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________________ ४१ बंधव्य-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ७ उदय से न तो सम्पूर्ण शरीर लोहे के गोले जैसा भारी और न रुई जैसा हलका और न शरीर का अमुक भाग गुरु या अमुक भाग लघु होता है। किन्तु न भारी न हलका, ऐसा अगुरुलघु परिणाम वाला होता है। स्पर्श नामकर्म के गुरु और लघु जो दो भेद कहे हैं, वे शरीर के अमुक-अमुक अवयव में ही अपनी शक्ति बतलाते हैं । जैसे कि हड्डी आदि में गुरुता और बाल आदि में लघुता होती है। इन दोनों स्पर्शनामकर्म का विपाक समस्त शरीराश्रित नहीं है। उपघात--जिस कर्म के उदय से शरीर के अवयवों में ही वृद्धि को प्राप्त प्रतिजिह्वा, गलवृन्द, गांठ-कंठमाल, चौरदन्त आदि के द्वारा प्राणी उपघात को प्राप्त हो, दुःखी हो अथवा स्वयंकृत उबंधन (फांसी लगाना), भैरवप्रपात (पर्वत आदि से छलांग लगाना) आदि के द्वारा मर जाना उपघात नामकर्म कहलाता है। पराघात-जिस कर्म के उदय से जीव ओजस्वी हो कि बड़े-बड़े महाराजोओं की सभा में जाने पर भी अपने दर्शनमात्र से अथवा वचन सौष्ठवता से उस सभा के सदस्यों को त्रास उत्पन्न करे, क्षोभ पैदा करे और प्रतिवादी की प्रतिभा का घात करे, उसे पराघात नामकर्म कहते हैं11 उच्छ वास-जिस कर्म के उदय उच्छ वास-निच्छ वासलब्धि (श्वासोच्छ वासलब्धि) उत्पन्न होती है, वह उच्छ वास नामकर्म है। यहाँ जिज्ञासू का प्रश्न है दिगम्बर कर्मसाहित्य में पराघात नामकर्म का यह लक्षण किया है'परेषां घात: परघातः। यदुदयात्तीक्ष्णशृगनखविषसर्पदाढादयो भवन्ति अवयवास्तत्परघात नाम ।' जिस कर्म के उदय से दूसरे के घात करने वाले अवयव होते हैं, उसे परघात नामकर्म कहते हैं। जैसे शेर, चीते आदि की विकराल दाढ़े होना, पंजे के तीक्ष्ण नख होना। सांप की दाढ़ और बिच्छू की पूछ में विष होना इत्यादि तथा पराघात के स्थान पर परघात शब्द का प्रयोग किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001900
Book TitlePanchsangraha Part 03
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages236
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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