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________________ १७७ मोक्षमार्ग वर्णन ] बृहद्रव्यसंग्रहः भूतिप्रतिबन्धकं शुभाशुभचेष्टारूपं कायव्यापारं, तथैव शुभाशुभान्तर्बहिर्जल्परूपं वचनव्यापारं, तथैव शुभाशुभविकल्पजालरूपं चित्तव्यापारञ्च किमपि मा कुरुत हे विवेकिजनाः ! 'जेण होइ थिरो' येन योगत्रयनिरोधेन स्थिरो भवति । स कः ? 'अप्पा' आत्मा। कथम्भूतः स्थिरो भवति ? 'अप्पम्मि रओ' सहजशुद्धज्ञानदर्शनस्वभावपरमात्मतत्त्वसम्यकश्रद्धानज्ञानानुचरणरूपाभेदरत्नत्रयात्मकपरपसमाधिसमुद्भूतसर्वप्रदेशाह्लादजनकसुखास्वादपरिणतिसहिते निजात्मनि रतः परिणतस्तल्लीयमानस्तच्चित्तस्तन्मयो भवति । 'इणमेव परं हवे ज्झाणं' इदमेवात्मसुखरूपे तन्मयत्वं निश्चयेन परमुत्कृष्टं ध्यानं भवति। तस्मिन् ध्याने स्थितानां यद्वीतरागपरमानन्दसुखं प्रतिभाति, तदेव निश्चयमोक्षमार्गस्वरूपम् । तच्च पर्यायनामान्तरेण किं किं भण्यते तदभिधीयते । तदेव शुद्धात्मस्वरूपं, तदेव परमात्मस्वरूपं, तदेवैकदेशव्यक्तिरूपविवक्षितैकदेशशुद्धनिश्चयेन स्वशुद्धात्मसम्वित्तिसमुत्पन्नसुखामृतजलसरोवरे रागादिमलरहितत्वेन परमहंसस्वरूपम् । इदमेकदेशव्यक्तिरूपं शुद्धनयव्याख्यानमत्र परमात्मध्यानभावनानाममालायां यथासम्भवं सर्वत्र योजनीयमिति। तदेव परब्रह्मस्वरूपं तदेव परमविष्णुस्वरूपं, तदेव परमशिवस्वरूपं, तदेव परमबुद्धस्वरूपं, तदेव परमनिजस्वरूपं, तदेव परमस्वात्मोपलब्धिलक्षणं सिद्धस्वरूपं, तदेव निरञ्जनस्वरूपं, तदेव निर्मलस्वरूपं, तदेव स्वसम्वेदनज्ञानं, तदेव परमतत्त्वज्ञानं, तदेव शुद्धात्मदर्शनं, तदेव परमा क्रियारहित ऐसा जो निजशुद्ध आत्माका अनुभव है उसको रोकनेवाला जो शुभ अशुभ चेष्टारूप कायका व्यापार है उसको, इसी प्रकार शुभ अशुभ अन्तरंग तथा बहिरंगरूप वचनके व्यापारको और इसी प्रकार शुभ अशुभ विकल्पोंके समूहरूप मनके व्यापारको कुछ भी मत करो "जेण होइ थिरो" जिन मन, वचन और कायस्वरूप तीनों योगोंके रोकनेसे स्थिर होता है; वह कौन ? "अप्पा" आत्मा । कैसा स्थिर होता है ? "अप्पम्मि रओ" सहज शुद्ध ज्ञान और दर्शन स्वभावको धारण करनेवाला जो परमात्मतत्त्व है उसके सम्यक् श्रद्धान ज्ञान तथा आचरण करनेरूप जो अभेदरत्नत्रय है उस स्वरूप जो परम ध्यान है उससे उत्पन्न और सब प्रदेशोंको आनन्द पैदा करनेवाला ऐसा जो सुख उसके आस्वादरूप परिणति सहित निज आत्मामें परिणत, तल्लीन, तन्मय तथा तच्चित्त होकर स्थिर होता है । "इणमेव परं हवे ज्झाणं" यही जो आत्माके सुखरूप में परिणमन होना है वह निश्चयसे परम अर्थात् उत्कृष्ट ध्यान होता है। उस परमध्यानमें स्थित हुए जीवोंको जो वीतरागपरमानंद सुख प्रतिभासता है वही निश्चयमोक्षमार्गस्वरूप है । वह दूसरे पर्यायनामोंसे क्या-क्या कहलाता है अर्थात् उसको किन-किन नामोंसे लोग कहते हैं सो कथन किया जाता है । वही शुद्ध आत्माका स्वरूप है, वही परमात्माका स्वरूप है, वही एक देश में प्रकटतारूप ऐसे विवक्षित एकदेशशुद्धनिश्चयनयसे निजशुद्ध आत्माके ज्ञानसे उत्पन्न जो सुख वही हुआ जो अमृतजलका सरोवर उसमें राग आदि मलोंसे रहित होनेके कारण परमहंस स्वरूप है । इस परमात्मध्यानके भावनाके नामोंकी मालामें इस एकदेशव्यक्तिरूप शुद्धनयके व्याख्यानको यथासम्भव सब जगह लगा लेना चाहिये अर्थात् यथासम्भव ये सब नाम एकदेशशुद्ध निश्चयनयकी अपेक्षासे हैं ऐसा समझना चाहिये। वही परब्रह्मस्वरूप है, वही परमविष्णुस्वरूप है, वही परमशिवस्वरूप है, वही परमबुद्ध स्वरूप है, वही परमनिजस्वरूप है, वही परम निज आत्माकी प्राप्तिरूप लक्षणका धारक जो सिद्ध है उसरूप है, वही निरंजनरूप है, वही निर्मल (कर्ममलरहित) स्वरूपका धारक है, वही स्वसंवेदन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001919
Book TitleBruhaddravyasangrah
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Philosophy
File Size20 MB
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