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________________ आवश्यक नियुक्ति २४९ ५७०. प्ररूपणा के दो प्रकार हैं-षट्पदप्ररूपणा तथा नवपदप्ररूपणा। षट्पदप्ररूपणा के ये द्वार हैं१. क्यों? २. किसका? ३. किससे? ४. कहां? ५. कितने काल तक? ६. कितने प्रकार का?। ५७१. नमस्कार क्या है? तत्परिणाम में परिणत जीव ही नमस्कार है। यह किसके होता है ? पूर्वप्रतिपन्नक की अपेक्षा से जीवों के तथा प्रतिपद्यमान की अपेक्षा से जीव के अथवा जीवों के होता है। ५७२. ज्ञानावरणीय तथा दर्शनमोहनीय के क्षयोपशम से नमस्कार सिद्ध होता है। नमस्कार का संबंध सर्वत्र जीव-अजीव आदि आठ विकल्पों से होता है। ५७३. उपयोग की अपेक्षा नमस्कार की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त है और लब्धि की अपेक्षा जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट स्थिति छियासठ सागरोपम की है। ५७४. प्ररूपणा का दूसरा प्रकार नवपदप्ररूपणा है१. सत्पदप्ररूपणा ६. अन्तर २. द्रव्य प्रमाण ७. भाग ३. क्षेत्र ८. भाव ४. स्पर्शना ९. अल्पाबहुत्व ५. काल ५७५, ५७६. सत्पदप्रतिपन्न तथा प्रतिपद्यमान की मार्गणा के ये बीस द्वार हैं१. गति ८. सम्यक्त्व १५. परित्त २. इन्द्रिय ९. ज्ञान १६. पर्याप्त ३. काय १०. दर्शन १७. सूक्ष्म ४. वेद ११. संयत १८. संज्ञी ५. योग १२. उपयोग १९. भव ६. कषाय १३. आहारक २०. चरिम ७. लेश्या १४. भाषक ५७७. सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम के असंख्येयतम भाग में जितने आकाशप्रदेश होते हैं, उतने नमस्कार प्रतिपन्नक जीव होते हैं। ये क्षेत्रलोक के सप्त चतुर्दश ७/१४ भाग में होते हैं तथा स्पर्शना भी इतने ही क्षेत्र ७/१४ भाग की करते हैं। ५७८, ५७९. एक जीव की अपेक्षा से नमस्कार का जघन्य तथा उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है तथा नानाजीवों की अपेक्षा से सर्वकाल है। एक जीव की अपेक्षा से नमस्कार का जघन्य अन्तर काल अन्तर्मुहूर्त का तथा १. जीव, अजीव तथा तदुभय के एकवचन तथा बहुवचन के आधार पर आठ भेद होते हैं। जैसे-१. जीव का २. अजीव का ३. जीवों का ४. अजीवों का ५. जीव अजीव का ६. जीव अजीवों का ७. अजीव जीवों का ८. अजीवों का (आवहाटी. १ पृ. २५४)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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