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________________ ४० श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [प्रथम अधिकार गतिस्थित्यवगाहवर्तनालक्षणा धर्माधर्माकाशकालाः, “पुग्गलमुत्तो" पुद्गलो मूर्तः। कस्मात् 'रूवादिगुणो" रूपादिगुणसहितो यतः । “अमुत्ति सेसा हु" रूपादिगुणाभावादमूर्ता भवन्ति पुद्गलाच्छेषाश्चत्वार इति । तथाहि-यथा अनन्तज्ञानदर्शनसुखवीर्यगुणचतुष्टयं सर्वजीवसाधारणं तथा रूपरसगन्धस्पर्शगुणचतुष्टयं सर्वपुद्गलसाधारणं, यथा च शुद्धबुद्धकस्वभावसिद्धजीवे अनन्तचतुष्टयमतीन्द्रियं तथैव शुद्धपुद्गलपरमाणुद्रव्ये रूपादिचतुष्टयमतीन्द्रियं, यथा रागादिस्नेहगुणेन कर्मबन्धावस्थायां ज्ञानादिचतुथ्यस्याशुद्धत्वं तथा स्निग्धरूक्षत्वगुणेन दृयणुकादिबन्धावस्थायां रूपादिचतुष्टयस्याशुद्धत्वं, यथा निःस्नेहनिजपरमात्मभावनाबलेन रागादिस्निग्धत्वविनाशे सत्यनन्त चतुष्टयस्य शुद्धत्वं तथा जघन्यगुणानां बन्धो न भवतीति वचनात्परमाणुद्रव्ये स्निग्धरूक्षत्वगणस्य जघन्यत्वे सति रूपादिचतुष्टयं शुद्धत्वमवबोद्धव्यमित्यभिप्रायः ॥ १५ ॥ अथ पुद्गलद्रव्यस्य विभावव्यञ्जनपर्यायान्प्रतिपादयति; सद्दो बंधो सुहुमो थूलो संठाणभेदतमछाया । उज्जोदादवसहिया पुग्गलदव्वस्स पज्जाया ॥ १६ ॥ शब्दः बन्धः सूक्ष्मः स्थूल: संस्थानभेदतमश्छायाः । उद्योतातपसहिताः पुद्गलद्रव्यस्य पर्यायाः ॥ १६ ॥ वर्तना लक्षण सहित धर्म, अधर्म, आकाश तथा काल ये चारों द्रव्य हैं; अर्थात् गतिलक्षण धर्म, स्थितिलक्षण अधर्म, अवगाह देनेके लक्षणका धारक आकाश तथा वर्तना लक्षण युक्त कालद्रव्य है। ''पुग्गल मुत्तो' पुद्गल मूर्त है। क्योंकि, वह "रूवादिगुणो" रूप आदि गणोंसे सहित है। "अमुत्ति सेसा हु" पुद्गलके बिना बाकी धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये चारों रूप आदि गुणोंका अभाव होनेसे अमूर्त हैं। जैसे अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख और अनन्त वीर्य ये चारों गुण सब जीवोंमें साधारण हैं; उसी प्रकार रूप, रस, गंध तथा स्पर्ग ये चार गण सब पुद्गलों में साधारण हैं। और जैसे शुद्ध बुद्ध एक स्वभावके धारक सिद्ध जीवमें अनन्त चतुष्टय अतीन्द्रिय है; उसी प्रकार शुद्ध पुद्गल परमाणु द्रव्यमें रूप आदि चतुष्टय अतीन्द्रिय है। जैसे राग आदि स्नेह गुणसे कर्मबन्धावस्था में ज्ञान, दर्शन, सुख तथा वीर्य इन चारोंकी अगुद्धता है; उसी प्रकार स्निग्ध रूक्षत्व गुणसे व्यणुक आदि बन्धावस्थामें रूप आदि चतुष्टयको अशुद्धता है। जैसे स्नेहरहित निज परमात्माकी भावनाके बलसे राग आदि स्निग्धताका विनाग होनेपर अनन्त चतुष्टयका शुद्धत्व है; वैसे "जघन्य गुणोंका बन्ध नहीं होता है' इस वचनसे परमाणु द्रव्यमें स्निग्ध रूक्षत्व गुणकी जघन्यता होनेपर रूप आदि चतुष्टयका शुद्धत्व समझना चाहिये , यह अभिप्राय है ।। १५ ।। अब पुद्गलद्रव्यके विभाव व्यञ्जनपर्यायोंका प्रतिपादन करते हैं गाथाभावार्थ-शब्द, बन्ध, सूक्ष्म, स्थूल, संस्थान, भेद, तम, छाया, उद्योत और आतप इन करके महित जो हैं वे सब पुद्गल द्रव्यके पर्याय हैं ।। १६ ॥ व्याख्यार्थ-शब्द, बन्ध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान, भेद, तम, छाया, उद्योत और आतप इन सहित पुद्गल द्रव्यके पर्याय होते हैं । अब इस विषयको विस्तारसे कहते हैं-भाषात्मक तथा अभाषात्मक इस प्रकार शब्द दो प्रकारका है। उनमें भाषात्मक शब्द अक्षरात्मक और अनक्षरात्मक भेदसे दो प्रकारका है। उनमें भी संस्कृत, प्राकृत तथा उनके अपभ्रंशरूप पैशाची आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001919
Book TitleBruhaddravyasangrah
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Philosophy
File Size20 MB
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