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________________ १०१ सप्ततत्त्व-नवपदार्थ वर्णन ] बृहद्रव्यसंग्रहः ततो वक्षारपर्वतस्ततः क्षेत्रं, तदनन्तरं पूर्वसमुद्रसमीपे यद्देवारण्यं तस्य वेदिका चेति नवभित्तिभिरक्षेत्राणि ज्ञातव्यानि। तेषां क्रमेण नामानि कथ्यन्ते-कच्छा १ सुकच्छा २ महाकच्छा ३ कच्छावती ४ आवर्ता ५ लागलावा ६ पुष्कला ७ पुष्कलावती ८ चेति । इदानों क्षेत्रमध्यस्थितनगरीणां नामानि कथ्यन्ते-क्षेमा १ क्षेमपुरी २ रिष्टा ३ रिष्टपुरी ४ खड्गा ५ मञ्जूषा ६ औषधी ७ पुण्डरीकिणी ८ चेति ॥ अत ऊध्वं शोताया दक्षिणविभागे निषधपर्वतादुत्तरविभागे यान्यष्टक्षेत्राणि तानि कथ्यन्ते । तद्यथा-पूर्वोक्ता या देवारण्यवेदिका तस्याः पश्चिमभागे क्षेत्रमस्ति, तदनन्तरं वक्षारपर्वतस्ततः परं क्षेत्रं, ततो विभङ्गा नदी, ततश्च क्षेत्रं, तस्माद्वक्षारपर्वतस्ततश्च क्षेत्रं, ततो विभङ्गा नदी, ततः क्षेत्र, ततो वक्षारपर्वतः, ततः क्षेत्रं, ततो विभङ्गा नदी, तदनन्तरं क्षेत्रं, ततो वक्षारपर्वतस्ततः क्षेत्रं, ततो मेरुदिग्भागे पूर्वभद्रशालवनवेदिका भवतीति नभित्तिमध्येऽष्टौ क्षेत्राणि ज्ञातव्यानि । इदानीं तेषां क्रमेण नामानि कथ्यन्ते-वच्छा १, सुवच्छा २, महावच्छा ३, वच्छावती ४, रम्या ५, रम्यका ६, रमणीया ७, मङ्गलावती ८ चेति । इदानीं तन्मध्यस्थितनगरीणां नामानि कश्यन्तेसुसीमा १, कुण्डला २, अपराजिता ३, प्रभाकरी ४, अङ्का ५, पद्मा ६, शुभा ७, रत्नसंचया ८ चेति, इति पूर्वविदेहक्षेत्रविभागव्याख्यानं समाप्तम् ॥ उस क्षेत्रके अनन्तर भी वक्षार पर्वत है, फिर क्षेत्र है, फिर भी विभंगा नदी है; उसके अनन्तर क्षेत्र है, उसके पश्चात् वक्षार पर्वत है, उसके आगे क्षेत्र है, उससे आगे फिर विभंगा नदी और फिर क्षेत्र है, उससे आगे फिर वक्षार पर्वत है, फिर क्षेत्र है, उसके अनन्तर पूर्व समुद्रके पास जो देवारण्य नामक वन है, उसकी वेदिका है। ऐसे नौ भित्तियों (दीवारों) से आठ क्षेत्र जानने चाहिये । उनके क्रमसे नाम कहते हैं-कच्छा १, सुकच्छा २, महाकच्छा ३, कच्छावती ४, आवर्ता ५, लाङ्गलावर्ता ६, पुष्कला ७, और पुष्कलावती ८, ऐसे यह क्रमानुसार आठों क्षेत्रोंके नाम हैं। अब क्षेत्रोंके मध्य में स्थित जो नगरियाँ हैं, उनके नाम कहते हैं। वे क्रमसे ये हैं-क्षेमा १, क्षेमपुरी २, रिष्टा ३, रिष्टपुरी ४, खड्गा ५, मंजूषा ६, औषधी ७, और पुंडरीकिणो ८ ।। इसके आगे शीता नदीसे दक्षिण भागमें निषध पर्वतसे उत्तर भागमें जो आठ क्षेत्र हैं उनको कहते हैं । वे इस प्रकार हैं-पहले कही हुई जो देवारण्यकी वेदी है उसके पश्चिम भागमें क्षेत्र है, तदनन्तर वक्षार पर्वत है, उसके आगे क्षेत्र है, फिर विभंगा नदी है, उसके पश्चात् क्षेत्र है, फिर वक्षार पर्वत है, और फिर क्षेत्र है, तत्पश्चात् विभंगा नदी है, फिर क्षेत्र है, पुनः वक्षार पर्वत हैं, फिर क्षेत्र है, फिर विभंगा नदी है, उसके अनन्तर क्षेत्र है, फिर वक्षार पर्वत है, फिर क्षेत्र है, उससे आगे मेरुकी (उत्तर) दिशाके भागमें पूर्वभद्रशाल वनकी वेदी है। ऐसे नौ भित्तियोंके मध्यमें आठ क्षेत्र जानने योग्य हैं। उन क्षेत्रोंके क्रमसे नाम कहते हैं-वच्छा १, सुवच्छा २, महावच्छा ३, वच्छावती ४, रम्या ५, रम्यका ६, रमणीया ७, और मंगलावती ८। अब उन क्षेत्रों में स्थित जो नगरियाँ हैं उनके नाम कहते हैं-सुसीमा १, कुण्डला २, अपराजिता ३, प्रभाकरी ४, अंका ५, पद्मा ६, शुभा ७, और रत्नसंचया ८। इस प्रकार पूर्वविदेहक्षेत्रके विभागोंका व्याख्यान समाप्त हुआ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001919
Book TitleBruhaddravyasangrah
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Philosophy
File Size20 MB
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