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________________ २३३ आवश्यक नियुक्ति ४७६/६. जिन्होंने महापरिज्ञा (आचारांग के सातवें अध्ययन) से आकाशगामिनी विद्या का उद्धार किया तथा जो श्रुतधरों में अंतिम दशपूर्वी थे, उन आर्य वज्र को मैं वंदना करता हूं। ४७६/७, ८. वे कहते थे कि मेरी इस विद्या से पूरे जम्बूद्वीप में पर्यटन किया जा सकता है तथा मानुषोत्तर पर्वत पर जाकर ठहरा जा सकता है। इस विद्या को धारण करना चाहिए किन्तु किसी को देना नहीं चाहिए क्योंकि भविष्य में मनुष्य अल्पऋद्धि वाले होंगे। ४७६/९. अत्यंत शक्तिसंपन्न आर्यवज्र माहेश्वरी नगरी के हुताशन नामक व्यन्तरदेवकुल वाले उद्यान से पुष्पों का ढेर आकाश मार्ग से पुरिका नगरी में ले गए। ४७७. अपृथक्त्व अनुयोग में चरणकरणानुयोग, धर्मकथानुयोग, गणितानुयोग तथा द्रव्यानुयोग-ये चारों एक साथ कहे जाते थे। पृथक्त्व-अनुयोग करने से वे सारे अर्थ व्युच्छिन्न हो गए। ४७८. देवेन्द्र द्वारा वंदित महानुभाग आर्यरक्षित ने युग को समझकर अनुयोग को विभक्त कर उसे चार भागों मे बांट दिया। ४७९, ४८०. आर्यरक्षित की माता का नाम रुद्रसोमा और पिता का नाम सोमदेव था। उनके भाई का नाम फल्गुरक्षित और आचार्य का नाम तोसलिपुत्र था। वे आचार्य भद्रगुप्त के निर्यामक बने। आर्यरक्षित ने आर्यवज्र से पृथक् उपाश्रय में रहकर पूर्वो का अध्ययन किया। उन्होंने भ्राता तथा जनक को भी प्रव्रजित किया। ४८१. महाकल्पसूत्र तथा शेष छेदसूत्र-ये चरणकरणानुयोग हैं-यह मानकर इनको कालिकश्रुत में जानना चाहिए। ४८२. वर्द्धमान तीर्थंकर के तीर्थ में ये सात निह्नव हुए हैं-बहुरतवादी, जीवप्रदेशवादी, अव्यक्तवादी, समुच्छेदवादी, द्विक्रियवादी, त्रैराशिकवादी तथा अबद्धिकवादी। ४८३, ४८४. जमालि से बहुरतवाद, तिष्यगुप्त से जीवप्रदेशवाद, आषाढ से अव्यक्तवाद, अश्वमित्र से सामुच्छेदवाद, गंग से द्विक्रियवाद, षडुलूक से त्रैराशिकवाद, स्थविर गोष्ठामाहिल से स्पृष्ट-अबद्ध-अबद्धिकवाद का प्रारंभ हुआ। ४८५. निह्नवों के नगर क्रमशः इस प्रकार हैं- श्रावस्ती, ऋषभपुर, श्वेतविका, मिथिला, उल्लुकातीर, अंतरंजिकापुर, दशपुर और रथवीरपुर। ४८६, ४८७. चौदह वर्ष, सोलह वर्ष, दो सौ चौदह वर्ष , दो सौ बीस वर्ष, दो सौ अठावीस वर्ष, पांच सौ चौवालीस वर्ष, पांच सौ चौरासी वर्ष तथा छह सौ नौ वर्ष-यह निह्नवों का उत्पत्ति-काल है। भगवान् को केवलज्ञान होने पर प्रथम दो निह्नव हुए तथा शेष निह्नव भगवान् के निर्वृत होने पर हुए। ४८७/१. भगवान् महावीर की कैवल्य-प्राप्ति के १४ वर्ष पश्चात् श्रावस्ती नगरी में बहुरतवाद की उत्पत्ति १. देखें परि. ३ कथाएं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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