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________________ आवश्यक नियुक्ति २४७ ५६५/१६-१९. सूत्र के बत्तीस दोष इस प्रकार हैं१. अलीक १२. अयुक्त २. उपघातजनक १३. क्रमभिन्न ३. निरर्थक १४. वचनभिन्न ४. अपार्थक १५. विभक्तिभिन्न ५. छलयुक्त १६. लिंगभिन्न ६. द्रुहिल १७. अनभिहित (अकथित) ७. निस्सार १८. अपद ८. अधिक १९. स्वभावहीन ९. न्यून २०. व्यवहित १०. पुनरुक्त २१. कालदोष ११. व्याहत २२. यतिदोष २३. छविदोष २४. समयविरुद्ध २५. वचनमात्र २६. अर्थापत्तिदोष २७. असमासदोष २८. उपमादोष २९. रूपकदोष ३०. अनिर्देशदोष ३१. पदार्थदोष ३२. संधिदोष। ५६५/२०. सूत्र के आठ गुण इस प्रकार हैं१. निर्दोष ५. उपनीत २. सारवान् ६. सोपचार ३. हेतुयुक्त ७. मित ४. अलंकारयुक्त ८. मधुर। ५६५/२१. अल्पाक्षर, असंदिग्ध, सारवान्, विश्वतोमुख', अस्तोभक, अनवद्य-इन गुणों से युक्त सूत्र सर्वज्ञ-भाषित होता है। १. १. निर्दोष-बत्तीस दोष रहित होना। २. सारवत्-अर्थयुक्त होना। ३. हेतुयुक्त-अन्वय व्यतिरेक रूप हेतु से युक्त होना। ४. अलंकृत-काव्य के अलंकारों से युक्त होना। ५. उपनीत-उपसंहार युक्त होना। ६. सोपचार-कोमल, अविरुद्ध और अलज्जनीय का प्रतिपादन करना अथवा व्यंग्य या हंसी युक्त होना। ७. मित-पद और उसके अक्षरों से परिमित होना। ८. मधुर-शब्द, अर्थ और प्रतिपादन की दृष्टि से मनोहर होना। २. आवहाटी. १ पृ. २५१ ; विश्वतोमुखम् अनेकमुखं प्रतिसूत्रमनुयोगचतुष्टयाभिधानात्-जिसका प्रत्येक सूत्र अनुयोग चतुष्टय से व्याख्यात हो। ३. आवहाटी. १ पृ. २५१; अस्तोभकं वैहिहकारादिपदच्छिद्रपूरणस्तोभकशून्यं, स्तोभकाः निपाता:-च, वा, इह आदि पादपूर्ति रूप निपातों से रहित। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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