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________________ १०२. श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [द्वितीय अधिकार अथ मेरोः पश्चिमदिग्भागे पूर्वापरद्वाविंशतिसहस्रयोजनविष्कम्भो पश्चिमभद्रशालवनानन्तरं पश्चिमविदेहस्तिष्ठति । तत्र निषधपर्वतादुत्तरविभागे शीतोदानद्या दक्षिणभागे यानि क्षेत्राणि तेषां विभाग उच्यते । तथाहि-मेरुदिग्भागे या पश्चिमभद्रशालवनवेदिका तिष्ठति तस्याः पश्चिमभागे क्षेत्रं भवति, ततो दक्षिणोत्तरायतो वक्षारपर्वतस्तिष्ठति, तदनन्तरं क्षेत्रं, ततो विभङ्गा नदी, ततश्च क्षेत्रं, ततो वक्षारपर्वतस्ततः परं क्षेत्रं, ततो विभङ्गानदी, ततः क्षेत्रं, ततो वक्षारपर्वतस्ततः क्षेत्रं, तदनन्तरं पश्चिमसमुद्रसमीपे यद्भतारण्यवनं तिष्ठति तस्य वेदिका चेति नवभित्तिषु मध्येऽष्टी क्षेत्राणि भवन्ति । तेषां नामानि कथ्यन्ते-पद्मा १. सपद्मा २. महापद्मा ३. पद्मकावती४. शंखा ५ नलिना ६, कुमुदा ७, सलिला ८ चेति । तन्मध्यस्थितनगरीणां नामानि कथयन्ति-अश्वपुरो १, सिंहपुरी २, महापुरी ३, विजयापुरी ४, अरजापुरी ५, विरजापुरी ६, अशोकापुरी ७, विशोकापुरी ८ चेति ॥ अत ऊर्ध्वं शीतोदाया उत्तरभागे नीलकुलपर्वताद्दक्षिणे भागे यानि क्षेत्राणि तिष्ठन्ति तेषां विभागभेदं कथयति । पूर्वभणिता या भूतारण्यवनवेदिका तस्याः पूर्वभागे क्षेत्रं भवति । तदनन्तरं वक्षारपर्वतस्तदनन्तरं क्षेत्र, ततो विभङ्गा नदी, ततः क्षेत्रं, ततो वक्षारपर्वतः, ततश्च क्षेत्रं, ततश्च विभङ्गा नदी, ततोऽपि क्षेत्रं, ततो वक्षारपर्वतस्ततः क्षेत्र, ततो विभङ्गा नदी, ततः क्षेत्रं, ततश्च वक्षारपर्वतस्तत: क्षेत्रं, ततो मेरुदिशाभागे पश्चिमभद्रशालवनवेदिका चेति नभित्तिषु मध्येऽष्टौ क्षेत्राणि भवन्ति । तेषां क्रमेण नामानि कथ्यन्ते-वत्रा १, सुवप्रा २, महावप्रा ३, वप्रका अब मेरुसे पश्चिम दिशाके भागमें पूर्व पश्चिममें बाईस हजार योजन विष्कंभका धारक पश्चिम भद्रशालवनके पश्चात् पश्चिम विदेह है। वहाँ निषध पर्वतसे उत्तरके विभागमें और शीतोदा नदीके दक्षिण विभागमें जो क्षेत्र है, उनका विभाग कहा जाता है । सो ही दिखाते हैंमेरु दिशाके (उत्तरके) भागमें जो पश्चिम भद्रशालवनकी वेदिका है, उसके पश्चिम भागमें क्षेत्र है, उससे आगे दक्षिण उत्तर लंबा वक्षार पर्वत है, उसके अनन्तर क्षेत्र है, फिर विभंगा नदी है, और फिर क्षेत्र है, उसके आगे वक्षार पर्वत है, उसके पश्चात् क्षेत्र है, फिर विभंगा नदी है, उसके अनन्तर क्षेत्र है, उस क्षेत्रके पश्चात् वक्षार पर्वत है, पश्चात् क्षेत्र है, उसके अनंतर पश्चिम समुद्रके समापमें जो भूतारण्य नामक वन है उसकी वेदिका है । ऐसे नौ भित्तियोंके मध्यमें आठ क्षेत्र होते हैं। उनके नाम कहते हैं-पद्मा १, सुपद्मा २, महापद्मा ३, पद्मकावती ४, शंखा ५, नलिना ६, कुमुदा ७, और सलिला ८ । उन क्षेत्रोंके मध्य में स्थित नगरियोंके नाम कहते हैं-अश्वपुरी १, सिंहपुरी २, महापुरो ३, विजयापुरी ४, अरजापुरी ५, विरजापुरी ६, अशोकापुरी ७, और विशोकापुरी ८॥ अब इसके अनन्तर शीतोदाके उत्तर भागमें और नील कुलाचलसे दक्षिणभागमें जो क्षेत्र हैं उनके विभाग-भेदका वर्णन करते हैं। पहले कही हुई जो भूतारण्यवनकी वेदिका है उसके पूर्वभागमें क्षेत्र है १ और उसके पश्चात् वक्षार नामा पर्वत है, उसके अनंतर पुनः क्षेत्र है २ उसके पश्चात् विभंगा नदी है, उसके पश्चात् पुनः क्षेत्र है ३ उसके पश्चात् पुनः वक्षार पर्वत है, उसके अनंतर पुनः क्षेत्र है ४ उसके पश्चात् पुनः विभंगा नदी है, उसके अनन्तर पुनः क्षेत्र है ५ उसके पश्चात् पुनः वक्षार पर्वत है, उसके पश्चात् पुनः क्षेत्र है ६ उसके पश्चात् पुनः विभंगा नदी है, उसके अनन्तर क्षेत्र है ७ उसके पश्चात् वक्षार पर्वत है, उसके अनन्तर पुनः क्षेत्र है ८ उसके अनन्तर मेरुको दिशाके भागमें पश्चिम भद्रशालवनको वेदिका है। इस रीतिसे नौ भित्तियोंके मध्य में आठ क्षेत्र हैं। अब क्रमसे उनके नाम कहते हैं-वप्रा १, सुवप्रा २, महावप्रा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001919
Book TitleBruhaddravyasangrah
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Philosophy
File Size20 MB
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