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लघुद्रव्यसंग्रह (सार्थ) मा मुज्झह मा रज्जह मा दूसह इट्टणि?अढेसु । थिरमिच्छहि जइ चित्तं विचित्तज्माणप्पसिद्धीए ॥४८॥ पणतीससोलछप्पणचदुदुगमेगं च जवह ज्झाएह। परमेट्ठिवाचयाणं अण्णं च गुरूवएसेण ॥ ४९ ॥ णट्टचदुघाइकम्मो सणसुहणाणवीरियमईओ। सुहदेहत्थो अप्पा सुद्धो अरिहो विचितिज्जो ॥ ५० ॥ णटुट्ठकम्मदेहो लोयालोयस्स जाणओ दट्ठा। पुरिसायारो अप्पा सिद्धो ज्झाएह लोयसिहरत्थो ॥५१॥ दसणणाणपहाणे वोरियचारित्तवरतवायारे। अप्पं परं च जुंजइ सो आयरिओ मुणी झेओ॥५२॥ जो रयणतयजुत्तो णिच्चं धम्मोवदेसणे हिरदो। सो उवज्झाओ अप्पा जदिवरवसहो णमो तस्स ॥ ५३॥ दसणणाणसमग्गं मग्गं मोक्खस्स जो हु चारित्तं । साधयदि णिच्चसुद्धं साहू स मुणी णमो तस्स ॥ ५४॥ जं किंचिवि चितंतो णिरीहवित्ती हवे जदा साहू। लढूणय एयत्तं तदाहु तं तस्स णिच्छयं ज्झाणं ॥ ५५ ॥ मा चिट्ठह मा जंपह मा चिन्तह किवि जेण होइ थिरो। अप्पा अप्पम्मि रओ इणमेव परं हवे ज्झाणं ॥५६ ॥ तवसुदवदवं चेदा झाणरहधुरंधरो हवे जम्हा। तम्हा तत्तियणिरदा तल्लद्धीए सदा होह ॥ ५७ ॥ दव्वसङ्गहमिणं मुणिणाहा दोससंचयचुदा सुदपुण्णा। सोधयंतु तणुसुत्तधरेण मिचन्दमुणिणा भणियं जं ॥ ५८॥
परिशिष्ट२ लघुद्रव्यसंग्रह
(सार्थ) छद्दव पंच अत्थी सत्त वि तच्चाणि णव पयत्था य।
भंगुप्पाय-धुवत्ता णिद्दिद्वा जेण सो जिणो जयउ ॥१॥ जिन्होंने छः द्रव्य, पाँच अस्तिकाय, सात तत्त्व, नौ पदार्थ और उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यका निर्देश किया है वे श्री जिनेन्द्रदेव जयवन्त रहें।
____ जीवो पुग्गल धम्माऽधम्मागासो तहेव कालो य।।
दव्वाणि कालरहिया पदेश बाहल्लदो अत्थिकाया य ॥२॥ जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये छः द्रव्य हैं; कालको छोडकर शेष पाँच द्रव्य बहुप्रदेशी होनेकै कारण अस्तिकाय हैं।
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