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________________ [३] प्रथमावृत्तिकी प्रस्तावना बृहद्रव्यसंग्रह यह बृहद्र्व्यसंग्रह नामक ग्रन्थरत्न जैनसमाजमें 'द्रव्यसंग्रह' इस नामसे प्रसिद्ध है । प्रायः ऐसा कोई भी जिनमंदिर व सरस्वतीभंडार नहीं है, जिसमें यह ग्रन्थ विद्यमान न हो । जैनी भाई इसको तत्त्वार्थसूत्रके समान ही माननीय और उपयोगी समझते हैं । यह समस्त जैनपाठशालाओंमें पढाया जाता है । और ८-१० वर्षकी अवस्थावाले विद्यार्थी भी इसकी गाथाओंको कण्ठस्थ कर लेते हैं जो उनको उपदेशादिके अवसरमें यावज्जीव काम आती हैं । टीकाकारका कथन है कि आचार्यने प्रथम ही २६ गाथासूत्रोंका 'लघुद्रव्यसंग्रह बनाया था । फिर विशेष वर्णन करनेकी इच्छासे 'बृहद्र्व्यसंग्रह रचा । तदनुसार ही हमने भी इस शास्त्ररत्नका नाम बृहद्रव्यसंग्रह ही रक्खा है । श्रीनेमिचन्द्रसैद्धान्तिकचक्रवर्ती - इसके कर्ता प्रातःस्मरणीय भगवान् श्रीनेमिचन्द्रसिद्धान्तिकचक्रवर्तीने अपने पवित्र शरीरसे कब किस वसुधामण्डलको मंडित किया ? इत्यादि ऐतिहासिक विषयोंका संक्षिप्त वर्णन संस्कृत छन्दोबद्ध भुजबलि (बाहुबलि वा गोमट) चरित्रके अनुसार यहाँ लिखते हैं । द्राविडदेशमें एक मधुरा नामक नगरी थी । जोकि, प्राचीन शास्त्रोंमें दक्षिणमथुरा और आजकलकी भूगोलोंमें मडूरा नामसे प्रसिद्ध है । वहाँ पर श्रीदेशीयगणाब्धिपूर्णमृगभृच्छ्रीसिंहनन्दिव्रति श्रीपादाम्बुजयुग्ममत्तमधुपः सम्यक्त्वचूडामणिः । श्रीमज्जैनमताब्धिवर्द्धनसुधासूतिर्महीमण्डले रेजे श्रीगुणभूषणो बुधनुतः श्रीराजमल्लो नृपः ॥ (बाहुबलीचरित्र ६) इस श्लोकके अनुसार देशीयगणके स्वामी श्रीसिंहनन्दी आचार्यके चरणकमलसेवक गंगवंशतिलक श्रीराजमल्ल नामक महाराजा हुए | और उनके तस्यामात्यशिखामणिः सकलवित्सम्यक्त्वचूडामणि भव्याम्भोजवियन्मणिः सुजनवन्दिवातचूडामणिः । ब्रह्मक्षत्रियवैश्यशुक्तिसुमणिः कीोघमुक्तामणिः पादन्यस्तमहीशमस्तकमणिचामुण्डभूपोऽग्रणीः ॥(बा. ब. च. ११) इस श्लोकके अनुसार श्रीचामुण्ड नामा राजा महा अमात्य (बड़े मंत्री वा मुसाहिब) हुए । एक दिन राजमल्ल श्रीचामुण्ड सहित सभामें विराज रहे थे । उस समय किसी ३शेठने आकर प्रणाम करके कहा कि, "महाराज ! उत्तरदिशामें एक पोदनपुर नगर है, वहाँपर श्रीभरतचक्रवर्ती द्वारा स्थापित कायोत्सर्ग श्रीबाहुबलीका प्रतिबिम्ब है, जोकि, वर्तमानमें 'गोमट्ट' इस नवीन नामसे भूषित है ।" इत्यादि । इस वृत्तान्तको सुनकर राजा (१) प्रथम अधिकारमें नमस्कारगाथाके बिना जो शेष २६ गाथासूत्र हैं, इन्हींको श्रीमान् आचार्य महाराजने पहिले बनाये थे । इसलिये इन २६ गाथाओंके समुदायका नाम ही लघुद्रव्यसंग्रह है। इसमें जीव १, पुद्गल २, धर्म ३, अधर्म ४, आकाश ५, और काल ६, इन छ: द्रव्योंका सामान्य निरूपण है। [इस आवृत्तिमें परिशिष्टमें 'लघुद्रव्यसंग्रह' दिया गया है, इससे लगता है कि यह एक स्वतंत्र रचना है और अनुवादक (प्रस्तावनाकार) का यह कथन कुछ गलत प्रतीत होता है। - प्रकाशक] (२) नमस्कारगाथा १, सप्ततत्त्वनवपदार्थप्रतिपादक नामा द्वितीय अधिकारकी ११ गाथायें और मोक्षमार्गप्रतिपादक नामा तृतीय अधिकारकी २० गाथायें, इन सहित जो लघुद्रव्यसंग्रहकी २६ गाथायें हैं, उनका अर्थात् तीनों अधिकारोंकी ५८ गाथाओंका नाम बहद्रव्यसंग्रह है। (३)'शेठको पोदनपुरमें गोमट्टस्वामीका अस्तित्व कैसे मालूम हुआ ?' इस शंकाका समाधान नहीं हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001919
Book TitleBruhaddravyasangrah
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Philosophy
File Size20 MB
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