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________________ पंचसंग्रह : ३ प्रश्न-जबकि सभी लब्धियां क्षायोपशमिकभाव अर्थात् वीर्यान्तरायकर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न होती हैं, तब श्वासोच्छ वासलब्धि में पुनः श्वासोच्छ वासनामकर्म का उदय मानने का क्या प्रयोजन है ? उत्तर-कितनी ही लब्धियों में कि जिनमें लोक में विद्यमान पुद्गलों को ग्रहण करना हो और ग्रहण करके श्वासोच्छ वासादि रूप में परिणमित करना हो, वहाँ कर्म का उदय भी मानना आवश्यक है। क्योंकि कर्म के उदय के बिना लोक में विद्यमान पुद्गलों को ग्रहण करके परिणमाया नहीं जा सकता है । जैसे कि किसी चतुर्दश पूर्वधर संयमी श्रमण को आहारकलब्धि प्राप्त हो और जब उसको आहारकशरीर करना हो तब लोक में व्याप्त आहारकवर्गणाओं में से पुद्गलों को ग्रहण करके आहारक रूप से परिणमित किया जाता है। यह ग्रहण और परिणमन कर्म के उदय बिना नहीं होता है। यद्यपि वहाँ तदनुकूल वीर्यान्तरायकर्म का क्षयोपशम तो होना ही चाहिये, यदि वह न हो तो लब्धिप्रयोग किया ही नहीं जा सकता है। जैसे कि वैक्रियशरीरनामकर्म की सत्ता प्रायः प्रत्येक पंचेन्द्रिय संज्ञी तिर्यंच, मनुष्य को होती है, लेकिन सभी मनुष्य, तिर्यंच वैक्रियशरीर नहीं बना सकते हैं, जिसको अनुकूल क्षयोपशम हो वही कर सकता है । उसी प्रकार यहाँ भी श्वासोच्छ वास पुद्गलों का ग्रहण एवं परिणमन किया जाता है। इसी प्रयोजन से श्वासोच्छ वास नामकर्म मानने की आवश्यकता है। __ आतप-जिस कर्म के उदय से जीवों के शरीर मूल रूप से अनुष्ण (उष्णतारहित-शीतल) हों, किन्तु उष्ण प्रकाश रूप ताप करते हैं, उसे आतप नामकर्म कहते हैं। इसका उदय सूर्यमण्डलगत पृथ्वीकायिक जीवों में ही होता है, अग्नि में नहीं। क्योंकि सिद्धान्त में अग्नि के आतप नामकर्म के उदय का निषेध किया है। किन्तु अग्नि में उष्णता उष्णस्पर्शनामकर्म के उदय से और उत्कट लोहितवर्ण नामकर्म के उदय से प्रकाशकत्व बताया है। आतपोदय से तो स्वयं अनुष्ण होकर दूरस्थ वस्तु पर उष्ण प्रकाश होता है। जबकि अग्नि स्वयं उष्ण है और मात्र थोड़ी दूर रही हुई वस्तु पर उष्ण प्रकाश करती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001900
Book TitlePanchsangraha Part 03
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages236
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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