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आवश्यक नियुक्ति
२०५.
२०४/२. बहली य जोणगा पल्हगा' य जे भगवता समणुसिट्ठा।
अन्ने य मेच्छ जाती, ते तइया भद्दया जाता ॥ तित्थगराणं पढमो, उसभरिसी' विहरितो निरुवसग्गं
अट्ठावओ नगवरो, 'अग्गाभूमी जिणवरस्स" ॥ २०६. छउमत्थप्परियाओ', वाससहस्सं ततो पुरिमताले ।
णग्गोहस्स० य हेट्ठा, उप्पन्नं केवलं नाणं १ ॥ २०७. 'फग्गुणबहुले एक्कारसीइ' १२ अह अट्ठमेण भत्तेणं३ ।
उप्पन्नम्मि अणंते, महव्वया पंच पण्णवए । २०७/१. उप्पण्णम्मि अणंते, नाणे जर-मरण-विप्पमुक्कस्स।
तो देव-दाणविंदा, करेंति महिमं जिणिंदस्स५ ॥ २०८. उजाणपुरिमताले, पुरी विणीयाइ तत्थ नाणवरं ।
चक्कुप्पया य भरहे, निवेदणं चेव दोण्हं पि६ ॥ २०९. तातम्मि७ पूइते चक्कपूयितं५८ पूयणारिहो तातो९ ।
इहलोइयं तु चक्कं, परलोगसुहावओ तातो ॥ २१०. सह मरुदेवाइ२९ निग्गतो, कधणं पव्वज उसभसेणस्स।
बंभी मरीइदिक्खा२२, सुंदरिओरोध२३ सुतदिक्खा ॥
१. पल्लगा (म), पण्हवा (स्वो), पण्हगा (को)।
इसका संकेत नहीं है। यह गाथा भाष्य की प्रतीत होती है क्योंकि २०७ की २. "णुसट्ठा (ब, स, स्वो, को)।
गाथा के 'उप्पण्णम्मि अणंते' इस पूरे चरण का इसमें पुनरावर्तन हुआ है। ३. स्वो २६३/१७०२।
१६. स्वो २६८/१७०७, इस गाथा के बाद प्रायः सभी हस्तप्रतियों में अन्यकर्तृकी ४. “सिरी (म, रा, ला, को)।
उल्लेख के साथ निम्न गाथा अतिरिक्त मिलती है५. “सग्गो (अ, ब, हा, दी)।
आउहवरसालाए, उप्पन्नं चक्करयण भरहस्स। ६. 'वओ य (रा)।
जक्खसहस्सपरिवुडं, सव्वं रयणामयं चक्कं ॥ ७. अग्गभूमी जिण (स्वो २६४/१७०३), जा जिंणिदस्स (को) १७. ताइम्मि (अ)। ८. 'त्थपरि (रा), 'त्थपरी (स्वो)।
१८. 'पूयं (अ, ब)। ९. पुरम (अ)।
१९. चक्कं (अ)। १०. लग्गोधस्स (स्वो.), निग्गो (म)।
२०. स्वो. २६९/१७०८। ११. स्वो २६५/१७०४।
२१. देवीइ (म, रा)। १२. बहुलेकारसी य (स्वो)।
२२. मिरीइ (स)। १३. पुव्वण्हे (स्वो)।
२३. सुंदरी (ला, हा, दी)। १४. स्वो. २६६/१७०५ ।
२४. स्वो २७०/१७०९, २०८-१० तक की तीन गाथाओं का प्रतीक चर्णि में १५. स्वो. २६७/१७०६, जिणंदस्स (अ), यह गाथा भाष्य तथा नहीं मिलता मात्र संक्षिप्त भावार्थ मिलता है।
टीकाओं में निगा के क्रम में उल्लिखित है किन्तु चूर्णि में
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