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( १ ) प्रथमोऽधिकारः
अथेदानीं गाथापूर्वार्द्धन सम्बन्धाऽभिधेयप्रयोजनानि कथयाम्युत्तरार्द्धेन च मङ्गलार्थमिष्टदेवतानमस्कारं करोमीत्यभिप्रायं मनसि धृत्वा भगवान् सूत्रमिदं प्रतिपादयति, -
जीवमजीवं दव्वं जिणवरवसहेण जेण णिद्दिनं । देविंदबिंदवंदं वंदे तं सव्वदा सिरसा ॥ १ ॥
जीवमजीवं द्रव्यं जिनवरवृषभेण येन निर्दिष्टम् । देवेन्द्रवृन्दवन्द्य ं वन्दे तं सर्वदा शिरसा ॥ १ ॥
व्याख्या- 'वंदे' इत्यादिक्रियाकारकसम्बन्धेन पदखण्डनारूपेण व्याख्यानं क्रियते । 'वंदे' एकदेश शुद्ध निश्चयनयेन स्वशुद्धात्माराधनलक्षणभावस्तवनेन, असद्भूतव्यवहारनयेन तत्प्रतिपादकवचनरूपद्रव्यस्तवनेन च 'वन्दे' नमस्करोमि । परमशुद्ध निश्चयनयेन पुनर्वन्धवन्दकभावो नास्ति । सकः कर्त्ता ? अहं नेमिचन्द्रसिद्धान्तिदेवः । कथं वन्दे ? " सव्वदा " सर्वकालम् । केन ? " सिरसा " उत्तमाङ्गेन । "तं" कर्म्मतापन्नं वीतरागसर्वज्ञम् । तं किविशिष्टम् ? 'देविदविदवंदं' मोक्षपदा
अब गाथा पूर्वार्धसे सम्बन्ध, अभिधेय तथा प्रयोजनका कथन करता हूँ, और गाथाके उत्तरार्द्धसे मंगलके लिये इष्टदेवताको नमस्कार करता हूँ, इस अभिप्रायको मनमें धारण करके भगवान् श्रीनेमिचन्द्रस्वामी इसका प्रथम सूत्रका प्रतिपादन करते हैं; --
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गाथा भावार्थ - मैं ( श्रीनेमिचन्द्र ) जिस जिनवरोंमें प्रधानने जीव और अजीव द्रव्यका कथन किया, उस देवेन्द्रादिकों के समूहसे वंदित तीर्थंकर परमदेवको सदा मस्तकसे नमस्कार करता हूँ ।। १ ।।
व्याख्यार्थ - 'वदे' इत्यादि पदोंका क्रियाकारकभावसम्बन्धसे पदखंडनारूपसे अर्थात् खंडान्वयकी रीतिद्वारा व्याख्यान किया जाता है । "वंदे" एकदेशमें शुद्ध ऐसा जो निश्चयनय है, उसकी अपेक्षासे तो निज-शुद्ध आत्माका आराधन करनेवाले भावस्तवनसे और असद्भूतव्यवहार tant अपेक्षा से उस निज-शुद्ध-आत्माका प्रतिपादन करनेवाले वचनरूप द्रव्यस्तवन से नमस्कार करता हूँ। और परमशुद्ध निश्चयनयसे वन्द्यवन्दक भाव नहीं है, अर्थात् एकदेशशुद्ध निश्चयनय और असद्भूतव्यवहारनयकी अपेक्षासे हो श्रीजिनेन्द्र वन्दना करनेयोग्य हैं और मैं वन्दना करनेवाला हूँ। और परमशुद्ध निश्चयनयको अपेक्षासे वन्द्यवन्दक भाव नहीं है । क्योंकि श्री जिनेन्द्र और मैं इन दोनों का आत्मा समान ही है । वह नमस्कार करनेवाला कौन है ? मैं द्रव्यसंग्रहग्रन्थका कर्त्ता श्रीनेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव हूँ । कब और कैसे नमस्कार करता हूँ ? " सव्वदा " सब काल में "सिरसा " उत्तम अंग जो मस्तक है उससे नमस्कार करता हूँ। किसको नमस्कार करता हूँ ? "तं" वन्दन क्रिया कर्म को प्राप्त हुए श्रीवीतरागसर्वज्ञको ( श्रीजिनेन्द्रको ) | कैसे श्रीजिनेन्द्रको ? "देविदविद
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