SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बंधव्य-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ५ नोकषायें अवश्य ही कषायों को उद्दीप्त करती हैं। जैसे कि रति और अरति क्रमशः लोभ और क्रोध का उद्दीपन करती हैं। एतद् विषयक श्लोक इस प्रकार है कषाय - सहवत्तित्वात्कषाय - प्रेरणादपि । हास्यादि नवकस्योक्ता नोकषाय कषायता ॥ अर्थात् कषायों की सहवर्ती होने से और कषायों की प्रेरक होने से हास्यादि नवक को नोकषाय कषाय कहा जाता है। नोकषायों के नौ भेद इस प्रकार हैं वेदत्रिक-स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुसकवेद और हास्यादिषट्क-हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा । वेदत्रिक के लक्षण इस प्रकार हैं १-जिसके उदय से स्त्री को पुरुषोपभोग की इच्छा होती है, यथा पित्त की अधिकता से मधुर पदार्थों को खाने की इच्छा होती है, उसे स्त्रीवेद कहते हैं। २-जिसके उदय से पुरुष को स्त्री के उपभोग की इच्छा होती है, जैसे कि कफ की अधिकता होने पर खट्टे पदार्थों को खाने की इच्छा होती है, उसे पुरुषवेद कहते हैं। ३-जिसके उदय से स्त्री और पुरुष दोनों के उपभोग की इच्छा होती है, जैसे कि पित्त और कफ का आधिक्य होने पर मज्जिकाखटमिट्ठी वस्तु के खाने की इच्छा होती है, उसे नपुसकवेद कहते हैं । वेदमोहनीय के उदय से आत्मा को ऐन्द्रियिक विषयों को भोगने की लालमा उत्पन्न होती है। वह इच्छा मंद, मध्यम और तीव्र इस तरह तीन प्रकार की है। मंद लालसा पुरुषवेद वाले को और मध्यम एवं ताव अनुक्रम से स्त्रीवेद और नपुसकवेद के उदय वाले के होती है। उत्तराध्ययन सूत्र ३३।११ में नोकषाय के सात अथवा नौ भेदों का उल्लेख है। यह विकल्प वेद का सामान्य से एक और पुरुषवेद आदि तीन भेद करके बतलाये हैं। लेकिन साधारणतया नोकषायमोहनीय के नौ भेद प्रसिद्ध होने से यहाँ नौ नाम गिनाये हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001900
Book TitlePanchsangraha Part 03
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages236
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy