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________________ सप्ततत्त्व नवपदार्थ वर्णन ] बृहद्रव्यसंग्रहः जीवाजीवविशेषाः। विशेषा इत्यस्य कोऽर्थः पर्यायाः। चैतन्या अशुद्धपरिणामा जीवस्य अचेतनाः कर्मपुद्गलपर्याया अजीवस्येत्यर्थः ॥ एवमधिकारसूत्रगाथा गता ॥२८॥ अथ गाथात्रयेणास्रवव्याख्यानं क्रियते, तत्रादौ भावास्रवद्रव्यास्रवस्वरूपं सूचयति; आसवदि जेण कम्मं परिणामेणप्पणो स विण्णेओ। भावासनो जिणुत्तो कम्मासवणं परो होदि ।। २९ ॥ आस्रवति येन कर्म परिणामेन आत्मनः स विज्ञेयः । भावास्रवः जिनोक्तः कस्रिवणं परः भवति ॥ २९ ।। व्याख्या-"आसवदि जेण कम्मं परिणामेणप्पणो स विणेओ भावासवो' आस्रवति कर्म येन परिणामेनात्मनः स विज्ञेयो भावात्रवः। कर्मास्रवनिर्मूलनसमर्थशुद्धात्मभावनाप्रतिपक्षभूतेन येन परिणामेनास्रवति कर्म कस्यात्मनः स्वस्य स परिणामो भावास्रवो विज्ञेयः । स च कथंभूतः "जिणुत्तो' जिनेन वीतरागसर्वज्ञेनोक्तः। “कम्मासवणं परो होदि" कर्मास्त्रवणं परो भवति ज्ञानावरणादिद्रव्यकर्मणामास्रवणमागमनं परः, पर इति कोऽर्थः-भावात्रवादन्यो भिन्नो भावात्रवनिमित्तेन तैलमृक्षितानां धूलिसमागम इव द्रव्यात्रवो भवतीति। ननु "आस्रवति येन कर्म" तेनैव पदेन द्रव्यास्रवो लब्धः, पुनरपि कर्मास्त्रवणं परो भवतीति द्रव्यास्रवव्याख्यानं किमर्थमिति हैं और अचेतन जो कर्मपुद्गलोंके पर्याय हैं वे अजीवके हैं । इस प्रकार आस्रव आदि अधिकारसूत्रकी गाथा समाप्त हुई ।॥ २८ ॥ __ अब तीन गाथाओंसे आस्रव पदार्थका व्याख्यान करते हैं, उसमें प्रथम ही भावास्रव तथा द्रव्यास्रवकी सूचना करते हैं; गाथाभावार्थ-जिस परिणामसं आत्माके कर्मका आस्रव होता है उसको श्रीजिनेन्द्रद्वारा कहा हुआ भावास्रव जानना चाहिये। और भावास्रवसे भिन्न ज्ञानावरणादिरूप कर्मोका जो आस्रव है सो द्रव्यास्रव है ॥२९।। व्याख्यार्थ-"आसवदि जेण कम्मं परिणामेणप्पणो स विष्णेओ भावासवो" आत्माके जिस परिणाम से कर्मका आस्रव हो वह परिणाम भावास्रव है, यह जानना चाहिये। भावार्थ यह है कि कर्मास्रवके दूर करने में समर्थ जो शुद्ध आत्मा की भावना है उस भावनाके प्रतिपक्षभूत ( विरोधी) जिस परिणाम से अपने आत्माके कर्मका आस्रव होता है उस परिणामको भावास्रव जानना चाहिये । वह भावास्रव कैसा है कि "जिणुत्तो" जिन जो श्रीवीतराग सर्वज्ञ देव हैं उनसे कहा हुआ है। “कम्मासवणं परो होदि" कर्मोका जो आस्रवण है वह पर होता है अर्थात् ज्ञानावरण आदि द्रव्य कर्मोका जो आस्रवण ( आगमन ) है वह पर है। पर शब्द का अर्थ यह है कि भावास्रवसे भिन्न । भावार्थ - जैसे तेलसे चुपड़े हुए पदार्थोके धूलका समागम होता है उसीप्रकार भावास्रवके निमित्तसे जीवके द्रव्यास्रव होता है। अब यहाँ कोई शंका करते हैं कि "आसवदि जेण कम्म" ( जिससे कर्मका आस्रव होता है ) इसी पदसे द्रव्यास्रवकी प्राप्ति हो गई फिर "कम्मासवणं परो होदि" ( इससे भिन्न कर्मास्रव होता है ) इस पदसे द्रव्यास्रवका व्याख्यान किस प्रयोजनके लिये किया ? समाधान-यह शंका जो तुमने कही सो ठीक नहीं । क्योंकि, "जिस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001919
Book TitleBruhaddravyasangrah
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Philosophy
File Size20 MB
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