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आवश्यक नियुक्ति
१६९ योजन प्रमाण वाले होते हैं। यह अवधिज्ञान लोक और अलोक में पुरुष से संबद्ध होता है।' ६५/१. पूर्व वर्णित १३, १४, १५ वीं गाथाओं में सत्पदप्ररूपणाविधि, द्रव्यप्रमाण तथा गति आदि बीस द्वारों से मति-श्रुतज्ञान की मीमांसा की गई है। वह पूर्ण मीमांसा अवधिज्ञान के विषय में भी करणीय है। अवधिज्ञान की प्राप्ति एक लब्धि है। उसका वर्णन यहां किया गया है। उसके आधार पर अन्यान्य अवशिष्ट लब्धियों का वर्णन किया जा रहा है। ६६, ६७. शेष ऋद्धियां (लब्धियां) ये हैं१. आमर्ष औषधि-स्पर्श से रोगमुक्त करने का सामर्थ्य । २. विपुड् औषधि-मल के स्पर्श से रोगमुक्ति। ३. श्लेष्म औषधि-श्लेष्म से रोगमुक्ति। ४. जल्ल औषधि-मैल से रोगमुक्ति। ५. संभिन्नस्रोत-एक इंद्रिय से पांचों इंद्रिय-विषयों को जानने का सामर्थ्य । ६. ऋजुमति-मनोगत भावों को सामान्यरूप से जानने का सामर्थ्य। ७. सर्वौषधि-सभी व्याधियों के निग्रह में समर्थ अथवा जिसका प्रत्येक अवयव औषधि के सामर्थ्य से
___ युक्त हो। ८. चारणलब्धि-जंघाचारण-मकड़ी के जाले से निष्पन्न तंतुओं के सहारे अथवा सूर्य की रश्मियों के
सहारे गमनागमन करने में समर्थ।
विद्याचारण-विद्यातिशय से आकाश-गमन का सामर्थ्य । ९. आशीविष-आशीविष सर्प की भांति दूसरों को मारने का सामर्थ्य ।। १०. केवली
१. पुरुष के अबाधा अन्तराल के आधार पर असंबद्ध अवधि के चार विकल्प होते हैं(क) संख्येय योजन अन्तराल, संख्येय अवधिक्षेत्र। (ख) संख्येय योजन अन्तराल, असंख्येय अवधिक्षेत्र। (ग) असंख्येय योजन अन्तराल, संख्येय अवधिक्षेत्र । (घ) असंख्येय योजन अन्तराल, असंख्येय अवधिक्षेत्र।
संबद्ध अवधि के विकल्प नहीं होते। पुरुष और लोकान्त से संबद्ध अवधि के विकल्प(क) पुरुष से संबद्ध, लोक से संबद्ध (लोकप्रमाण अवधि) (ख) पुरुष से संबद्ध, लोकान्त से असंबद्ध (आभ्यन्तर अवधि) (ग) पुरुष से असंबद्ध, लोक से संबद्ध (शून्य विकल्प) (घ) न पुरुष से संबद्ध, न लोक से (बाह्य अवधि) इसका तात्पर्य यह है कि लोकाभ्यन्तर पुरुष के दोनों प्रकार की अवधि होती है-संबद्ध और असंबद्ध । अलोक में संबद्ध अवधिज्ञान आत्मसंबद्ध ही होता है (आवहाटी १ पृ. ३१) ।
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