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आवश्यक नियुक्ति
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समुट्ठाण-वायणालद्धिओ या पढमे नयत्तिए तिविहं। उज्जुसुयरे पढमवजं, सेसनया लद्धिमिच्छति ॥ निण्हाइ दव्व भावोवउत्त जं कुज्ज 'सम्मदिट्टी उ नेवाइयं पदं दव्वभावसंकोयणपयत्थो । दुविहा परूवणा छप्पया य नवधा य 'छप्पया इणमो। किं कस्स केण व कहिं, कियच्चिरं कइविहो व भवे ॥ किं जीवो तप्परिणतो?, पुव्वपडिवण्णओ उ९ जीवाणं। जीवस्स वर जीवाण व२, पडुच्च पडिवज्जमाणं तु ॥ णाणावरणिज्जस्स य५, दंसणमोहस्स तह'६ खओवसमे। जीवमजीवे अट्ठसु, भंगेसु तु होति सव्वत्थ ॥ उवओग पडुच्चंऽतोमुहुत्त 'लद्धीइ होइ उ जहन्नो'१८ । उक्कोसठिइ९ छावट्ठिसागराऽरिहाइ२० पंचविहोर ॥ संतपदपरूवणया, दव्वपमाणं च खेत्तफुसणा य। कालो य अंतरं२२ भाग२३, भाव" अप्पाबहुं चेव५ ॥ संतपदं पडिवन्ने, पडिवजंते य 'मग्गणा गइसु २६ । इंदिय काए ‘जोगे, वेदे २७ य कसाय-लेसासु ॥
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१. x (हा, दी)। २. सुउ (अ, ब)। ३. स्वो ६४६/३३३७। ४. “वइत्तु (अ, ब), वयुत्तो (स्वो)। ५. दिट्ठीओ (म)। ६. स्वो ६४७/३३७०, इस गाथा के बाद स प्रति में निम्न गाथा
अतिरिक्त मिलती है। यह गाथा चूर्णि में भी उद्धृत गाथा के रूप में मिलती हैचउरो वि नेगमणओ, ववहारो संगहो ठवणवजं ।
उज्जुसुत पढमचरिमे, इच्छति भावं च सद्दणया॥ ७. महे में टीकाकार ने 'छप्पयाइ णमो' पाठ मानकर व्याख्या की है। ८. केवचिरं (महे, म), किच्चिरं (दी, हा), केवतियं (स्वो)। ९. अ (म)। १०. स्वो ६४८/३३९१, ५७० से ५८२ तक की गाथाओं का चूर्णि ___ में गाथा-संकेत नहीं है किन्तु संक्षिप्त भावार्थ एवं व्याख्या है।
११. य (महे, स्वो)। १२,१३. य (ला, महे)।
१४. व (म), स्वो ६४९/३३९२ । १५. उ (ब, स)। १६. जो (महे, स्वो ६५०/३४२३)। १७. य (दी, म, महे)। १८. लद्धी जहन्नयं चेव (स्वो), लद्धीए उ होइ जहन्ना (महे)। १९. “सट्टिई (म, दी)। २०. 'सागर अरि (म)। २१. स्वो ६५१/३४४२ और महे में इसका उत्तरार्ध इस प्रकार है
उक्कोसं छासढ़ि, सागर अरिहाति पंचविधो। (स्वो)
उक्कोसऽहिया छावविसागरा अरिहाइ पंचविहो। (महे) २२. अंतर (म, दी, अ)। २३. भागो (दी, म)। २४. भावे (म, दी, ला)। २५. स्वो ६५२/३४४८ । २६. मग्गणं गईसु (ब, स), 'गतीसु (स्वो)। २७. वेए जोए (ब, स, हा, दी)। २८. लेस्सा य (स्वो ६५३/३४४९)।
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