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श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
[प्रथम अधिकार
परमात्मशक्तेः केवलज्ञानादिरूपेण व्यक्तिर्न भविष्यतीत्यभव्यत्वं, शक्तिः पुनः शुद्धनयेनोभयत्र समाना। यदि पुनः शक्तिरूपेणाप्यभव्यजीवे केवलज्ञानं नास्ति तदा केवलज्ञानावरणं न घटते । भव्याभव्यद्वयं पुनरशुद्धनयेनेति भावार्थः। एवं यथा मिथ्यादृष्टिसंज्ञे बहिरात्मनि नयविभागेन दर्शितमात्मत्रयं तथा शेषगणस्थानेष्वपि । तद्यथा-बहिरात्मावस्थायामन्तरात्मपरमात्मद्वयं शक्तिरूपेण भाविनैगमनयेन व्यक्तिरूपेण च विज्ञेयम्, अन्तरात्मावस्थायां तु बहिरात्मा भूतपूर्वन्यायेन घतघटवत्, परमात्मस्वरूपं तु शक्तिरूपेण भाविनैगमनयेन व्यक्तिरूपेण च । परमात्मावस्थायां पुनरन्तरात्मबहिरात्मद्वयं भूतपूर्वनयेनेति । अथ त्रिधात्मानं गुणस्थानेषु योजयति । मिथ्यासासादनमिश्रगुणस्थानत्रये तारतम्यन्यूनाधिकभेदेन बहिरात्मा ज्ञातव्यः, अविरतगुणस्थाने तद्योग्याशुभलेश्यापरिणतो जघन्यान्तरात्मा, क्षीणकषायगुणस्थाने पुनरुत्कृष्टः, अविरतक्षीणकषाययोमध्ये मध्यमः, सयोग्ययोगिगुणस्थानद्वये विवक्षितैकदेशशुद्धनयेन सिद्धसदृशः परमात्मा, सिद्धस्तु साक्षास्परमात्मेति । अत्र बहिरात्मा हेयः, उपादेयभूतस्यानन्तसुखसाधकत्वादन्तरात्मोपादेयः, परमात्मा पुनः साक्षादुपादेय इत्यभिप्रायः । एवं षड्द्रव्यपश्चास्तिकायप्रतिपादकप्रथमाधिकारमध्ये नमस्कारा
मिथ्यादृष्टि अभव्यजीवमें तो बहिरात्मा व्यक्तिरूपसे और अन्तरात्मा तथा परमात्मा ये दोनों शक्तिरूपसे ही रहते हैं। और भावी नैगमनयकी अपेक्षासे अन्तरात्मा तथा परमात्मा अभव्यमें व्यक्तिरूपसे नहीं रहते । कदाचित् यह कहो कि, यदि अभव्य जीवमें परमात्मा शक्तिरूपसे रहता है तो अभव्यत्व कैसे हो सकता है ? तो इस शंकाका उत्तर यह है कि अभव्य जीवमें परमात्माकी जो शक्ति है उसकी केवल ज्ञान आदि रूपसे व्यक्ति न होगी इसलिये उसमें अभव्यत्व है और शुद्ध नयसे परमात्माकी शक्ति तो मिथ्यादृष्टि भव्य और अभव्य इन दोनोंमें समान ही है। और यदि अभव्य जीवमें शक्तिरूपसे भी केवल ज्ञान नहीं हो तो केवल ज्ञानावरण कर्म नहीं सिद्ध होते । तथा भव्य अभव्य ये दोनों अशुद्ध नयसे हैं यह भावार्थ है। इस प्रकार जैसे मिथ्यादृष्टि नामक बहिरात्मामें नयविभागसे तीनों आत्माओंका प्रदर्शन किया उसी प्रकार बाकीके जो तेरह गणस्थान हैं उनमें भी देखना चाहिये । वे इस प्रकार हैं:-बहिरात्माकी दशामें अन्तरात्मा तथा परमात्मा ये दोनों शक्तिरूपसे रहते हैं और भावी नैगमनयसे व्यक्तिरूपसे भी रहते हैं ऐसा जानना चाहिये । और अन्तरात्माकी अवस्थामें तो बहिरात्मा भूतपूर्वन्यायसे घृतके घटके समान और परमात्माका स्वरूप शक्तिरूपसे तथा भावी नंगम नयकी अपेक्षासे व्यक्तिरूपसे समझना चाहिये। और परमात्माकी अवस्थामें अन्तरात्मा तथा बहिरात्मा ये दोनों भूतपूर्व नयसे जानने चाहिये । अब तीनों प्रकारके आत्माओंको गणस्थानोंमें योजित करते हैं-मिथ्यात्व, सासादन और मिश्र इन तीनों गुणस्थानोंमें तारतम्य न्यूनाधिक भावसे बहिरात्मा जानना चाहिये, अविरत नाम चतुर्थ गुणस्थानमें उसके योग्य अशुभ लेश्याओंसे परिणत जघन्य अन्तरात्मा है और क्षीणकषाय नामक बारहवें गुणस्थानमें उत्कृष्ट अन्तरात्मा है। अविरत और क्षीणकषाय अर्थात् चतुर्थ तथा बारहवें गुणस्थानोंके मध्यमें जो सात गुणस्थान हैं उनमें मध्यम अन्तरात्मा है तथा सयोगी और अयोगी इन दोनों गुणस्थानोंमें विवक्षित एकदेश शुद्धनयसे सिद्ध के सदृश परमात्मा है और सिद्ध तो साक्षात् परमात्मा ही है। यहाँ बहिरात्मा तो हेय है और उपादेयभूत अनन्त सुखका साधक होनेसे अन्तरात्मा उपादेय है तथा परमात्मा साक्षात् उपादेय है, यह अभिप्राय है । इस प्रकार षट् द्रव्य और पंच अस्तिकायका प्रतिपादन करनेवाले प्रथम अधिकारमें
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