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________________ २२४ आवश्यक नियुक्ति ४३३.चेतन अथवा अचेतन द्रव्य की चार विकल्प वाली स्थिति को द्रव्यकाल कहा जाता है। अथवा द्रव्य को ही द्रव्यकाल कहा जाता है।' ४३३/१. चतुर्विकल्पात्मिका स्थिति यह है१. देवता आदि की गति के आधार पर जीव सादि-सपर्यवसित है। २. सिद्ध की अपेक्षा से जीव सादि-अपर्यवसित है। ३. भव्य जीवों की अपेक्षा से कुछेक भव्यों की स्थिति अनादि-सपर्यवसित है। ४. अभव्य की अपेक्षा से अनादि-अपर्यवसित है। पुद्गल सादि-सपर्यवसित, अनागतकाल सादि-अपर्यवसित, अतीत काल अनादि, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय तथा आकाशास्तिकाय-ये तीनों अनादि-अपर्यवसित स्थिति वाले हैं। इस प्रकार जीव और अजीव की स्थिति चार प्रकार की होती है। ४३४. सूर्य, चन्द्र आदि की गति से होने वाला ढाईद्वीपवर्ती काल अद्धाकाल कहलाता है। जैसे-समय, आवलिका, मुहूर्त, दिवस, अहोरात्र, पक्ष, मास, संवत्सर, युग, पल्य-पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी, पुद्गलपरावर्तन-अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल। ४३५. जिस प्राणी ने अन्य भव में नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव का आयुष्य निर्वर्तित किया है, उसको उसी प्रकार से भोगना यथायुष्ककाल है। ४३६. उपक्रमकाल के दो प्रकार हैं-सामाचारी उपक्रमकाल तथा यथायुष्क उपक्रमकाल। सामाचारी के तीन प्रकार हैं-ओघ सामाचारी, दसधा सामाचारी तथा पदविभाग सामाचारी। ४३६/१,२. दस प्रकार की सामाचारी के नाम इस प्रकार हैं१. इच्छाकार ५. नैषेधिकी ९. निमंत्रणा २. मिथ्याकार ६. आपृच्छा १०. उपसंपदा ३. तथाकार ७. प्रतिपृच्छा ४. आवश्यिकी ८. छन्दना अब मैं (प्रत्येक पद की पृथक्-पृथक्) प्ररूपणा करूंगा। ४३६/३. कोई मुनि रोग या अन्य कारण उपस्थित होने पर दूसरे मुनि को कार्य करने की अभ्यर्थना करे तो वहां भी इच्छाकार का प्रयोग करे-(तुम्हारी इच्छा हो तो मेरा यह कार्य करो)। साधु को बलप्रयोग से कार्य करवाना नहीं कल्पता। ४३६/४. यदि कोई दूसरे से अपने कार्य के लिए अभ्यर्थना करता है तो उसके लिए ज्ञातव्य है कि दूसरे से अभ्यर्थना करना उचित नहीं है क्योंकि साधु को अपने बल और वीर्य का गोपन नहीं करना चाहिए। १. स्पष्टता के लिए देखें ४३३/१ का अनुवाद। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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