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________________ [४] व श्रीचामुंड मंत्री दोनों अत्यन्त हर्षित हुए | श्रीचामुण्ड उक्त प्रतिबिम्बको भावनमस्कार करके घर गये और सब वृत्तान्त अपनी माता कालिकाको कह सुनाया, जिसको श्रवणकर वह बहुत आनन्दित हुई और तत्काल अपने पुत्र चामुण्डसहित जिनमन्दिरमें जाकर श्रीजिनेन्द्रकी स्तुति करनेके पश्चात् अपने गुरु (अजितसेन) के गुरु' श्रीसिंहनन्दी आचार्यको नमस्कार किया । तदनन्तर पश्चात्सोऽजितसेनपण्डितमुनिं देशीगणाग्रेसरं __स्वस्याधिप्यसुखाब्धिवर्द्धनशशीं श्रीनन्दिसङ्घाधिपम् । श्रीमद्भासुरसिंहनन्दिमुनिपाङ्मयम्भोजरोलम्बकं चानभ्य प्रवदत्सुपौदनपुरीश्रीदोर्बलेवृत्तकम् ।। बा.ब.च. २८॥ इस श्लोकके अनुसार श्रीचामुंडने २देशीयगणमें प्रधान श्रीअजितसेन मुनिको नमस्कार करके श्रीबाहुबलीके प्रतिबिम्ब सम्बन्धी समाचार कहे । और “मैं जबतक श्रीबाहुबलीके प्रतिबिंबका दर्शन न करूँगा तबतक दूध नहीं पीऊँगा" इस प्रकारकी प्रतिज्ञा उनके समक्ष धारण की । वहाँसे आकर राजाको अपना यात्राका मनोरथ प्रकट किया और सिद्धान्ताम्भोधिचन्द्रः प्रणुतपरम देशीगणाम्भोधिचन्द्रः __ स्याद्वादाम्भोधिचन्द्रः प्रकटितनयनिक्षेपवाराशिचन्द्रः । एनश्चक्रौघचन्द्रः पदनुतकमलवातचन्द्रः प्रशस्तो जीयाज्ज्ञानाब्धिचन्द्रो मुनिपकुलवियच्चन्द्रमा नेमिचन्द्रः ॥ बा.ब.च.६२ ।। सिद्धान्तामृतसागरं स्वमतिमन्थक्ष्माभृदालोडय यः लेभेऽभीष्टफलप्रदानपि सदा देशीगणाग्रेसरः । श्रीमद्गोमटलब्धिसारविलसत्त्रैलोक्यसारामर माजश्रीसुरधेनुचिन्तितमणीन् श्रीनेमिचन्द्रो मुनिः ॥ बा.ब.च. ६३ ।। इत्यादि गुणोंके धारक श्रीनेमिचन्द्रस्वामी सहित श्रीचामुण्डने अपनी माताको, अनेक विद्वानोंको तथा चतरंगसेनाको साथ लेकर गोमट्टस्वामीकी यात्राके निमित्त उत्तर दिशाको गमन किया । कितने करके विंध्याचल पर्वतके समीप पहुँचे । वहाँ किसीसे पर्वतपर स्थित जिनमंदिरका पता पाकर वहाँ गये और श्रीजिनेन्द्रकी पूजा स्तुति करके रात्रिको उसी जिनमंदिरके मंडपमें निवास किया । रात्रिके चतुर्थ प्रहरमें श्रीनेमिचन्द्र, चामुण्ड और चामुण्डकी माता इन तीनोंको कुष्माण्डीने३ स्वप्नमें कहा कि, “पोदनपुर जानेका मार्ग कठिन है । इस पर्वतमें रावणद्वारा स्थापित श्री बाहुबलीका प्रतिबिम्ब है । वह धनुषमें सुवर्णके बाण चढाकर उनसे पर्वतको भेदनेपर प्रकट होगा ।" प्रातःकाल चामुण्डने मुनिको स्वप्नका वृत्तान्त निवेदन किया, जिसको सुनकर मुनिने स्वप्नके अनुकूल प्रवृत्ति करनेका उपदेश दिया । तदनुसार चामुण्ड स्नान करके भूषणोंसे भूषित होकर, मुनिके समक्ष उपवास धारण करके, दक्षिणदिशामें खडा होकर धनुषद्वारा सुवर्णका बाण चलाया, जिससे पर्वतमें छिद्र होकर वहाँपर द्विपञ्चतालसमलक्षणपूर्णगात्रो विशच्छरासनसमोन्नतभासमूर्तिः । सन्माधवीव्रततिनागलसत्सुकायः सद्यः प्रसन्न इति बाहुबली बभूव ॥ बा. ब. च. ४३ ।। (१) गोमट्टसारकी एक गाथासे विदित होता है कि श्रीअजितसेनके विद्यागुरु श्रीआर्यसेन मुनि थे । (२) "पूर्वं जैनमतागमाब्धिविधुवच्छ्रीनन्दिसंघेभवन-सुज्ञानर्द्धितपोधनाः कुवलयानन्दा मयूखा इव । सत्संघे भुवि देशदेशनिकरे श्रीसुप्रसिद्ध सति-श्रीदेशीयगणो द्वितीयविलसन्नाम्ना मिथः कथ्यते ॥ बा. ब. च. ८७ ॥" इसके अनुसार जब नंदिसंघके आचार्य और मुनि सम्पूर्ण देशोंमें व्याप्त तथा प्रसिद्ध हो गये, तब नंदिसंघ "देशीयगण" इस नामसे कहे जाने लगा। (३) 'कुष्माण्डी' यह एक जिनशासन देवी है अर्थात् २२ वें तीर्थंकर श्रीनेमिनाथस्वामीकी यक्षिणी है और आम्रकुष्मांडिका, चंडी, अम्बिका, इत्यादि इसीके नामान्तर हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001919
Book TitleBruhaddravyasangrah
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Philosophy
File Size20 MB
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