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श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [द्वितीय अधिकार चेदणपरिणामो जो कम्मस्सासवणिरोहणे हेदू । सो भावसंवरो खलु दव्वासवरोहणे अण्णो ।। ३४ ।। चेतनपरिणामो यः कर्मणः आस्रवनिरोधने हेतुः ।
सः भावसंवरः खलु द्रव्यात्रवरोधनेः अन्यः ॥ ३४ ॥ व्याख्या-"चेदणपरिणामो जो कम्मस्सासवणिरोहणे हेदू सो भावसंवरो खलु" चेतनपरिणामो यः कथंभूतः कर्मास्त्रवनिरोधने हेतुः स भावसंवरो भवति खलु निश्चयेन । “दव्वासवरोहणे अण्णो" द्रव्यकर्मास्रवनिरोधने सत्यन्यो द्रव्यसंवर इति । तद्यथा-निश्चयेन स्वतः सिद्धत्वात्परकारणनिरपेक्षः, स चैवाविनश्वरत्वान्नित्यः परमोद्योतस्वभावत्वात्स्वपरप्रकाशनसमर्थः, अनाद्यनन्तत्वादादिमध्यान्तमुक्तः, दृष्टश्रुतानुभूतभोगाकाङ्क्षारूपनिदानबन्धादिसमस्तरागादिविभावमलरहितत्वादत्यन्तनिर्मलः, परमचैतन्यविलासलक्षणत्वाच्चिदुच्छलननिर्भरः, स्वाभाविकपरमानन्दैकलक्षणत्वात्परमसुखमूर्तिः, निरास्त्रवसहजस्वभावत्वात्सर्वकर्मसंवरहेतुरित्युक्तलक्षणः परमात्मा तत्स्वभावेनोत्पन्नो योऽसौ शुद्धचेतनपरिणामः स भावसंवरो भवति । यस्तु भावसंवरात्कारणभूतादुत्पन्नः कार्यभूतो नवतरद्रव्यकर्मागमनाभावः स द्रव्यसंवर इत्यर्थः ॥
अथ संवरविषयनयविभागः कथ्यते। तथाहि-मिथ्यादृष्टयादिक्षीणकषायपर्यन्तमुपयुंपरि मन्दत्वात्तारतम्येन तावदशुद्धनिश्चयो वर्तते । तस्य मध्ये पुनर्गुणस्थानभेदेन शुभाशुभशुद्धानुष्ठान
गाथाभावार्थ-जो चेतनका परिणाम कर्मके आस्रवको रोकने में कारण है, उसको निश्चय से भावसंवर कहते हैं । और जो द्रव्यास्रवको रोकनेमें कारण है सो दूसरा अर्थात् द्रव्यसंवर है ॥३४ ।।
व्याख्यार्थ--"चेदणपरिणामो जो कम्मस्सासवणिरोहणे हेदू सो भावसंवरो खलु" जो चेतनका परिणाम कर्मके आस्रवको रोकनेका कारण होता है, वह निश्चयसे भावसंवर है। "दव्वासवरोहणे अण्णो" द्रव्य कर्मो के आस्रवका निरोध होनेपर दूसरा द्रव्यसंवर होता है। सो इस प्रकार है-निश्चयनयसे स्वयं सिद्ध होनेसे अन्य कारणकी अपेक्षासे शून्य, अविनाशी होनेसे नित्य, परम उद्योत (प्रकाश) स्वभाव होनेसे अपने और परके प्रकाशनेमें समर्थ, अनादि अनन्त होनेसे आदि मध्य और अन्तरहित, देखे सुने और अनुभवमें किये हुए जो भोग हैं उनकी आकांक्षा (चाह) रूप जो निदान बंध आदि समस्त रागादिक विभावमल उनसे रहित होनेके कारण अत्यन्त निर्मल, परम चैतन्यविलासरूप लक्षणका धारक होनेसे चित् चमत्कार (चिन्मय) स्वरूप, स्वाभाविक परमानन्द स्वरूप होनेसे परम सुखकी मूत्तिका धारक और आस्रवरहित सहज स्वभाव होनेसे सब कर्मोंके संवर (रोकने) में कारण, इस प्रकार पूर्वोक्त लक्षणोंका धारक जो परमात्मा है उसके स्वभावसे उत्पन्न जो यह शुद्ध चेतनपरिणाम है सो भावसंवर है। और कारणभूत भावसंवरसे उत्पन्न हुआ जो कार्यरूप नवीन द्रव्यकर्मोके आगमनका अभाव है सो द्रव्यसंवर है । इस प्रकार गाथार्थ है।
___ अब संवरके विषयमें नयोंका विभाग कहते हैं। सो इस प्रकार है कि-मिथ्यात्वगुणस्थानको आदि लेकर क्षीणकषाय नामक बारहवें गुणस्थानपर्यन्त ऊपर-ऊपर मन्दतासे तारतम्यसे अशुद्ध
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