐरवत में यह व्युच्छिन्न होगा, तब महाविदेह में इसका सद्भाव होगा। पन्द्रह कर्मभूमियों में मनुष्यों का सद्भाव रहेगा ही।
शेष नय विशेषग्राही होते हैं। वे इसकी उत्पत्ति का कारण मानते हैं। ऋजुसूत्र नय समुत्थान को नमस्कार की उत्पत्ति का कारण नहीं मानता क्योंकि समुत्थान होने पर भी वाचना और लब्धि के बिना उसकी उत्पत्ति नहीं होती अतः यह व्यभिचारी कारण है। इसलिए यह नय वाचना और लब्धि को नमस्कार की उत्पत्ति का हेतु मानता है।
शेष शब्द आदि नय एक लब्धि को ही नमस्कार की उत्पत्ति का हेतु मानते हैं। वाचना की उपलब्धि होने पर भी गुरुकर्मा अभव्य जीव को नमस्कार की उपलब्धि नहीं होती क्योंकि वहां लब्धि का अभाव है (आवहाटी १ पृ. २५२, चूर्णि पृ. ५०२, ५०३)।
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