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पंचसंग्रह ८
स्थिति- उदीरणा एकेन्द्रिय भव में से आये संज्ञी पंचेन्द्रिय में होती है।
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जिसका आशय इस प्रकार है- जघन्य स्थिति की सत्ता वाला एकेन्द्रिय- एकेन्द्रिय भव में से निकलकर पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय में उत्पन्न हो । उत्पत्ति के प्रथम समय से लेकर दुर्भगनामकर्म का अनुभव करता हुआ दीर्घ अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त सुभगनाम को बांधे और उसके बाद दुर्भगनाम बांधना प्रारम्भ करे, उसके बाद बंधावलिका के चरम समय में पूर्वबद्ध दुर्भगनामकर्म की जघन्य स्थिति की उदीरणा करता है ।
इसी प्रकार अनादेय, अयशः कीर्ति और नीचगोत्र को भी जघन्य स्थिति - उदीरणा कहना चाहिये । मात्र वहाँ आदेय, यशःकीर्ति और उच्चगोत्र रूप प्रतिपक्षी प्रकृतियों का अनुक्रम से बंध जानना चाहिये ।
तथा
सर्व जघन्य स्थिति की सत्ता वाला बादर तेज और वायुकाय का
१ यहाँ दुर्भगत्रिक आदि उन्नीस प्रकृतियों की जघन्य स्थिति उदीरणा एकन्द्रिय में से आये संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव की बताई है परन्तु मनुष्यानुपूर्वी और पांच संहनन के बिना तेरह प्रकृतियों का उदय एकेन्द्रियादि जीवों के भी होता है । एकेन्द्रियादि जीवों में जघन्य स्थिति की उदीरणा न बताकर संज्ञी पंचेन्द्रिय में ही बताने का कारण यह है कि शेष जीवों की अपेक्षा संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के परावर्तमान बंधयोग्य प्रत्येक प्रकृति का बंधकाल संख्यातगुणा है, जिससे एकेन्द्रियादि जीवों की अपेक्षा संज्ञी पंचेन्द्रिय में अधिक जघन्य स्थिति उदीरणा प्राप्त होती है । इसी कारण एकेन्द्रिय में से आये हुए पंचेन्द्रिय जीव ही बताये हैं ।
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