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________________ गोमट्टसंगहसत्तं गोमट्टसिहरुवरिगोमट्टजिणो य । गोमट्टरायविणिम्मिय दक्खिणकुक्कुडजिणो जयउ ॥३॥ जेण विणिम्मिय पडिमावयणं सबटुसिद्धिदेवेहिं । सव्वपरमोहिजोगिहिं दिटुं सो गोम्मटो जयउ ॥४॥” इत्यादि । गोमट्टसारकी संस्कृतटीकानुसार इन गाथाओंका भावार्थ यह है कि, "गणधर तथा ऋद्धिधारी मुनियोंके गुणोंके धारक श्रीअजितसेन जिसके व्रत गुरु हैं, वह चामुण्डरायराजा जयवंता रहो ।११ सिद्धान्तरूपी उदयाचलसे उदयको प्राप्त हुए ऐसे श्रीनेमिचंद्ररूपी चंद्रमाकी वचनरूप किरणोंसे स्पर्शित गुणरत्नभूषण (श्रीचामुण्डराय) समुद्रकी बुद्धिरूप वेला (तट व किनारा) भुवनतलको पूर्ण करे ।२। गोमट्टसार, चामुण्डरायके मंदिरमें विराजमान एक हाथ परिमाण ऊँची २इन्द्रनीलमणि (नीलम) की श्रीनेमिनाथ-जिनेन्द्रकी प्रतिमा और चामुण्डराय द्वारा बनवाया हुआ दक्षिणकुक्कुड जिन ये तीनों जयवंत रहे ।३। जिसकी बनाई हुई प्रतिमाके मुखको सर्वार्थसिद्धिके देवोंने और परमावधिज्ञानके धारक मुनियोंने देखा, वह गोमट्ट (चामुण्ड) राजा जयवता रहा ।४।" २. गोमट्टसारकी कर्णाटकवृत्तिके अनुसार संस्कृतटीकाकारने टीकाके प्रारम्भमें निम्नलिखित गद्य दिया है श्रीमदप्रतिहतप्रभावस्याद्वादशासनगुहाभ्यन्तरनिवासिप्रवादिसिन्धुरसिंहायमान-सिंहनन्दिनन्दितगङ्गवंशललामराजसर्वज्ञाद्यनेकगुणनामधेयभागधेय-श्रीमद्राजमल्लदेवमहीवल्लभमहामात्य-पदविराजमान-रणरङ्गमल्लअसहायपराक्रम - गुणरत्नभूषण-सम्यक्त्वरत्ननिलयादिविविधगुणनाम-समासादितकीर्त्तिकान्त-श्रीमच्चामुण्डरायप्रश्नानुरूपं गोमट्टसारनामधेयपञ्चसंग्रहशास्त्रं प्रारम्भमाणः श्रीमान्नेमिचन्द्रसैद्धान्तिकचक्रवर्ती समस्तसैद्धान्तिकजनप्रख्यातविशदयशा विशालमूर्तिरसौ भगवान् गोमट्टसारप्रथमावयवभूतं जीवकाण्डं विरचयंस्तदादौ मलगालनादिफलजननसमर्थं मङ्गलं कृतवान् । संक्षिप्तभाव इसका यह है कि, स्याद्वादमतरूपी गुफामें सिंहके समान विराजमान और श्रीसिंहनन्दी आचार्यके प्रभावसे वृद्धिको प्राप्त ऐसा जो गंगवंशतिलक राजमल्लदेव महाराजा है, उसके महामात्य श्रीचामुण्डरायके प्रश्नके अनुसार गोमट्टसार बनानेके इच्छुक श्रीनेमिचन्द्रसैद्धान्तिकचक्रवर्तीने निर्विघ्नसमाप्ति के अर्थ मंगल किया । ३. थॉमस सी राईसने मलबारक्वाटर्लीरिव्यू में जो “कर्णाटकमें जैनियोंका निवास" नामक लेख छपाया है, उसमें लिखा है कि, “मैसूरके जैनराजाओंमें अतिप्रसिद्ध बिल्लालवंशके राजा थे । जो कि, पहिले द्वारासमुद्रमें राज्य करते थे । पीछे शृंगापटामके बारह मील उत्तरको तोनूरके शासक हुए । इनका आधिपत्य पूर्ण कर्णाटकमें था । अर्थात् जहाँ जहाँ कनाडी भाषा बोली जाती थी, उन्हीं प्रदेशोंके ये शासनकर्ता (राजा) थे । इस बिल्लाल वंशके स्थापक चामुण्डराय थे जिनका कि, राज्य सन् ७१४ ईस्वीमें था ।" (१) श्रवणबेल्गुलकी गुफाके दक्षिणपार्श्वमें शाके १०५० का खुदा हुआ जो शिलालेख है, उसमें श्रीअजितसेनके विषयमें "गुणाः कुन्दस्पन्दोड्डुमरसमरा वागमृतवाः, प्लवप्रायःप्रेयः प्रसरसरसा कीर्तिरिव सा । नखेन्दुर्योत्स्नांनॅपचयकोरप्रणयिनी न कासां श्लाघानां पदमजितसेनो व्रतिपतिः ॥१॥" इत्यादि पद्य लिखे हए हैं। (२) इस एक हाथकी नीलमकी प्रतिमाका वर्तमानमें कहीं भी पता नहीं लगता है । अतः प्रतीत होता है कि, दुष्ट राजाओंके समयमें यह भी खंड-खंड हो गई। (३) 'दक्षिण कुक्कुड जिन' यह श्रवणबेल्गुलमें विराजमान श्रीगोमट्टस्वामीकी विशाल प्रतिमाका ही नामान्तर प्रतीत होता है। (४) गोमट्टस्वामीकी प्रतिमा बनवानेसे चामुण्डरायका लोगोंने 'गोमट्ट' यह नाम प्रसिद्ध कर दिया । ऐसा अनुमान होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001919
Book TitleBruhaddravyasangrah
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Philosophy
File Size20 MB
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