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आवश्यक नियुक्ति
१८५ १३८-१४१. महाराजा ऋषभ ने निम्नोक्त कलाओं का प्रशिक्षण दिया१. आहार
२१. मारणा-मृत्युदंड २. शिल्प
२२. यज्ञ ३. कर्म-कृषि, वाणिज्य आदि
२३. उत्सव ४. मामणा-परिग्रह के प्रति ममकार। २४. समवाय-गोष्ठी आदि का प्रचलन ५. विभूषणा
२५. मंगल-स्वस्तिक आदि ६. लेख-लिपिविधान
२६. कौतुक-रक्षा के लिए किए जाने वाले उपाय। ७. गणित
२७. वस्त्र-चीनांशुक आदि ८. रूप-काष्ठकर्म आदि
२८. गंध-कोष्ठपुट आदि ९. लक्षण-पुरुष के लक्षण आदि
२९. माल्य-पुष्पमालाएं १०. मान-मानोन्मान
३०. अलंकार-केश, भूषण आदि। ११. प्रोतन-मोतियों की माला आदि पिरोना ३१. चोल-चूडाकर्म १२. व्यवहार-न्याय करना
३२. उपनयन-विद्या का प्रारंभ १३. नीति-हाकारादि
३३. विवाह १४. युद्धशास्त्र
३४. भिक्षादान १५. धनुर्वेद
३५. मृतकपूजा १६. उपासना-नापितकर्म
३६. ध्यापना-अग्निसंस्कार १७. चिकित्सा
३७. स्तूप-निर्माण १८. अर्थशास्त्र
३८. शब्द-मृतक के पीछे रोने की प्रथा १९. बंध-सांकल आदि से बांधना
३९. छेलापनक-बालक्रीडनक इंखिणिका आदि २०. घात-डंडे आदि से मारना
४०. प्रच्छना-निमित्त आदि पूछना। १४१/१. शिल्प के पांच प्रकार हैं
१. घट-कुंभकारशिल्प। ४. गंत-वस्त्रशिल्प। २. लोह-लोहकारशिल्प। ५. काश्यप-नापितशिल्प।
३. चित्र-चित्रकारशिल्प। इनमें प्रत्येक शिल्प के बीस-बीस भेद हैं। १४२-१४५. ऋषभ चरित्र के प्रकरण में प्रतिपादित संबोधन आदि विषय सभी जिनेश्वर देवों के समान कहे गए हैं। यहां ऋषभ से संबंधित संबोधन आदि विषयों का प्रतिपादन किया जाएगा। वे विषय ये हैं१. संबोधन
४. उपधि २. परित्याग
५. अन्यलिंग अथवा कुलिंग में निष्क्रमण? ३. प्रत्येक-कितने व्यक्तियों के साथ अभिनिष्क्रमण? ६. ग्राम्याचार १. देखें परि. ३ कथाएं।
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