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________________ आवश्यक निर्युक्ति ७५/२, ३. उपोद्घात के २६ अंग हैं १. उद्देश २. निर्देश ३. निर्गम ४. क्षेत्र ५. काल ६. पुरुष ७. कारण ८. प्रत्यय ९. लक्षण १०. नय ११. समवतार १२. अनुमत १३. क्या? १४. कितने प्रकार ? १५. किसका ? १६. कहां ? १७. किसमें ? १८. कैसे ? १९. कितने समय तक ? २०. कितने ? २१. सान्तर २२. अविरहित २३. भव २४. आकर्ष २५. स्पर्शना २६. निरुक्ति ७६. तीर्थंकर भगवान् अनुत्तर पराक्रमी तथा अनन्तज्ञानी होते हैं। वे तीर्ण, सिद्धगति को प्राप्त तथा सिद्धिपथ के उपदेशक हैं, उनको मैं वन्दन करता हूं । १७१ ७७. मैं वर्तमान तीर्थ के तीर्थंकर, महान् यशस्वी, महामुनि, अचिन्त्य शक्ति के धनी, इन्द्रों तथा चक्रवर्तियों से पूजित भगवान् महावीर को वन्दना करता हूं। Jain Education International ७८. मैं प्रवचन - आगम के प्रवाचक ग्यारह गणधरों को वन्दना करता हूं। साथ ही सारे गणधरवंश (आचार्यों की परम्परा), वाचकवंश ( उपाध्यायों की परम्परा) तथा प्रवचन - आगम को भी वंदना करता ७९. मैं तीर्थंकरों, गणधरों आदि को मस्तक झुकाकर वंदना कर, उनके द्वारा प्रतिपादित अर्थबहुल श्रुतज्ञान की नियुक्ति का प्रतिपादन करूंगा। ८०-८१/१. निम्नांकित दस आगमों की जिनोपदिष्ट तत्त्व के अनुसार नियुक्ति कहूंगा, जिसमें आहरण-पद, हेतु - पद तथा कारण- पद आदि का संक्षिप्त निरूपण होगा। वे आगम ये हैं- आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, आचारांग, सूत्रकृतांग, दशाश्रुतस्कंध, कल्प, व्यवहार, सूर्यप्रज्ञप्ति तथा ऋषिभाषित । ८१ / २. मैं गुरुजनों द्वारा उपदिष्ट तथा आचार्य परम्परा से क्रमशः प्राप्त अवबोध के अनुसार सामायिक निर्युक्ति का कथन करूंगा। ८२. सूत्र में जो अर्थ - श्रुतज्ञान के विषय बहुलता से निर्युक्त हैं, बद्ध हैं, उन निर्युक्त अर्थों की व्याख्या करना नियुक्ति है। फिर भी शिष्य गुरु को सूत्र - परिपाटी - सूत्र - पद्धति के अनुसार उन विषयों का प्रतिपादन करने के लिए प्रवर्तित करता है। ८३, ८४. तप, नियम तथा ज्ञानरूपी वृक्ष पर आरूढ अमितज्ञानी केवली भव्यजनों को प्रतिबोध देने के लिए १. कल्प शब्द से कुछ विद्वान् बृहत्कल्प एवं पंचकल्प - दोनों की नियुक्तियों का ग्रहण करते हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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