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सप्ततत्त्व-नवपदार्थ वर्णन ] बृहद्रव्यसंग्रहः वती ४, गन्धा ५, सुगन्धा ६, गन्धिला ७, गन्धमालिनी ८ चेति । तन्मध्यस्थितनगरीणां नामानि कथ्यन्ते-विजया १, वैजयन्ती २, जयन्ती ३, अपराजिता ४, चक्रपुरी ५, खड्गपुरी ६, अयोध्या ७, अवध्या ८ चेति ॥ ___अथ भरतक्षेत्रे यथा गङ्गासिन्धुनदीद्वयेन विजयार्धपर्वतेन च म्लेच्छखण्डपञ्चकमार्यखण्डं चेति षट् खण्डानि जातानि । तथैव तेषु द्वात्रिंशत्क्षेत्रेषु गङ्गासिन्धुसमाननदीद्वयेन विजयार्धपर्वतेन च प्रत्येकं षट् खण्डानि ज्ञातव्यानि । अयं तु विशेषः । एतेषु सर्वदैव चतुर्थकालादिसमानकालः, उत्कर्षेण पूर्वकोटिजीवितं, पञ्चशतचापोत्सेधश्चेति विज्ञेयम्। पूर्वप्रमाणं कथ्यते। "पुवस्स हु परिमाणं सरि खलु सदसहस्सकोडीओ। छप्पण्णं च सहस्सा बोधव्वा वासगणनाओ।१।" इति संक्षेपेण जम्बूद्वीपव्याख्यानं समाप्तम् ।
तदनन्तरं यथा सर्वद्वीपेषु सर्वसमुद्रेषु च द्वीपसमुद्रमर्यादाकारिका योजनाष्टकोत्सेधा वज्रवेदिकास्ति तथा जम्बूद्वीपेऽप्यस्तीति विज्ञेयम् । तद् बहिर्भागे योजनलक्षद्वयवलयविष्कम्भ आगमकथितषोडशसहस्रयोजनजलोत्सेधाद्यनेकाश्चर्यसहितो लवणसमुद्रोऽस्ति । तस्मादपि बहिर्भागे योजनलक्षचतुष्टयवलयविष्कम्भो धातकीखण्डद्वीपोऽस्ति । तत्र च दक्षिणभागे लवणोदधिकालोदधिसमुद्रद्वयवेदिकास्पर्शी दक्षिणोत्तरायामः सहस्रयोजनविष्कम्भः शतचतुष्टयोत्सेध इक्ष्वाकारनामपर्वतोऽस्ति । तथोत्तरविभागेऽपि । तेन पर्वतद्वयेन खण्डीकृतं पूर्वापरधातकीखण्डद्वयं ज्ञातव्यम् ।
३, वप्रकावती ४, गंधा ५, सुगंधा ६, गंधिला ७, और गंधमालिनी ८, ये अष्ट क्षेत्र हैं। अब उन क्षेत्रोंके मध्य में वर्तमान नगरियोंके नाम कहते हैं-विजया १, वैजयन्ती २, जयन्ती ३, अपराजिता ४, चक्रपुरी ५, खड्गपुरी ६, अयोध्या ७, और अवध्या ८, ये क्रमसे हैं ।
अब भरतक्षेत्रमें जैसे गंगा और सिंध इन दोनों नदियोंसे तथा विजयार्ध पर्वतसे पांच म्लेच्छ खंड और एक आर्य खंड ऐसे छ: खंड हुए हैं, उसी प्रकार पूर्वोक्त जो बत्तीस विदेह क्षेत्र हैं उनमें गंगा सिंधु समान दो नदियों और विजया पर्वतसे प्रत्येक क्षेत्रके छ: खंड जानने चाहिए। और यह विशेष ( अधिकता ) है कि इन सब क्षेत्रोंमें सदा ही चौथे कालकी आदिमें जैसा काल रहता है वैसा ही हैं। उत्कर्ष ( उत्कृष्टता ) से कोटि पूर्व प्रमाण तो आयु है, और पाँचसौ धनुष प्रमाण शरीरका उत्सेध है, यह जानना चाहिये । पूर्वका प्रमाण कहते हैं—'सत्तर लाख कोडि छप्पन हजार ये वरसगणनासे पूर्वका प्रमाण जानना चाहिये ।" ऐसे संक्षेपसे जंबूद्वीपका व्याख्यान समाप्त हुआ।
उस जंबूद्वीपके पश्चात् जैसे सब द्वीप और समुद्रोंमें द्वीप और समुद्रकी मर्यादा ( सीमा वा हद ) करनेवाली आठ योजन ऊँची वज्रकी वेदिका ( दीवार ) है, उसी प्रकारसे जंबूद्वीपमें भी है, यह जानना चाहिये। उस वेदिकाके बाह्य भागमें दो लाख योजन प्रमाण गोलाकार विष्कंभधारक, शास्त्रमें उक्त सोलह हजार योजन जलकी ऊँचाई आदि अनेक आश्चर्यों सहित लवणसमुद्र है । उस लवणसमुद्रके बाह्य भागमें चार लाख योजन गोल विष्कंभका धारक धातकीखंड द्वीप है। और वहाँपर दक्षिण भागमें लवणोदधि और कालोदधि इन दोनों समुद्रोंकी वेदिकाको स्पर्श करनेवाला, दक्षिणसे उत्तरकी ओर लंबा, एक हजार विष्कंभका धारक तथा चारसौ योजन ऊँचा इक्ष्वाकारनामा पर्वत है। और इसी प्रकार उत्तर भागमें भी एक इक्ष्वाकार पर्वत है। इन दोनों पर्वतोसे खंडरूप हुए ऐसे, पूर्वधातकीखंड तथा पश्चिमधातकीखंड ऐसे दो खंड जानने चाहिये ।
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