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श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
[प्रथम अधिकार
समणा अमणा णेया पंचिंदिय णिम्मणा परे सव्वे । बादरसुहमेइंदी सव्वे पज्जत इदरा य ।। १२ ।। समनस्काः अमनस्काः ज्ञेयाः पञ्चेन्द्रियाः निर्मनस्काः परे सर्वे ।
बादरसूक्ष्मैकेन्द्रियाः सर्वे पर्याप्ताः इतरे च ॥ १२॥ व्याख्या-"समणा अमणा" समस्तशुभाशुभविकल्पातीतपरमात्मद्रव्यविलक्षणं नानाविकल्पजालरूपं मनो भण्यते तेन सह ये वर्तन्ते ते समनस्काः, तद्विपरीता अमनस्का असंज्ञिनः ‘‘णेया" ज्ञेया ज्ञातव्याः । “पंचिदिय" ते संज्ञिनस्तथैवासंजिनश्च पञ्चेन्द्रियाः । एवं संज्यसंज्ञिपञ्चेन्द्रियास्तिर्यञ्च एव, नारकमनुष्यदेवाः संज्ञिपञ्चेन्द्रिया एव । "णिम्मणा परे सव्वे" निर्मनस्काः पञ्चेन्द्रियात्सकाशादपरे सर्वे द्वित्रिचतुरिन्द्रियाः "बादरसुहमेइंदी" बादरसूक्ष्मा एकेन्द्रियास्तेऽपि यदष्टपत्रपद्माकारं द्रव्यमनस्तदाधारण शिक्षालापोपदेशादिग्राहकं भावमनश्चेति तदुभयाभावादसंजिन एव । "सब्वे पज्जत्त इदरा य" एवमुक्तप्रकारेण संश्यसंज्ञिरूपेण पञ्चेन्द्रियद्वयं द्वित्रिचतुरिन्द्रियरूपेण विकलेन्द्रियत्रयं बादरसक्ष्मरूपेणैकेन्द्रियद्वयं चेति सप्तभेदाः । “आहारसरीरिदियपज्जत्ती आणपाणभासमणा। चत्तारिपंचछप्पियएड दियवियलसणिसणीणं।१।" इति गाथाकथितक्रमेण ते सर्वे प्रत्येकं स्वकीयस्वकीय-पर्याप्तिसंभवात्सप्त पर्याप्ताः सप्तापर्याप्ताश्च भवन्ति ।
गाथाभावार्थ-पंचेन्द्रिय जीव संज्ञी और असंज्ञी ऐसे दो प्रकारके जानने चाहिये और दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय ये सब मनरहित ( असंज्ञी ) हैं, एकेन्द्रिय बादर और सूक्ष्म दो प्रकार के हैं और ये पूर्वोक्त सातों पर्याप्त तथा अपर्याप्त हैं, ऐसे १४ जीवसमास हैं ।। १२॥
व्याख्यार्थ-"समणा अमणा" संपूर्ण शुभ तथा अशभरूप जो विकल्प हैं, उन विकल्पोंसे रहित जो परमात्मारूप द्रव्य है, उससे विलक्षण नाना प्रकारके विकल्पजालोंरूप जो है उसको मन कहते हैं, उस मनसे सहित जो हैं उनको समनस्क (सेनी) कहते हैं और उनसे विरुद्ध अर्थात् पूर्वोक्त मनसे शून्य अमनस्क अर्थात् असंज्ञी ( असेनी ) "णेया" जानने चाहिये । "पंचिदिया" पंचेन्द्रिय जीव संज्ञी तथा असंज्ञी दोनों होते हैं परन्तु संज्ञो तथा असंज्ञी ये दोनों पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च ही होते हैं और नारक, मनुष्य तथा देव ये संज्ञी पञ्चेन्द्रिय ही होते हैं। "णिम्मणा परे सव्वे" पञ्चेन्द्रियसे भिन्न अन्य सब द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीव मनरहित ( असेनी ) हैं । "बादरसुहमेइंदी" बादर (स्थूल) और सूक्ष्म जो एकेन्द्रिय हैं, वे भी आठ पाँखडीके कमलके आकार जो द्रव्यमन और उस द्रव्यमनके आधारसे शिक्षा, वचन और उपदेश आदिका ग्राहक भावमन इन दोनोंके अभावसे असंज्ञी ( मनरहित ) ही हैं। 'सव्वे पज्जत्तइदरा य" इस पूर्वोक्त प्रकारसे संज्ञी असंज्ञीरूप दोनों पञ्चेन्द्रिय और द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय रूप जो विकलत्रय
और बादर, तथा सूक्ष्म भेदसे दोनों एकेन्द्रिय ऐसे ये सात भेद हुए। तथा "आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास, भाषा तथा मन ये षट् पर्याप्ती हैं, इनमेंसे जो एकेन्द्रिय जीव हैं उनको तो केवल आहार, शरीर, एक इन्द्रिय, तथा श्वासोच्छ्वास ये चार पर्याप्तियाँ होती हैं। संज्ञी पंचेन्द्रियोंके चार ये पूर्वोक्त, और भाषा तथा मन ये छहों पर्याप्तियाँ होती हैं, और शेष जीवोंके मनरहित पाँच पर्याप्तियाँ होती हैं।' इस गाथामें कहे हुए क्रमसे वे सब हरएक अपनी-अपनी पर्याप्तियोंके होनेसे सात तो पर्याप्त हैं, और सात अपर्याप्त हैं। ऐसे चौदह जीव
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