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________________ पंचसंग्रह : ३ संज्वलन मान बेंत के समान नमने वाला, प्रत्याख्यानावरण मान सूखे काष्ठ के समान प्रयत्न से नमने वाला, अप्रत्याख्यानावरण मान हड्डी की तरह सुदीर्घ प्रयत्न से नमने वाला, अनन्तानुबंधी मान पत्थर के खम्भे के समान न नमने वाला है। संज्वलन माया बांस के छिलके के समान ऋजुता वाली, प्रत्याख्यानावरण माया चलते बैल की मूत्ररेखा के समान, अप्रत्याख्यानावरण माया भेड़ के सींगों में प्राप्त वक्रता के समान और अनन्तानुबंधी माया बांस की जड़ में रहने वाली वक्रता के समान है। संज्वलन लोभ हल्दी के रंग के समान, प्रत्याख्यानावरण लोभ काजल के रंग के समान, अप्रत्याख्यानावरण लोभ गाड़ी के पहिये के कीचड़ के समान एवं अनन्तानुबंधी लोभ किरमिची के रंग के समान है। इस प्रकार से कषायमोहनीय के भेदों का वर्णन करने के पश्चात् अब नौ नोकषायों के नाम और उनके लक्षण बतलाते हैं नोकषाय शब्द में 'नो' शब्द साहचर्यवाचक अथवा देशनिषेधवाचक है । यानी जो कषायों की सहचारी हों, साथ रहकर कषायों को उत्तेजित करती हैं, उद्दीपन करती हैं, अथवा जो कषायों का सम्पूर्ण कार्य करने में असमर्थ हो, उन्हें नोकषाय कहते हैं। प्रश्न-किन कषायों के साथ इनका साहचर्य है ? उत्तर-ये नौ नोकषाय आदि की अनन्तानुबंधीचतुष्क, अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क, प्रत्याख्यानावरणचतुष्क रूप बारह कषायों की सहचारी हैं। इनके साथ साहचर्य का कारण यह है कि आदि की उक्त बारह कषायों का क्षय होने के पश्चात् नोकषायें भी क्षय हो जाती हैं । बारह कषायों का क्षय करने के पश्चात् क्षपक आत्मा इन नोकषायों का क्षय करने के लिए प्रवृत्त होती है। अथवा उदयप्राप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001900
Book TitlePanchsangraha Part 03
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages236
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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