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पंचसंग्रह : ३ दर्शनावरण में स्पर्शनादि चार इन्द्रियावरणों और पन- नोइन्द्रियावरण इस प्रकार पांच आवरणों का समावेश होता है । इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना आत्मा द्वारा मर्यादा में रहे हुए रूपी पदार्थों का जो सामान्य ज्ञान, उसे अवधिदर्शन कहते हैं और उसका आवरण करने वाला कर्म अवधिदर्शनावरण कहलाता है। रूपी, अरूपी प्रत्येक पदार्थ का जो सामान्य ज्ञान वह केवलदर्शन है और उसको आवृत करने वाला कर्म केवलदर्शनावरण कहलाता है।
इन्हीं चारों दर्शनावरणों के साथ निद्रा और प्रचला को मिलाने पर दर्शनावरणकर्म के छह भेद होते हैं। ___नि' उपसर्ग पूर्वक कुत्सार्थक 'द्रा' धातु से निद्रा शब्द निष्पन्न होता है। जिसका अर्थ यह हुआ कि जिस अवस्था में चैतन्य अवश्य अस्पष्ट होता है, उसे निद्रा कहते हैं। जिसके अन्दर चटकी आदि बजाने अथवा धीरे से भी ध्वनि करने पर सुखपूर्वक जागना हो जाये, उसे निद्रा कहते हैं। इस प्रकार की नींद आने में करणभूत जो कर्म वह कारण में कार्य का आरोप करने से निद्रा कहलाता है । निद्रादर्शनावरणकर्म नींद आने में कारण है और नींद आना यह कार्य है।
जिस निद्रा में बैठे-बैठे या खड़े-खड़े नींद आये उसे प्रचला कहते हैं ।
दिगम्बर कर्मसाहित्य में निद्रा का लक्षण यह बताया है जिसके उदय से जीव गमन करते हुए भी खड़ा रह जाये, बैठ जाये, गिर जाये उसे निद्रा कहते हैंणिदुदए गच्छंतो ठाइ पुणो व इसदि पडेदि।
-दिकर्मप्रकृति गा. ५० २ दिगम्बर कर्मसाहित्य में प्रचला का लक्षण यह बताया है जिसके उदय से जीव कुछ जागता और कुछ सोता रहे- ..
पयलुदएण य जीवो ईसुमगीलिय सुवेदि सुत्तोवि । ईसं ईसं जाणदि मुहं मुहं सोवदे मंदं ।।
-दि. कर्मप्रकृति गा. ५१
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