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चूलिका ]
बृहद्रव्यसंग्रहः
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अत ऊध्वं पुनरपि षद्रव्याणां मध्ये हेयोपादेयस्वरूपं विशेषेण विचारयति । तत्र शुद्धनिश्चयनयेन शक्तिरूपेण शुद्धबुद्धैकस्वभावत्वात्सर्वे जीवा उपादेया भवन्ति । व्यक्तिरूपेण पुनः पञ्चपरमेष्ठिन एव । तत्राप्यर्हत्सिद्धद्वयमेव । तत्रापि निश्चयेन सिद्ध एव । परमनिश्चयेन तु भोगाकाङ्क्षादिरूप समस्त विकल्पजाल रहित परमसमाधिकाले सिद्धसदृशः स्वशुद्धात्मैवोपादेयः शेषद्रव्याणि हेयानीति तात्पर्यम् । शुद्धबुद्धकस्वभाव इति कोऽर्थः ? मिथ्यात्व रागादिसमस्त विभावरहितत्वेन शुद्ध इत्युच्यते केवलज्ञानाद्यनन्तगुण सहितत्वाद्बुद्धः । इति शुद्धबुद्धैकलक्षणं सर्वत्र ज्ञातव्यम् । इति षद्रव्यचूलिका समाप्ता । चूलिकाशब्दार्थः कथ्यते - चूलिका विशेषव्याख्यानम्, अथवा उक्तानुक्तव्याख्यानम् उक्तानुक्तसंकीर्णव्याख्यानं चेति ।।
इति षड्द्रव्यचूलिका समाप्ता ॥
अब इसके उपरान्त फिर भी षट्द्रव्योंमेंसे क्या हेय है और क्या उपादेय है इस स्वरूपको विशेष रीति से विचारते हैं । उनमें शुद्ध निश्चयनयसे शक्तिरूपसे शुद्ध, बुद्ध एक स्वभावके धारक सभी जीव हैं इस कारण सर्व जीव ही उपादेय ( ग्राह्य ) हैं । और व्यक्तिरूपसे अर्हत् सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय तथा साधु ये पाँच परमेष्ठी ही उपादेय हैं । इन पाँचोंमेंसे भी अर्हतसिद्ध ये दो ही उपादेय हैं । इन दोमेंसे भी निश्चयकी अपेक्षासे सिद्ध ही उपादेय है और परमनिश्चयसे भोगोंकी अभिलाषा आदि रूप जो संपूर्ण विकल्पोंके समूह हैं उनसे रहित जो परमध्यानका समय है उस समय में सिद्धोंके समान जो निज शुद्ध आत्मा है, वही उपादेय है । अन्य सब द्रव्य हेय है, यह तात्पर्य है । अब 'शुद्धबुद्वैकस्वभाव' इस पदका क्या अर्थ है सो कहते हैंमिथ्यात्व, राग आदि संपूर्ण विभावोंसे रहित होनेके कारण आत्मा शुद्ध कहा जाता है । तथा केवलज्ञान आदि अनंत गुणोंसे सहित होनेसे आत्मा बुद्ध कहा जाता है। इस प्रकार जहाँ जहाँ 'शुद्धबुद्धैकस्वभाव' यह पद आवे वहाँ वहाँ सर्वत्र यही पूर्वोक्त लक्षण समझना चाहिये । इस रीति से
द्रव्योंकी चूलिका समाप्त हुई। अब 'चूलिका' इस शब्दका अर्थ कहते हैं । "चूलिका" किसी पदार्थ के विशेष व्याख्यानको अथवा उक्त ( कहे हुए ) विषय में जो अनुक्त ( नहीं कहा हुआ ) विषय है उसके व्याख्यानको तथा उक्त तथा अनुक्त से मिला हुआ जो कथन है उसको कहते हैं । इस प्रकार छः द्रव्योंकी चूलिका समाप्त हुई ।
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