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श्रीमद्राजचन्द्र जैनशास्त्रमालायाम्
[ द्वितीय अधिकार तत्र पूर्वधातकोखण्डद्वीपमध्ये चतुरशीतिसहस्रयोजनोत्सेधः सहस्रयोजनावगाहः क्षुल्लकमेरुरस्ति । तथा पश्चिमधातकोखण्डेऽपि । यथा जम्बूद्वीपमहामेरौ भरतादिक्षेत्रहिमवदाविपर्वतगङ्गादिनदीपद्मादिह्रदानां दक्षिणोत्तरेण व्याख्यानं कृतं तथात्र पूर्वधातकोखण्डमेरौ पश्चिमधातकोखण्डमेरो च ज्ञातव्यम् । अत एव जम्बूद्वीपापेक्षया संख्यां प्रति द्विगुणानि भवन्ति भरतक्षेत्राणि, न च विस्तारायामापेक्षया । कुलपर्वताः पुविस्तारापेक्षयैव द्विगुणा नत्वायाम प्रति । तत्र धातकोखण्डद्वीपे यथा चक्रस्यारास्तथाकाराः कुलपर्वता भवन्ति । यथा चाराणां विवराणि छिद्राणि मध्यान्यभ्यन्तरे सङ्कीर्णानि बहिर्भाग विस्तीर्णानि तथा क्षेत्राणि ज्ञातव्यानि ॥
___ इत्थंभूतं धातकोखण्डद्वीपमष्टलक्षयोजनवलयविष्कम्भः कालोदकसमुद्रः परिवेष्टय तिष्ठति । तस्माद्बहिर्भागे योजनलक्षाष्टकं गत्वा पुष्करद्वोपस्य वलयाकारेण चतुर्दिशाभागे मानुषोत्तरनामा पर्वतस्तिष्ठति । तत्र पुष्करार्धेऽपि धातकोखण्डद्वीपवद्दक्षिणोत्तरेणेक्ष्वाकारनामपर्वतद्वयं पूर्वापरेण क्षुल्लक मेरुद्वयं च । तथैव भरतादिक्षेत्रविभागश्च बोद्धव्यः। परं किन्तु जम्बूद्वीपभरतादिसंख्यापेक्षया भरतक्षेत्रादिद्विगुणत्वं न च धातकीखण्डापेक्षया। कुलपर्वतानां तु धातकीखण्डकुलपर्वतापेक्षया द्विगुणो विष्कम्भ आयामश्च । उत्सेधप्रमाणं पुनर्दक्षिणभागे विजयाधपर्वते योजनानि पञ्चविंशतिः, हिमवति पर्वते शतं, महाहिमवति द्विशतं, निषधे चतुःशतं, तथोत्तरभागे
उनमें जो पूर्वधातकीखंड नामा द्वीप है उसके मध्यमें चौरासी हजार योजन ऊँचा और एक हजार योजन गहरा छोटा मेरु है। और उसीप्रकार पश्चिमधातकीखंडमें भी एक छोटा मेरु है। और जैसे जंबूद्वीपके महामेरुमें भरत आदि क्षेत्र, हिमवत् आदि पर्वत, गंगा आदि नदी और पद्म आदि ह्रदोंका दक्षिण उत्तर रूपसे व्याख्यान किया है; वैसे ही इस पूर्वधातकीखंडके मेरु और पश्चिम धातकीखडके मेरुमें जानना चाहिये। और इसी कारण धातकीखंडमें जंबूद्वीपकी अपेक्षा गिनतीमें ही भरत आदि दूने होते हैं; परन्तु विस्तार तथा आयामकी अपेक्षासे नहीं। और जो कुलपर्वत हैं वे तो विस्तारको अपेक्षा ही द्विगुण हैं, न कि आयाम ( लंबाई ) की अपेक्षासे । उस धातकीखंड द्वीपमें जैसे चक्रके आरा होते हैं वैसे आकारके धारक कुलाचल हैं। और जिस प्रकार चक्रके आरोंके छिद्र भीतरसे तो संकीर्ण ( सँकड़े ) होते हैं और बाह्य देशमें विस्तीर्ण ( बड़े ) होते हैं, इसी प्रकार क्षेत्रोंको समझना चाहिये ।।
___ इस प्रकार जो धातकीखंड द्वीप है उसको आठ लाख योजनप्रमाण विष्कंभका धारक कालोदक समद्र बेढे हए स्थित है। उस कालोदक समद्रके बाह्य भागमें आठ लाख योजन चलके पुष्करवर द्वीपके अर्ध भागमें गोलाकार रूपसे चारों दिशाओं में मानषोत्तर नामा पर्वत विद्यम है। उस पुष्करार्ध द्वीपमें भी धातकीखंड नामक द्वीपके समान दक्षिण तथा उत्तर दिशामें इक्ष्वा
र नामके धारक दो पर्वत, पूर्वपश्चिममें दो छोटे मेरु, और इसी प्रकार भरत आदि क्षेत्रोंका विभाग जानना चाहिये। परन्तु विशेष यह है कि जंबूद्वीपके भरत आदिको अपेक्षासे यहाँपर द्विगुण-द्विगुण ( दूने-दूने ) भरत आदि क्षेत्र हैं और धातकीखंडकी अपेक्षासे भरत आदि दूने नहीं हैं । और कुलपर्वतोंका विष्कंभ तथा आयाम धातकीखंडके कुलपर्वतोंकी अपेक्षासे द्विगुण हैं। और ऊँचाईका प्रमाण जो दक्षिण भागमें विजयार्धपर्वत है उसमें पच्चीस योजन है, हिमवत् पर्वतमें सौ योजन, महाहिमवान् पर्वतमें दोसौ योजन, निषधमें चारसौ योजन प्रमाण है। तथा उत्तर
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