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________________ उपोद्घात ] बृहद्रव्यसंग्रहः www.www.wwwxx चतुर्दशगाथासु मध्ये नमस्कारमुख्यत्वेन प्रथमगाथा। जीवादिनवाधिकारसूचनरूपेण “जीवो उवओगमओ" इत्यादिद्वितीयसूत्रगाथा। तदनन्तरं नवाधिकारविवरणरूपेण द्वादशसूत्राणि भवन्ति । तत्राप्यादौ जीवसिद्धयर्थं "तिक्काले चदुपाणा" इतिप्रभृतिसूत्रमेकम्, तदनन्तरं ज्ञानदर्शनोपयोगद्वयकथनार्थ “उवओगो दुवियप्पो" इत्यादिगाथात्रयम्, ततः परममूर्तत्वकथनेन “वण्णरसपंच" इत्यादिसूत्रमेकम्, ततोऽपि कर्मकर्तृत्वप्रतिपादनरूपेण “पुग्गलकम्मादीणं" इतिप्रभृतिसूत्रमेकम्, तदनन्तरं भोक्तृत्वनिरूपणार्थ 'ववहारा सुहदुक्खं" इत्यादिसूत्रमेकम्, ततःपरं स्वदेहप्रमितिसिद्धयर्थं ''अणुगुरुदेहपमाणो' इतिप्रभृतिसूत्रमेकम्, ततोऽपि संसारिजीवस्वरूपकथनेन "पुढविजलतेउवाऊ" इत्यादिगाथात्रयम्, तदनन्तरं “णिक्कम्मा अढगुणा” इतिप्रभृतिगाथापूर्वार्धन सिद्धस्वरूपकथनम्, उत्तरार्धेन पुनरूर्ध्वगतिस्वभावः। इति नमस्कारादिचतुर्दशगाथामेलापकेन प्रथमाऽधिकारे समुदायपातनिका ॥ अन्तराधिकार है। तत्पश्चात् “एवं छन्भेयमिदं" इसको आदिमें लेकर "जावदियं आयासं" इस गाथापर्यन्त पाँच सूत्रोंसे पाँचों अस्तिकायोंका निरूपण करनेवाला पञ्चास्तिकायप्रतिपादक नामा तृतीय अन्तराधिकार है। इस प्रकार प्रथम अधिकारमें तीन अन्तराधिकार समझने चाहिये। अब प्रथम अधिकारके प्रथम अन्तराधिकारमें जो चौदह गाथाएँ हैं उनमें नमस्कारको मुख्यतासे प्रथम गाथा है। जीव आदि नव अधिकारोंके सूचनरूपसे "जीवो उवओगमओ" इत्यादि रूप द्वितीय सूत्रगाथा है। इसके अनन्तर नौ अधिकारोंका विशेषरूपसे वर्णन करनेवाले बारह सूत्र हैं । उन बारह सूत्रोंमें भी प्रथम ही जीवकी सिद्धिके लिये “तिक्काले चदुपाणा" इत्यादि एक सूत्र है। इसके पश्चात् ज्ञान और दर्शन इन दोनों उपयोगोंका कथन करनेके लिये "उवओगो दुवियप्पो" इत्यादि तीन गाथासूत्र हैं। इसके अनन्तर अमूर्तताका कथन करनेरूपसे "वण्णरसपंचगंधा" इत्यादि एक गाथासूत्र है। तत्पश्चात् जीवके कर्मकर्तृताका प्रतिपादन करनेरूपसे 'पुग्गलकम्मादीणं" इत्यादि एक गाथासूत्र है। इसके अनन्तर जीवके कर्मफलोंका भोक्तापनेका कथन करनेके लिये “अणुगुरुदेहपमाणो" इत्यादि एक गाथासूत्र है। और इसके अनन्तर संसारी जीवके स्वरूपका कथन करनेरूपसे "पुढ विजलतेउवाऊ" इत्यादि तीन गाथासूत्र हैं। इसके पश्चात् "णिक्कम्मा अट्ठगुणा'' इत्यादि गाथाके पूर्वार्धसे जीवके सिद्धस्वरूपका कथन किया गया है; और उत्तरार्द्धसे जीवके ऊर्ध्वगमन स्वभावका वर्णन किया गया है । इस प्रकार नमस्कारगाथाको आदि लेकर जो चौदह गाथासूत्र हैं, उनका मेल करनेसे प्रथम अधिकारमें समुदायपातनिका है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001919
Book TitleBruhaddravyasangrah
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Philosophy
File Size20 MB
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