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________________ १७८ श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [ तृतीय अधिकार वस्थास्वरूपं, तदेव परमात्मनः दर्शनं, तदेव परमात्मज्ञानं, तदेव परमावस्थारूपपरमात्मस्पर्शनं तदेव ध्येयभूतशुद्धपारिणामिकभावरूपं, तदेव ध्यानभावनास्वरूपं, तदेव शुद्धचारित्रं, तदेवान्तस्तत्त्वं, तदेव परमतत्त्वं, तदेव शुद्धात्मद्रव्यं, तदेव परमज्योतिः, सैव शुद्धात्मानुभूतिः, सैवात्मप्रतीतिः, सैवात्मसम्वित्तिः, सैव स्वरूपोपलब्धिः, स एव नित्योपलब्धिः, स एव परमसमाधिः, स एव परमानन्दः, स एव नित्यानन्दः, स एव सहजानन्दः, स एव सदानन्दः, स एव शुद्धात्मपदार्थाध्ययनरूपः, स एव परमस्वाध्यायः, स एव निश्चयमोक्षोपायः, स एव चैकाग्रचिन्तानिरोधः, स एव परमबोधः, स एव शुद्धोपयोगः, स एव परमयोगः, स एव भूतार्थः, स एव परमार्थः, स एव निश्चयपञ्चाचारः, स एव समयसारः, स एवाध्यात्मसारः, तदेव समतादिनिश्चयषडावश्यकस्वरूपं, तदेवाभेदरत्नत्रय स्वरूपं, तदेव वीतरागसामायिक, तदेव परमशरणोत्तममङ्गलं, तदेव केवलज्ञानोत्पत्तिकारणं, तदेव सकलकर्मक्षयकारणं, सैव निश्चयचतुर्विधाराधना, सैव परमात्मभावना, सैव शुद्धात्मभावनोत्पन्नसुखानुभूतिरूपपरमकला, सेव दिव्यकला, तदेव परमाद्वैतं, तदेव परमामृतपरमधर्मध्यानं, तदेव शुक्लध्यानं, तदेव रागादिविकल्पशून्यध्यानं, तदेव निष्कलध्यानं, तदेव परमस्वास्थ्यं, तदेव परमवीतरागत्वं, तदेव परमसाम्यं, तदेव परमैकत्वं, तदेव परमभेदज्ञानं, स एव परमसमरसीभावः, इत्यादिसमस्तरागादिविकल्पोपाधिरहितपरमाह्लादैकसुखलक्षणध्यानरूपस्य निश्चयमोक्षमार्गस्य वाचकान्यन्यान्यपि पर्यायनामानि विज्ञेयानि भवन्ति परमात्मतत्त्वविद्भिरिति ॥५६॥ ज्ञान है, वही परमतत्त्वज्ञान है, वही शुद्धात्माका दर्शन है, वही परम (उत्कृष्ट) अवस्थास्वरूप है, वही परमात्माका दर्शन है, वही परमात्माका ज्ञान है, वही परमावस्थारूप परमात्माका स्पर्शन है, वही ध्यान करनेयोग्य जो शुद्ध पारिणामिकभाव है उस रूप है, वही ध्यानभावस्वरूप है, वही शुद्ध चारित्र है, वही अन्तरंगका तत्त्व है, वही परम (उत्कृष्ट) तत्त्व है, वही शुद्ध आत्मा द्रव्य है, वही परम ज्योतिः (ज्ञान) है. वही शुद्ध आत्माकी अनुभूति है, वही आत्मा द्रव्य है, वही आत्माकी प्रतीति है, वही आत्माकी संवित्ति अर्थात् साक्षात्कार है, वही निजआत्मस्वरूपकी प्राप्ति हैं, वही नित्य पदार्थकी प्राप्ति है, वही परम समाधि है, वही परम आनन्द है, वही नित्य आनन्द है, वही स्वभावसे उत्पन्न हुआ आनन्द है, वही सदानन्द है, वही शुद्ध आत्मपदार्थके पठनरूप स्वरूपका धारक है, वही परम स्वाध्याय है, वही निश्चय मोक्षका उपाय है, वही एकाग्रचिंताओंका निरोध है, वही परमज्ञान है, वही शुद्ध उपयोग है, वही परम योग है, वही भूतार्थ है, वही परमार्थ है. वही निश्चयनयके अनुसार जो ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्यरूप पाँच प्रकारका आचार है उस स्वरूप है, वही समयसार है. वही अध्यात्मसार है, वही समता आदिरूप जो निश्चयनयसे छः आवश्यक हैं उन स्वरूप है, वही अभेद रत्नत्रयरूप है, वही वीतराग सामायिक है, वही परमशरणोत्तम मंगल है, वही केवल ज्ञानोत्पत्तिका कारण है, वही समस्त कर्मोके नाशका कारण है, वही निश्चयनयकी अपेक्षासे जो दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तपभेदोंसे चार प्रकारकी आराधना है उस स्वरूप है, वही परमात्माकी भावनारूप है, वही शुद्धात्माकी भावनासे उत्पन्न जो सुख उसकी अनुभूतिरूप परमकला है, वही दिव्य कला है, वही परम अद्वैत है. वही अमृतस्वरूप परम धर्मध्यान है वही, शुक्लध्यान है, वही राग आदि विकल्पोंरहित ध्यान है, वही निष्कल ध्यान है, वही परम स्वास्थ्य है, वही परम वीतरागतारूप है, वही परम समतास्वरूप है, वही परम एकत्व हैं, वही परम भेदज्ञान है, वही परम समरसीभाव है। इनको आदि ले, सम्पूर्ण राग आदि विकल्पोंकी उपाधिसे रहित और परम आह्लादकसुखरूप लक्षणका धारक जो ध्यान है उस स्वरूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001919
Book TitleBruhaddravyasangrah
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Philosophy
File Size20 MB
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